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ममता सरकार महिलाओं को देगी एक-एक हजार रुपया महीना, पर कब तक ? - mamata lakhi bhandar scheme

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महिलाओं के लिए लक्खी भंडार योजना की घोषणा की है. इसके तहत सामान्य कोटि की महिलाओं को 500 रुपये और अनुसूचित जाति-जनजाति की महिलाओं को 1000 रुपये प्रति महीना मिलेगा. लेकिन क्या इस तरह का 'चैरिटेबल' स्कीम महिलाओं के लिए अच्छा होगा ? क्या राज्य के पास पर्याप्त कोष है, और सरकार इसे कब तक चला पाएगी ? ये सारे सवाल हवा में तैर रहे हैं. आइए इस पर एक नजर डालते हैं.

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Published : Jul 23, 2021, 8:31 PM IST

Updated : Jul 23, 2021, 9:15 PM IST

कोलकाता : एक दिन पहले ममता बनर्जी ने लक्खी भंडार योजना (लक्ष्मी का खजाना) की शुरुआत की. इसके तहत अनुसूचित जाति और जनजाति महिलाओं को 1000 रुपये और सामान्य कोटि की महिलाओं को 500 रुपये प्रति माह दिए जाएंगे. योजना एक सितंबर से शुरू हो रही है. ममता ने चुनाव के दौरान इस योजना को लागू करने का वादा किया था.

यह मुख्य रूप से पॉकेट मनी स्कीम है. राज्य के 1.6 करोड़ परिवारों को इसका फायदा मिलेगा. हालांकि, महिला पेशेवरों, अर्थशास्त्रियों और राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इस योजना की शुचिता को लेकर सवाल उठाए हैं. उनके अनुसार पॉकेट मनी योजना महिलाओं को सिर्फ तुष्ट करने वाला है. यह कोई महिला सशक्तिकरण की ओर उठाया गया कदम नहीं है. योजना कब तक जारी रहेगी, कई लोगों ने इस पर सवाल उठाए हैं. उनका मानना है कि क्योंकि राज्य सरकार का खजाना पहले से तंग है, लिहाजा सरकार कब तक इसका बोझ उठाएगी, कहना मुश्किल है.

विशेषज्ञ मानते हैं कि लोकप्रियता हासिल करने के लिए केंद्र और राज्य दोनों ही स्तर पर सरकारें इस तरह की योजनाओं की शुरुआत करते रहते हैं. ऐसी योजनाएं वोट बैंक की राजनीति और सबका ध्यान आकर्षित करने वाली होती हैं.

राजनीतिक और आर्थिक विशेषज्ञ शांतनु सान्याल कहते हैं कि सरकार की जवाबदेही योजना की घोषणा करने के बाद ही खत्म हो जाती है. यह बहुत ही संदिग्ध जान पड़ता है कि लाभुक तक इसका लाभ पहुंचेगा या नहीं. एक सरकार जो पहले से ही कर्ज में डूबी हुई है, उनके लिए यह लग्जरी से कम नहीं है.

शांतनु कहते हैं कि लंबे समय में देखेंगे कि दान से लोगों के जीवन में बढ़ोतरी नहीं आती है. इसलिए बंगाल की महिलाओं को इसका असल फायदा मिलेगा, ऐसा लगता नहीं है.

गजल गायिका अनिंदिता मोइत्रा दास, जो पेशे से इंजीनियर हैं, मानती हैं कि ऐसी योजनाएं गहने की तरह होती हैं. उन्होंने कहा कि उन्होंने स्ट्रकचरल इंजीनियरिंग फर्म की शुरुआत सिर्फ महिला कर्मचारियों के साथ शुरू की थी. और इस तरह का प्रोजेक्ट ही महिला को सशक्त बनाएगा. इसमें दान का कोई भाव नहीं होता है. हां, कुछ महिलाओं को महीने में मदद (स्टाइपन) मिल जाएगी. लेकिन इससे वह कितनी सशक्त होगी. अगर सरकार महिला सशक्तिकरण को लेकर इतनी ही सजग होती, तो वह महिलाओं को बढ़ावा देती और उनका विकास करती- स्वयं सहायता समूह चलाने में मदद करती, आत्मनिर्भर बनने की ओर आगे बढ़ने में मदद करती. अगर महिलाएं आत्म निर्भर हो जातीं, तो ऐसी चैरिटेबल योजनाओं का कोई मतलब नहीं होता. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सबको बराबर का मौका मिले.

अकादमी चलाने वाली सुष्मिता बागची सेन ने कहा कि जिनके लिए महीने में सौ रुपये भी बहुत बड़ी चीज है, उनके लिए तो यह योजना महत्व रखती ही है. इस नजरिए से देखें, तो यह स्वागत योग्य कदम है. लेकिन सवाल कुछ और है. राज्य सरकार की सबसे बड़ी जवाबदेही यह है कि वह महिलाओं की दक्षता बढ़ाने के लिए क्या कदम उठा रही है. साथ ही राज्य सरकार उनके द्वारा बनाई गई वस्तुओं की मार्केटिंग ठीक से करती है या नहीं. यह महत्वपूर्ण विषय है. अगर ऐसा होता है, तो महिलाएं आत्म निर्भर होंगी और उन्हें किसी लक्खी भंडार योजना की जरूरत नहीं पड़ेगी.

अर्थशास्त्री प्रोबिर कुमार मुखोपाध्याय मानते हैं कि ऐसी चैरिटेबल घोषणाएं किसी भी सरकार को जनता के बीच बढ़त प्रदान करती हैं. वे वोट बैंक को अपील करते हैं. और अगर बाद में सरकार ऐसी योजनाओं को वापस ले लेती है, तो कोई कुछ कह भी नहीं सकता है, क्योंकि दान पाना किसी का अधिकार नहीं हो सकता है. दूसरी बात है कि राज्य कहां से इसके लिए पैसे जुटाएगा. उसकी आमदनी का स्त्रोत क्या है.

स्वयं सहायता चलाने वाली अनन्या दासगुप्ता ने सीएम को इस योजना के लिए धन्यवाद दिया. लेकिन वह भी मानती हैं कि बेहतर होता कि ममता सरकार किसी वैकल्पिक योजना को लेकर आती, जिसका उद्देश्य महिलाओं की आमदनी बढ़ाना होता, न कि दान पाना.

ये भी पढ़ें : पेगासस पर विपक्ष हमलावर, 'हिंदू ध्रुवीकरण' से लेकर 'सुपर इमरजेंसी' तक के लगे आरोप

कोलकाता : एक दिन पहले ममता बनर्जी ने लक्खी भंडार योजना (लक्ष्मी का खजाना) की शुरुआत की. इसके तहत अनुसूचित जाति और जनजाति महिलाओं को 1000 रुपये और सामान्य कोटि की महिलाओं को 500 रुपये प्रति माह दिए जाएंगे. योजना एक सितंबर से शुरू हो रही है. ममता ने चुनाव के दौरान इस योजना को लागू करने का वादा किया था.

यह मुख्य रूप से पॉकेट मनी स्कीम है. राज्य के 1.6 करोड़ परिवारों को इसका फायदा मिलेगा. हालांकि, महिला पेशेवरों, अर्थशास्त्रियों और राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इस योजना की शुचिता को लेकर सवाल उठाए हैं. उनके अनुसार पॉकेट मनी योजना महिलाओं को सिर्फ तुष्ट करने वाला है. यह कोई महिला सशक्तिकरण की ओर उठाया गया कदम नहीं है. योजना कब तक जारी रहेगी, कई लोगों ने इस पर सवाल उठाए हैं. उनका मानना है कि क्योंकि राज्य सरकार का खजाना पहले से तंग है, लिहाजा सरकार कब तक इसका बोझ उठाएगी, कहना मुश्किल है.

विशेषज्ञ मानते हैं कि लोकप्रियता हासिल करने के लिए केंद्र और राज्य दोनों ही स्तर पर सरकारें इस तरह की योजनाओं की शुरुआत करते रहते हैं. ऐसी योजनाएं वोट बैंक की राजनीति और सबका ध्यान आकर्षित करने वाली होती हैं.

राजनीतिक और आर्थिक विशेषज्ञ शांतनु सान्याल कहते हैं कि सरकार की जवाबदेही योजना की घोषणा करने के बाद ही खत्म हो जाती है. यह बहुत ही संदिग्ध जान पड़ता है कि लाभुक तक इसका लाभ पहुंचेगा या नहीं. एक सरकार जो पहले से ही कर्ज में डूबी हुई है, उनके लिए यह लग्जरी से कम नहीं है.

शांतनु कहते हैं कि लंबे समय में देखेंगे कि दान से लोगों के जीवन में बढ़ोतरी नहीं आती है. इसलिए बंगाल की महिलाओं को इसका असल फायदा मिलेगा, ऐसा लगता नहीं है.

गजल गायिका अनिंदिता मोइत्रा दास, जो पेशे से इंजीनियर हैं, मानती हैं कि ऐसी योजनाएं गहने की तरह होती हैं. उन्होंने कहा कि उन्होंने स्ट्रकचरल इंजीनियरिंग फर्म की शुरुआत सिर्फ महिला कर्मचारियों के साथ शुरू की थी. और इस तरह का प्रोजेक्ट ही महिला को सशक्त बनाएगा. इसमें दान का कोई भाव नहीं होता है. हां, कुछ महिलाओं को महीने में मदद (स्टाइपन) मिल जाएगी. लेकिन इससे वह कितनी सशक्त होगी. अगर सरकार महिला सशक्तिकरण को लेकर इतनी ही सजग होती, तो वह महिलाओं को बढ़ावा देती और उनका विकास करती- स्वयं सहायता समूह चलाने में मदद करती, आत्मनिर्भर बनने की ओर आगे बढ़ने में मदद करती. अगर महिलाएं आत्म निर्भर हो जातीं, तो ऐसी चैरिटेबल योजनाओं का कोई मतलब नहीं होता. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सबको बराबर का मौका मिले.

अकादमी चलाने वाली सुष्मिता बागची सेन ने कहा कि जिनके लिए महीने में सौ रुपये भी बहुत बड़ी चीज है, उनके लिए तो यह योजना महत्व रखती ही है. इस नजरिए से देखें, तो यह स्वागत योग्य कदम है. लेकिन सवाल कुछ और है. राज्य सरकार की सबसे बड़ी जवाबदेही यह है कि वह महिलाओं की दक्षता बढ़ाने के लिए क्या कदम उठा रही है. साथ ही राज्य सरकार उनके द्वारा बनाई गई वस्तुओं की मार्केटिंग ठीक से करती है या नहीं. यह महत्वपूर्ण विषय है. अगर ऐसा होता है, तो महिलाएं आत्म निर्भर होंगी और उन्हें किसी लक्खी भंडार योजना की जरूरत नहीं पड़ेगी.

अर्थशास्त्री प्रोबिर कुमार मुखोपाध्याय मानते हैं कि ऐसी चैरिटेबल घोषणाएं किसी भी सरकार को जनता के बीच बढ़त प्रदान करती हैं. वे वोट बैंक को अपील करते हैं. और अगर बाद में सरकार ऐसी योजनाओं को वापस ले लेती है, तो कोई कुछ कह भी नहीं सकता है, क्योंकि दान पाना किसी का अधिकार नहीं हो सकता है. दूसरी बात है कि राज्य कहां से इसके लिए पैसे जुटाएगा. उसकी आमदनी का स्त्रोत क्या है.

स्वयं सहायता चलाने वाली अनन्या दासगुप्ता ने सीएम को इस योजना के लिए धन्यवाद दिया. लेकिन वह भी मानती हैं कि बेहतर होता कि ममता सरकार किसी वैकल्पिक योजना को लेकर आती, जिसका उद्देश्य महिलाओं की आमदनी बढ़ाना होता, न कि दान पाना.

ये भी पढ़ें : पेगासस पर विपक्ष हमलावर, 'हिंदू ध्रुवीकरण' से लेकर 'सुपर इमरजेंसी' तक के लगे आरोप

Last Updated : Jul 23, 2021, 9:15 PM IST
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