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सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया - उच्चतम न्यायालय

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता.

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Published : May 5, 2021, 2:41 AM IST

Updated : May 5, 2021, 11:19 AM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि मराठा समुदाय को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित श्रेणी में नहीं लाया जा सकता.

बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय बुधवार को ब. जिसने राज्य में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था. न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगाी.

उच्चतम न्यायालय ने 26 मार्च को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मुद्दे पर लंबी सुनवाई में दायर उन हलफनामों पर भी गौर किया जाएगा कि क्या 1992 के इंदिरा साहनी फैसले (इसे मंडल फैसला भी कहा जाता है) पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत है, जिसमें आरक्षण की सीमा 50 फीसदी निर्धारित की गई थी.

यह भी पढ़ें-राज्यों में लॉकडाउन या बढ़ी हैं पाबंदियां, जानें अपने प्रदेश का हाल

संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई 15 मार्च को शुरू की थी. उच्च न्यायालय ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 फीसदी आरक्षण उचित नहीं है और रोजगार में आरक्षण 12 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए तथा नामांकन में यह 13 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि मराठा समुदाय को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित श्रेणी में नहीं लाया जा सकता.

बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय बुधवार को ब. जिसने राज्य में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था. न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगाी.

उच्चतम न्यायालय ने 26 मार्च को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मुद्दे पर लंबी सुनवाई में दायर उन हलफनामों पर भी गौर किया जाएगा कि क्या 1992 के इंदिरा साहनी फैसले (इसे मंडल फैसला भी कहा जाता है) पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत है, जिसमें आरक्षण की सीमा 50 फीसदी निर्धारित की गई थी.

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संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई 15 मार्च को शुरू की थी. उच्च न्यायालय ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 फीसदी आरक्षण उचित नहीं है और रोजगार में आरक्षण 12 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए तथा नामांकन में यह 13 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए.

Last Updated : May 5, 2021, 11:19 AM IST
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