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2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी, भाजपा की नजर पुराने सहयोगियों पर

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियां अभी से रणनीति बनाने में जुटी हैं. पक्ष और विपक्ष की सभी पार्टियों के समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं. विपक्षी एकजुटता का आह्वान करने वाले बिहार के सीएम नीतीश कुमार को मंगलवार को झटका लगा है. जीतनराम मांझी के बेटे ने इस्तीफा दे दिया है. ऐसे में भाजपा की नजर 'हम' समेत अपने पुराने सहयोगियों पर है. ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट.

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भाजपा की तैयारी
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Published : Jun 13, 2023, 9:16 PM IST

सुनिए भाजपा प्रवक्ता ने क्या कहा

नई दिल्ली: साल 2014 में बीजेपी ने अपने दम पर 282 सीटें जीतीं और एनडीए ने मिलकर 336, साल 2019 में बीजेपी ने 303 और एनडीए ने 352 सीटें जीतीं. दोनों ही चुनाव में ये ऐसा जादुई आंकड़ा था जिसे लेकर बीजेपी पूरे पांच साल तक विश्वास से लबरेज होकर सरकार में निर्णय लेती रही.

समीक्षकों ने इसे बीजेपी का स्वर्णिमकाल तक करार दिया. लेकिन धीरे-धीरे 2024 के चुनाव से पहले बीजेपी के अपने पुराने सहयोगी अलग होते गए और एक समय पार्टी के साथ कदमताल मिलाकर वर्षों तक चलनेवाली पार्टियों ने या तो विपक्ष का दामन थाम लिया या फिर एकला चलो की राह पर निकल पड़ीं. लेकिन क्या बीजेपी 'बड़े भाई' का फर्ज निभाते हुए लोकसभा चुनाव से पहले अपनी रणनीति बदल रही है और पार्टी को 25 साल पुराने सहयोगियों की फिर से याद आ रही है. क्या बीजेपी गठबंधन की पुरानी सहयोगियों को एकबार फिर से वापस लाने की कवायद में है.

मांझी के बेटे का इस्तीफा, क्या हैं मायने? : सूत्रों की मानें तो अपने पुराने सहयोगियों को वापस गठबंधन में लाने की भाजपा पूरी कोशिश चल रही है. मंगलवार को बिहार के दलित चेहरा जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन मांझी ने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. सूत्रों की मानें तो 2019 के चुनाव में 3 सीटों पर नालंदा, गया और औरंगाबाद से चुनाव लड़ा था, मगर कहीं भीं उनकी जीत नहीं हुई थी.

इस बार 'हम' 5 सीटों की मांग कर रही थी, जिसपर कथित तौर पर नीतीश कुमार ने पार्टी को जेडीयू में विलय करने की शर्त रख दी. उसके बाद ही इस्तीफे का खेल शुरू हुआ. यहां अटकलें ये भी लग रही हैं कि अप्रैल में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर चुके जीतनराम मांझी एकबार फिर एनडीए का दामन थाम सकते हैं.

चंद्रबाबू नायडू से शाह ने की थी मुलाकात : इसी तरह सूत्रों के मुताबिक हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी के प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू से मुलाकात की थी. 2019 में एनडीए से अलग हो चुकी इस पार्टी के प्रमुख से मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले लोकसभा चुनाव में तेलुगु देशम पार्टी एक बार फिर एनडीए के गठबंधन में शामिल हो सकती है. यही नहीं शिवसेना का एक बड़ा धड़ा जो महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री के साथ अलग हुआ वो बीजेपी को समर्थन दे रहा है और लोकसभा चुनाव भी साथ मिलकर लड़ने का संकेत दे चुका है.

यदि पंजाब के बीजेपी के पुराने सहयोगी की बात करें तो अकाली दल को लेकर पार्टी असमंजस में तो है मगर जिस तरह सीनियर बादल यानी प्रकाश सिंह बादल के निधन पर प्रधानमंत्री समेत तमाम बड़े नेता उनके गांव पहुंचे और पीएम ने जो सह्रदयता दिखाई उसे देखकर कयास फिर से लगाए जा रहे हैं कि ये पार्टियां एकबार फिर एक प्लेटफार्म पर आ सकती हैं. वहीं, बीजेपी इस बात पर बहुत गर्ज भी नहीं रखती है.

