लखनऊ: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी के तौर पर विख्यात मंगल पांडे (Mangal Pandey Birth Anniversary) ने पहली बार 'मारो फिरंगी को' का नारा देकर भारतीयों का हौसला बढ़ाया था. उनके विद्रोह से ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई थी. आज 19 जुलाई को उनकी 194वीं जयंती है.
मंगल पांडे ने 29 मार्च, 1857 को अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था. उन्होंने कलकत्ता (अब कोलकाता) के पास बैरकपुर परेड मैदान में रेजीमेंट के अफसर पर हमला कर उसे घायल कर दिया था.
अमर शहीद मंगल पांडे (Mangal Pandey) का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था. हालांकि कई इतिहासकार मानते हैं कि उनका जन्म फैजाबाद जिले की अकबरपुर तहसील के सुरहुरपुर गांव में हुआ था.
मंगल पांडे 1849 को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए. उन्हें बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में शामिल किया गया था. वह पैदल सेना के 1446 नंबर के सिपाही थे.
'मारो फिरंगी को' का दिया था नारा
मंगल पांडे ने 'मारो फिरंगी को' का नारा दिया था. उन्हें भारत के पहले शहीदों में से एक माना जाता है. उन्होंने जिस स्थान पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था और बाद में जहां उन्हें फांसी दी गई, वह स्थान अब शहीद मंगल पांडे महा उद्यान के रूप में जाना जाता है.
1984 में उनके सम्मान में जारी हुआ डाक टिकट
भारत सरकार ने 5 अक्टूबर, 1984 को उनके नाम से डाक टिकट जारी किया था. मंगल पांडे ने कलकत्ता के निकट बैरकपुर छावनी में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था.
मंगल पांडे पर बन चुकी है फिल्म
मंगल पांडे 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (बीएनआई) में सिपाही थे, जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का हिस्सा थी. उन्होंने 18 साल की छोटी उम्र में बंगाल इन्फैंट्री की छठी कंपनी में काम करना शुरू कर दिया था. मंगल पांडे के जीवन पर कई फिल्में बन चुकी हैं. 'मंगल पांडे- दि राइजिंग स्टार' नाम से 2005 में बनी हिंदी फिल्म में बॉलीवुड स्टार आमिर खान ने उनका किरदार निभाया था.
अंग्रेज अधिकारियों द्वारा भारतीय सैनिकों पर अत्याचार की हद तब हो गई, जब भारतीय सैनिकों को ऐसी बंदूक दी गईं जिसमें कारतूस भरने के लिए दांतों से काटकर खोलना पड़ता है. इस नई एनफील्ड बंदूक की नली में बारूद को भरकर कारतूस डालना पड़ता था. वह कारतूस जिसे दांत से काटना होता था, उसके ऊपरी हिस्से पर चर्बी होती थी.
उस समय भारतीय सैनिकों में अफवाह फैली थी कि कारतूस पर लगी चर्बी सूअर और गाय की है. ये बंदूकें 9 फरवरी, 1857 को सेना को दी गईं. इस्तेमाल के दौरान जब इसे मुंह लगाने के लिए कहा गया तो मंगल पांडे ने ऐसा करने से मना कर दिया था. उसके बाद अंग्रेज अधिकारी गुस्सा हो गए. फिर 29 मार्च 1857 को उन्हें सेना से निकालने, वर्दी और बंदूक वापस लेने का फरमान सुनाया गया.
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उसी दौरान एक अंग्रेज अफसर उनकी तरफ बढ़ा, लेकिन मंगल पांडे ने भी उन पर हमला बोल दिया. उन्होंने साथियों से मदद करने को कहा, लेकिन कोई आगे नहीं आया. फिर भी वे डटे रहे उन्होंने अंग्रेज अफसरों पर गोली चला दी. जब कोई भारतीय सैनिकों ने साथ नहीं दिया तो उन्होंने अपने ऊपर भी गोली चलाई. हालांकि वे सिर्फ घायल हुए. फिर अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया. 6 अप्रैल 1857 को उनका कोर्ट मार्शल किया गया और 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई.