नई दिल्ली: आंकड़ों की मानें तो करीब 17000 मेगावाट क्षमता वाली 17 परियोजनाएं कुल आठ राज्यों में निर्माणाधीन हैं. इन परियोजनाओं की न सिर्फ समय सीमा बढ़ी है बल्कि इनकी लागत भी कई गुना तक बढ़ गई है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार में चार ऐसी थर्मल पॉवर परियोजनाएं हैं, जिनमें समय और लागत दोनों बढ़ गई हैं. बिहार के बाढ़ एसटीपीपी-I, एनटीपीसी की यूनिट I, II और III, 660 मेगावाट की क्षमता वाले प्रोजेक्ट्स को क्रमश: दिसंबर 2020, सितंबर 2021 और जून 2022 तक पूरा करके ट्रायल रन शेड्यूल होना चाहिए था. इन तीनों इकाइयों की लागत की बात करें तो इसकी मूल लागत 8683 करोड़ से 145.16 प्रतिशत बढ़कर 21312.1 करोड़ हो गई है. इसी तरह 250 मेगावाट के लिए नबी नगर टीपीपी, एनटीपीसी और रेलवे के संयुक्त उद्यम, भेल जैसी परियोजनाओं में पहले से ही लागत के रूप में इसकी 5352.51 करोड़ से 9996.59 करोड़ तक 86.76 प्रतिशत से अधिक की लागत बढ़ी है.
झारखंड में 2780 मेगावाट की बिजली उत्पादन क्षमता वाली दो परियोजनाएं की लागत और समय बढ़ गया है. यहां के गाडरवारा एसटीपीपी/एनटीपीसी/बीटीजी-भेल की 800 मेगावाट की बिजली की क्षमता वाली दो इकाइयों को 2020 तक पूरा किया जाना था. लेकिन सिर्फ समय और लागत में ही वृद्धि हुई. इसी तरह ओडिशा में दो परियोजनाएं, राजस्थान में दो परियोजनाएं, तमिलनाडु और तेलंगाना में एक-एक परियोजनाओं व उत्तर प्रदेश में चार परियोजनाएं पहले ही भारी मात्रा में लागत बढ़ा चुकी हैं.
माना जा रहा है कि थर्मल पावर प्लांट्स में देरी की वजह भूमि अधिग्रहण, अनुबंध विवाद आदि हैं. एक अधिकारी ने कहा कि हम अनुबंध विवादों को हल करने में सक्षम हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं जहां भूमि अधिग्रहण में देरी हुई है. अधिकारी ने कहा कि किसानों ने लगभग एक करोड़ प्रति एकड़ मुआवजे की मांग की है, जो कि परियोजना को अव्यवहारिक बनाता है. रिकॉर्ड के अनुसार जनवरी 2022 तक 395.07 GW की स्थापित बिजली क्षमता के साथ भारत दुनिया भर में बिजली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है. 2022 में बिजली की खपत 1894.7 टेरावाट प्रति घंटे तक पहुंचने का अनुमान है.
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