नई दिल्ली : दिसंबर 2020 में नेपाल ने उस समय एक राजनीतिक संकट देखा जब नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने संसगद को भंग करने की मांग की. इसके बाद अब देश में राजनीतिक अशांति के बीच पार्टी के अलग-अलग समूहों की एक केंद्रीय समिति की बैठक ने रविवार को प्रधानमंत्री ओली को पार्टी से निष्कासित कर दिया.
इस निर्णय ने पार्टी को दो समूहों में विभाजित कर दिया और पार्टी चिन्ह पर विवाद खड़ा कर दिया, लेकिन चुनाव आयोग ने आधिकारिक पार्टी के रूप में किसी भी गुट को पार्टी चिन्ह देने से इनकार कर दिया.
अब सभी की निगाहें चुनाव आयोग पर टिकी हैं, जो इस निष्कर्ष पर आने के लिए दस्तावेजों और कानूनों का अध्ययन कर रहा है कि किस गुट को सूर्य चुनाव चिन्ह दिया जाए.
हालांकि, सत्तारूढ़ कम्यूनिस्ट पार्टी औपचारिक रूप से विभाजित नहीं हुई है, लेकिन हिमालयी राष्ट्र में राजनीतिक अनिश्चितता और अस्थिरता लाने वाली संसद को भंग करने के नेपाली प्रीमियर के फैसले के बाद वास्तव में इसे विभाजित माना जा रहा है.
तो आगे क्या होता है और क्या दांव पर लगा है? यह जानने के लिए ईटीवी भारत ने नेपाल के राजनीतिक हालात पर एक विशेषज्ञ से बात की.
ईटीवी भारत से बात करते हुए पूर्व राजदूत एसडी मुनि ने कहा, 'आगे हम अस्थिरता और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और संघर्षों की उम्मीद करते हैं. जब तक पार्टी की स्थिति और आंतरिक संघर्ष हल नहीं हो जाता, अनिश्चितता बनी रहेगी.
एक चुनाव मुद्दे को हल कर सकता है, लेकिन चुनाव संवैधानिक रूप से मान्य नहीं है. जिस तरह से विघटन किया गया है, वह संविधान की भावना के विपरीत है, इसलिए लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे.
मुनि ने कहा कि यह अस्थिरता बनी रहेगी और प्रतिरोध भी होगा. उन्हों ने कहा कि चीन सहित भारत दोनों का नेपाल में बहुत कुछ दांव पर लगा है. चीन ने नेपाल पर बहुत पैसा लगाया है और कुछ और करने की योजना बनाई है. चीन ने नेपाल में सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक सुरक्षा को लेकर बहुत इनवेंस्टमेंट किया है.
मुनि ने दोहराया कि भारत और चीन दोनों ही देश नेपाल में गहरी रुचि लेंगे, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि नेपाल में किस तरह का राजनीतिक शासन आता है.
पूर्व राजदूत कहते हैं कि ऐसी खबरें हैं कि ओली, जो पहले भारत के खिलाफ थे और चीनी प्रभाव में आ गए थे, उन्होंने (ओली) अब खुद को चीन से दूर कर लिया है और भारत की तरफ झुक रहे हैं, लेकिन ये सभी अप्रत्याशित मामले हैं, लोग राजनीतिक प्रस्थितियों के अनुसार बदल सकते हैं. उन्होंने कहा कि यह एक नाजुक स्थिति है और मुझे लगता है कि दोनों देश एक तरह की व्यवस्था बनाने की कोशिश करेंगे, जो उनके लिए अधिक उपयुक्त हो.
मुनि ने आगे कहा कि नेपाल के चुनाव आयोग के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कि आधिकारिक पार्टी के रूप में किसी भी गुट को मान्यता नहीं दी जाएगी.
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने एक बहुत ही संदेहास्पद स्थिति ले ली है. दोनों ही गुटों ने आयोग को पार्टी की वास्तविक ताकत की रिपोर्ट नहीं दी है, क्योंकि पार्टी की संख्या में परिवर्तन हुए हैं.
मुनि ने बताया कि आयोग ने एक तकनीकी पॉजिशन ले ली है, जो ओली का समर्थन करती है क्योंकि वह अल्पमत में है.
समस्या यह है कि सत्तारूढ़ कम्यूनिस्ट पार्टी अभी पूरी तरह से विभाजित नहीं हुई है, उन्होंने ओली को निष्कासित कर दिया है, लेकिन ओली के नेतृत्व वाले गुट या प्रचंड के नेतृत्व वाले गुट द्वारा कोई आम सभा नहीं हुई है.
नेपाल एक संघीय देश है और इसमें सात राज्य हैं. क्योंकि विभाजन अभी तक राज्यों में नहीं हुआ है और इसलिए, विभाजन अधूरा है. विभाजन न्यायपालिका, ईसी और विभिन्न अन्य निकाय ओली का समर्थ कर सकते हैं, क्योंकि ओली ने वहां अपने लोगों को रखा है, वो उनके पक्ष में हैं. चूंकि राष्ट्रपति ओली का पक्ष ले रही हैं, इसलिए मुझे लगता है कि केपी शर्मा ओली बिना किसी राजनीतिक स्थिरता के प्रधानमंत्री बने रहेंगे.
उन्होंने कहा कि जब तक एक गठबंधन सामने नहीं आ जाता, हम नेपाल में राजनीतिक अशांति देखेंगे.
पढ़ें - एलएसी पर झड़प में चीन के कई जवान घायल
पूर्व राजदूत ने कहा कि यूनिफाइड-मार्क्सवादी-लेनिनवादी (यूएमएल) और माओवादी दोनों ही वर्ग पहले कभी एक दूसरे के साथ खुश नहीं थे. उन्होंने कहा कि मेरे विचार में विभाजन के बाद भी सत्ताधारी दल बहुत मजबूत नहीं होगा.
दूसरे यह कि ओली गठबंधन की तलाश करेंगे और सत्ता काबिज के लिए राजा और नेपाली कांग्रेस के करीब जाने की कोशिश करेंगे.
बता दें कि प्रधानमंत्री ओली ने पिछले साल 20 दिसंबर को संसद को भंग करने का फैसला किया था और इस साल अप्रैल-मई में नए सिरे से चुनाव का आह्वान किया था. इस कदम को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने भी मंजूरी दी थी.
सूत्रों के अनुसार घोषणा के तुरंत बाद एनसीपी दो गुटों में विभाजित हो गया, जिनमें से प्रत्येक ने अपने स्वयं के प्रामाणिक होने का दावा किया.
हिमालयी राष्ट्र में इस तरह के राजनीतिक विकास या अशांति के बीच, नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप गायवाली भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की 6 वीं बैठक में विदेश मंत्री स्तर पर भाग लेने के लिए भारत आए थे.