अग्रवाल बोले, पुराने सहयोगी आएं तो दिक्तक नहीं : इस मुद्दे पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि बीजेपी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है और विशाल हृदय रखने वाली पार्टी है यदि कोई आना चाहता तो उसे मना नही करती. उन्होंने कहा कि जहां तक प्रधानमंत्री की लोकप्रियता की बात है पीएम 'सबका साथ और विश्वास' को लेकर चलते हैं. ऐसे में कोई भी चाहे वो पुराने सहयोगी ही क्यों न हों यदि आना चाहते हैं तो पार्टी को इसमें कोई दिक्कत नहीं है.

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नई दिल्ली: साल 2014 में बीजेपी ने अपने दम पर 282 सीटें जीतीं और एनडीए ने मिलकर 336, साल 2019 में बीजेपी ने 303 और एनडीए ने 352 सीटें जीतीं. दोनों ही चुनाव में ये ऐसा जादुई आंकड़ा था जिसे लेकर बीजेपी पूरे पांच साल तक विश्वास से लबरेज होकर सरकार में निर्णय लेती रही.

समीक्षकों ने इसे बीजेपी का स्वर्णिमकाल तक करार दिया. लेकिन धीरे-धीरे 2024 के चुनाव से पहले बीजेपी के अपने पुराने सहयोगी अलग होते गए और एक समय पार्टी के साथ कदमताल मिलाकर वर्षों तक चलनेवाली पार्टियों ने या तो विपक्ष का दामन थाम लिया या फिर एकला चलो की राह पर निकल पड़ीं. लेकिन क्या बीजेपी 'बड़े भाई' का फर्ज निभाते हुए लोकसभा चुनाव से पहले अपनी रणनीति बदल रही है और पार्टी को 25 साल पुराने सहयोगियों की फिर से याद आ रही है. क्या बीजेपी गठबंधन की पुरानी सहयोगियों को एकबार फिर से वापस लाने की कवायद में है.

मांझी के बेटे का इस्तीफा, क्या हैं मायने? : सूत्रों की मानें तो अपने पुराने सहयोगियों को वापस गठबंधन में लाने की भाजपा पूरी कोशिश चल रही है. मंगलवार को बिहार के दलित चेहरा जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन मांझी ने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. सूत्रों की मानें तो 2019 के चुनाव में 3 सीटों पर नालंदा, गया और औरंगाबाद से चुनाव लड़ा था, मगर कहीं भीं उनकी जीत नहीं हुई थी.

इस बार 'हम' 5 सीटों की मांग कर रही थी, जिसपर कथित तौर पर नीतीश कुमार ने पार्टी को जेडीयू में विलय करने की शर्त रख दी. उसके बाद ही इस्तीफे का खेल शुरू हुआ. यहां अटकलें ये भी लग रही हैं कि अप्रैल में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर चुके जीतनराम मांझी एकबार फिर एनडीए का दामन थाम सकते हैं.

चंद्रबाबू नायडू से शाह ने की थी मुलाकात : इसी तरह सूत्रों के मुताबिक हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी के प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू से मुलाकात की थी. 2019 में एनडीए से अलग हो चुकी इस पार्टी के प्रमुख से मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले लोकसभा चुनाव में तेलुगु देशम पार्टी एक बार फिर एनडीए के गठबंधन में शामिल हो सकती है. यही नहीं शिवसेना का एक बड़ा धड़ा जो महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री के साथ अलग हुआ वो बीजेपी को समर्थन दे रहा है और लोकसभा चुनाव भी साथ मिलकर लड़ने का संकेत दे चुका है.

यदि पंजाब के बीजेपी के पुराने सहयोगी की बात करें तो अकाली दल को लेकर पार्टी असमंजस में तो है मगर जिस तरह सीनियर बादल यानी प्रकाश सिंह बादल के निधन पर प्रधानमंत्री समेत तमाम बड़े नेता उनके गांव पहुंचे और पीएम ने जो सह्रदयता दिखाई उसे देखकर कयास फिर से लगाए जा रहे हैं कि ये पार्टियां एकबार फिर एक प्लेटफार्म पर आ सकती हैं. वहीं, बीजेपी इस बात पर बहुत गर्ज भी नहीं रखती है.

अग्रवाल बोले, पुराने सहयोगी आएं तो दिक्तक नहीं : इस मुद्दे पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि बीजेपी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है और विशाल हृदय रखने वाली पार्टी है यदि कोई आना चाहता तो उसे मना नही करती. उन्होंने कहा कि जहां तक प्रधानमंत्री की लोकप्रियता की बात है पीएम 'सबका साथ और विश्वास' को लेकर चलते हैं. ऐसे में कोई भी चाहे वो पुराने सहयोगी ही क्यों न हों यदि आना चाहते हैं तो पार्टी को इसमें कोई दिक्कत नहीं है.

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