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Madras HC: सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए मेडिकल दाखिलों में 7.5 प्रतिशत आरक्षण वैध

तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेज दाखिलों (medical college admissions) में सरकारी स्कूलों को दिए गए 7.5 फीसदी कोटे पर मद्रास हाईकोर्ट (The Madras High Court) ने गुरुवार को मुहर लगा दी. हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वो 5 साल में इस कोटे का रिव्यू करे ताकि देखा जा सके कि आगे इसकी जरूरत है या नहीं.

Madras HC
मेडिकल दाखिलों में 7.5 प्रतिशत आरक्षण वैध
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Published : Apr 7, 2022, 8:48 PM IST

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय (The Madras High Court) ने गुरुवार को तमिलनाडु सरकार के उस कानून को बरकरार रखा, जिसमें मेडिकल कॉलेज में दाखिले (medical college admissions) में सरकारी स्कूलों के छात्रों (students of government schools) के लिए 7.5 फीसदी सीटें आरक्षित की गई थीं. कोर्ट ने कहा कि कानून वैध है और सरकार के पास आरक्षण देने का अधिकार है. कोर्ट ने यह भी कहा कि पांच साल बाद आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए. यह मामला सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के छात्रों की ओर से दायर किया गया था.
तमिलनाडु में मेडिकल कॉलेजों के अंडर ग्रैजुएट कोर्सों में एडमिशन के लिए सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स को ये आरक्षण दिया गया है. हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिककर्ताओं ने दलील दी थी कि राज्य में जनरल कैटिगरी के स्टूडेंट्स के लिए महज 31 फीसदी सीटें ही बची हैं क्योंकि 69 प्रतिशत कोटा पहले से लागू है. अगर 7.5 प्रतिशत का ये कोटा अलग से दिया गया तो सामान्य वर्ग की सीटें और भी कम हो जाएंगी. सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार ने इस कोटे की वकालत करते हुए कहा कि इससे ग्रामीण-शहरी और अमीर-गरीब के बीच का फासला कम करने में मदद मिलती है क्योंकि अमीर और शहरी लोग ज्यादा मेडिकल सीटें ले जाते हैं. दोनों तबकों में सांस्कृतिक भिन्नता की वजह से भी गरीब और ग्रामीण छात्र पीछे रह जाते हैं.
मद्रास हाईकोर्ट ने इस कोटे के खिलाफ सभी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि राज्य सरकार को इस तरह की संस्थागत वरीयता देने का पूरा अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट भी इस पर मुहर लगा चुका है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस डी भारत चक्रवर्ती की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार को इस सरकारी स्कूल कोटे पर 5 साल में विचार करना होगा, जैसा कि आयोग ने सलाह दी थी. इस दौरान सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने के भी प्रयास किए जाएं ताकि इस आरक्षण को आगे बढ़ाने की जरूरत ही न पड़े.

पढ़ें: तमिलनाडु मेडिकल कॉलेज दाखिला : EWS कोटा पर रोक, ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण

फैसले को ऐतिहासिक (judgement as historic) बताते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने विधानसभा में बोलते हुए कहा कि कानून उचित आंकड़ों और चर्चा के आधार पर लाया गया था. स्टालिन ने कहा कि सामाजिक न्याय के लिए 10 महीने में द्रमुक सरकार (Third Victory For The DMK Government) की यह तीसरी जीत है. सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए आरक्षण अन्नाद्रमुक सरकार द्वारा लाया गया था. स्टालिन ने यह भी कहा कि द्रमुक सरकार ने सरकारी कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और प्रमुख स्व-वित्तपोषित कॉलेजों में इंजीनियरिंग / कृषि / मत्स्य पालन / पशु चिकित्सा पाठ्यक्रमों में 7.5 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए एक कानून पारित किया है.

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय (The Madras High Court) ने गुरुवार को तमिलनाडु सरकार के उस कानून को बरकरार रखा, जिसमें मेडिकल कॉलेज में दाखिले (medical college admissions) में सरकारी स्कूलों के छात्रों (students of government schools) के लिए 7.5 फीसदी सीटें आरक्षित की गई थीं. कोर्ट ने कहा कि कानून वैध है और सरकार के पास आरक्षण देने का अधिकार है. कोर्ट ने यह भी कहा कि पांच साल बाद आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए. यह मामला सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के छात्रों की ओर से दायर किया गया था.
तमिलनाडु में मेडिकल कॉलेजों के अंडर ग्रैजुएट कोर्सों में एडमिशन के लिए सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स को ये आरक्षण दिया गया है. हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिककर्ताओं ने दलील दी थी कि राज्य में जनरल कैटिगरी के स्टूडेंट्स के लिए महज 31 फीसदी सीटें ही बची हैं क्योंकि 69 प्रतिशत कोटा पहले से लागू है. अगर 7.5 प्रतिशत का ये कोटा अलग से दिया गया तो सामान्य वर्ग की सीटें और भी कम हो जाएंगी. सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार ने इस कोटे की वकालत करते हुए कहा कि इससे ग्रामीण-शहरी और अमीर-गरीब के बीच का फासला कम करने में मदद मिलती है क्योंकि अमीर और शहरी लोग ज्यादा मेडिकल सीटें ले जाते हैं. दोनों तबकों में सांस्कृतिक भिन्नता की वजह से भी गरीब और ग्रामीण छात्र पीछे रह जाते हैं.
मद्रास हाईकोर्ट ने इस कोटे के खिलाफ सभी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि राज्य सरकार को इस तरह की संस्थागत वरीयता देने का पूरा अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट भी इस पर मुहर लगा चुका है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस डी भारत चक्रवर्ती की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार को इस सरकारी स्कूल कोटे पर 5 साल में विचार करना होगा, जैसा कि आयोग ने सलाह दी थी. इस दौरान सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने के भी प्रयास किए जाएं ताकि इस आरक्षण को आगे बढ़ाने की जरूरत ही न पड़े.

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फैसले को ऐतिहासिक (judgement as historic) बताते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने विधानसभा में बोलते हुए कहा कि कानून उचित आंकड़ों और चर्चा के आधार पर लाया गया था. स्टालिन ने कहा कि सामाजिक न्याय के लिए 10 महीने में द्रमुक सरकार (Third Victory For The DMK Government) की यह तीसरी जीत है. सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए आरक्षण अन्नाद्रमुक सरकार द्वारा लाया गया था. स्टालिन ने यह भी कहा कि द्रमुक सरकार ने सरकारी कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और प्रमुख स्व-वित्तपोषित कॉलेजों में इंजीनियरिंग / कृषि / मत्स्य पालन / पशु चिकित्सा पाठ्यक्रमों में 7.5 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए एक कानून पारित किया है.

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