नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव के कैंपेन में जातिगत जनगणना की काट परिवारवाद का विरोध और हिंदुत्व के ऊपर हो रहे प्रहार को जोर-शोर से उठाने के साथ-साथ बीजेपी रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को सामने रखकर देश की ओबीसी जातियों में भी अति पिछड़ी रह गई जातियों के वोट बैंक को साधेगी. इसका आधार रखा जाएगा रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर और पार्टी सूत्रों की माने तो पार्टी ने दूसरा दांव समान नागरिक संहिता का खेलने की पूरी तैयारी कर ली है.
आइए जानते हैं पार्टी बिहार की जातिगत जनगणना की काट कैसे करेगी. बीजेपी सूत्रों की माने तो कुछ राजनीतिक पार्टियां जिनमें आरजेडी, समाजवादी पार्टी मुख्य तौर पर ओबीसी जातियों के नाम पर और मुख्य तौर पर यादव वोट बैंक को ही फायदा पहुंचाती रही है, जिससे बाकी अति पिछड़ी जातियां इन राज्यों में अभी तक हाशिए पर ही हैं और पार्टी ऐसा प्लेटफार्म तैयार कर रही है कि अभी तक पिछड़ी रह जाने वाली जातियों को यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि देश के संविधान ने ओबीसी की सभी जातियों का जीवन स्तर सुधारने के लिए उन्हें जो 27 फीसदी का आरक्षण दिया था, उसका सबसे ज्यादा फायदा यादव जैसी जातियों ने ही उठाया है.
ये कुछ पार्टियों के नेताओं के जातिगत फायदे को देखते हुए ही किया गया. बहरहाल बीजेपी अब उन पार्टियों को अपने समर्थन में लाने की कोशिश कर रही है, जो जातियां कुछ जातियों के वर्चस्व की वजह से आरक्षण का लाभ नहीं उठा पा रहीं हैं और सूत्रों की माने तो इन पिछड़ी जातियों से कोटे के अंदर कोटा दिए जाने की मांग भी उठाई जा सकती है. इसके अलावा बीजेपी का हमेशा से ट्रंप कार्ड रहा हिंदुत्व भी इस बार राम मंदिर के अलावा यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता के माध्यम से खेला जाएगा, ताकि पुराने मुद्दे रिपीट ना हों और देश में समान नागरिक संहिता का मामला भी तूल पकड़ ले.
इसकी शुरुआत बीजेपी राज्यों से करेगी. जिसमें सबसे पहला उत्तराखंड राज्य यूसीसी लागू करने वाला हो सकता है. सूत्रों की माने तो बुधवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूसीसी के सभी सदस्यों के साथ गृह मंत्री से इस मुद्दे पर मुलाकात कर रिपोर्ट भी सौंपी थी. हालांकि आधिकारिक वजह गृहमंत्री को इन्वेस्टर्स सबमिट के लिए रूद्रप्रयाग आमंत्रित किया जाना था, मगर अंदरखाने वजह ये भी थीं.
यूसीसी समिति की अध्यक्ष रंजना देसाई समेत अन्य सदस्य ने भी गृह मंत्री से मुलाकात की थी और समान नागरिक संहिता को लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य भी बन सकता है. राज्य में इसके लिए ड्राफ्ट पहले ही तैयार कर लिया गया है और इसके आधार पर बीजेपी विपक्षी पार्टियों के जातिगत कार्ड को तोड़ते हुए, देश में हिंदुत्व भी सामने ला सकती है, क्योंकि कहीं न कहीं समान नागरिक संहिता का विरोध वही पार्टियां कर रहीं हैं, जो अल्पसंख्यक और तुष्टिकरण की राजनीति को आधार बनाकर अपनी पार्टियों की राजनीति चलाती रही हैं.