जयपुर. राजस्थान की राजधानी से करीब 42 किलोमीटर दूर सामोद की पहाड़ियों पर एक ऐसा हनुमान मंदिर है, जिसमें भगवान चट्टान में स्वयं ही प्रकट हुए. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले दुर्गम पहाड़ियों का सहारा लिया जाता था, और अब करीब 1100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है. मान्यता है कि यहां पहुंचने वाले हर व्यक्ति की मुराद पूरी होती है.
कहा जाता है कि भारत में सबसे ज्यादा मंदिर भगवान हनुमान के हैं. इनमें से कुछ मंदिर को साक्षात विग्रह, कुछ तपस्या स्थली और सिद्ध धाम के रूप में जाने जाते हैं. इन्हीं में से एक है सामोद वीर हनुमान जी. ये मंदिर छोटी काशी जयपुर से 42 किलोमीटर दूर चौमूं के ग्राम नांगल भरडा में सामोद पर्वत पर स्थित है. ये मंदिर राजस्थान के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है. इस मन्दिर में बजरंगबली की 6 फीट की प्रतिमा है. सामोद वीर हनुमान जी का मंदिर अपनी बसावट के लिए भी जाना जाता है. सामोद पर्वत पर विराजे भगवान हनुमान के दर्शन के लिए करीब 1100 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं.
बालाजी की सेवा में लगे जगद्गुरु अवध बिहारी देवाचार्य ने मंदिर का इतिहास बताते हुए कहा कि 700 साल पहले संत नग्नदास जी महाराज अपने शिष्य लालदास के साथ सामोद की पहाड़ियों पर तपस्या करने आए थे. एक रात नग्नदास महाराज के सपने में एक दृष्टांत हुआ. भगवान का जो स्वरूप सपने में दिखाई दिया, वो अगले दिन सुबह पहाड़ के अंदर से निकलती हुई एक शिला में भी नजर आया. फिर उन्होंने वीर घड़ी में हथौड़ी और टांची लेकर जिस चट्टान पर भगवान के दर्शन हुए थे, उसे वो हनुमानजी की प्रतिमा का आकार देने लगे.
मुख का निर्माण करने के बाद वो वहां पर्दा लगा कर तीर्थ यात्रा के लिए चले गए. वो तीर्थों का जल लाकर भगवान का स्नान कराना चाहते थे. अपनी अनुपस्थिति उन्होंने अपने शिष्य लालदास को उनके देखभाल का जिम्मा सौंपा था. तब लालदास जी के पास कोई व्यक्ति आया. जिसने पर्दा हटाकर दर्शन कराने की गुजारिश की, और नहीं मानने पर जबरदस्ती करते हुए पर्दा हटा दिया. पर्दा हटाते ही मूर्ति से इतनी जोर की गर्जना हुई कि आसपास के सारे ग्वाल- बाल सहम गए. इसके बाद नग्नदास महाराज भी जब लौटे तो उन्होंने अपने शिष्य को लताड़ा और बोले कि अगर कोई इस पर्दे को नहीं हटाता, तो यह मूर्ति मुंह बोला प्रसाद देती.
मान्यता है कि यहां पर जिन श्रद्धालु के कुओं में पानी नहीं होता, वो यहां से बालाजी का लड्डू लेकर जाते हैं, उनके कुएं खोदते ही पानी आ जाता है. जो भी आसपास के लोग गाय भैंस रखते हैं. उनसे निकलने वाले दूध का दही जमा कर वो पहला भोग भगवान हनुमान को लगाते हैं. जो कोई भी अनाज पैदा करता है, वो भी पहला धान भगवान को अर्पित करता है. यहां जो भी आता है उन सभी की मनोकामना पूर्ण होती है.
वहीं स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां पहले दुर्गम रास्ता था. यहां पगडंडी बनी हुई थी. जैसे-जैसे श्रद्धालुओं का कोई काम हुआ तो कुछ-कुछ सीढ़ियां धीरे-धीरे बनती चली गईं. इसी तरह के किसी भक्त ने भगवान के समक्ष अर्जी लगाई, उसका काम हुआ तो उसने सीढ़ियों पर छत डलवा दी. ये सब स्वप्रेरणा से हो रहा है. यहां महाराज ने ऋषि कुल विद्यालय और वीर हनुमान गौशाला भी संचालित कर रखी है. जबकि समय-समय पर श्रद्धालु यहां सवामणी करते हैं. भगवान के सानिध्य में सब कुछ यहां मंगल हो रहा है.
आपको बता दें कि सीतारामजी वीर हनुमान ट्रस्ट सामोद की ओर से ये मंदिर बनाया गया था. एक मान्यता ये भी है कि यहां पर स्थापित होने के लिए खुद हनुमान जी ने ही आकाशवाणी करते हुए अपनी इच्छा प्रकट की थी.