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राजस्थानः कैल्शियम रिच चुकंदर, बथुआ, पालक सहित कई चीजों से बना हर्बल कैप्सूल बढ़ा रही इम्युनिटी और न्यूट्रिशन

राजस्थान के कोटा विश्वविद्यालय परिसर में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में हर्बल और फाइटोन्यूट्रिएंट्स (Herbal Capsules in Kota) तैयार किए जा रहे हैं. ये फाइटोन्यूट्रिएंट्स कैप्सूल के रूप में बन रहे हैं. कृषि विज्ञान केंद्र की स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं ऐसे करीब 19 प्रकार के कैप्सूल तैयार कर रही हैं.

Herbal Capsules in Kota, Kota University preparing Herbal Capsules
कोटा में तैयार हो रहे हर्बल कैप्सूल.
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Published : Jun 1, 2022, 6:43 PM IST

कोटा. भागदौड़ भरी जिंदगी ने हमारे खान-पान और दिनचर्या पर भी असर डाला है. जिसके कारण हमारे भोजन करने के समय से लेकर तरीके में भी बदलाव आया है. आज के बच्चों की तो पूरी डाइट ही फास्ट फूड पर निर्भर हो गई है. ऐसे में जो परंपरागत फल और सब्जियों से न्यूट्रीशन उन्हें मिलता था, वो कम हो गया है. ऐसे ही लोगों के लिए कोटा विश्वविद्यालय परिसर में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में हर्बल और फाइटोन्यूट्रिएंट्स तैयार किया जा रहा है. इन्हें फाइटोन्यूट्रिएंट्स (Phytonutrients) कैप्सूल के रूप में बनाया जा रहा है. ऐसे में अगर कोई बच्चा बथुआ, पालक, चुकंदर, सफेद मूसली या गाजर का सीधा सेवन नहीं कर पाता है, तो उनको ये कैप्सूल दिया जा सकता है.

कैप्सूल के जरिए उन्हें जरूरी न्यूट्रिएंट्स मिल सकेगा. कोटा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र की स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं ऐसे करीब 19 प्रकार के कैप्सूल तैयार कर रही हैं. उन्होंने एक कदम और बढ़कर इन फाइटोन्यूट्रिएंट्स का कॉम्बो पैक भी तैयार किया है. कॉम्बो पैक में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए कई तरह के विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, जिंक और अमीनो एसिड को शामिल किया गया है.

कोटा में तैयार किए जा रहे हर्बल कैप्सूल.

पहले एक बनाया, सफल होने पर 19 तक पहुंचे : कृषि विश्वविद्यालय कोटा की मानव संसाधन निदेशक डॉक्टर ममता तिवारी का कहना है कि मनुष्य की जीवन शैली में काफी परिवर्तन हुआ है. हम लंबे समय तक बैठे रहने, एयर कंडीशन और आधुनिक सुख-सुविधाओं के आदी हो गए हैं. इससे स्वास्थ्य पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय चिकित्सा पद्धति के अनुसार कैप्सूल तैयार किया है, जिन्हें आसानी से लोग उपयोग कर सकें.

पढ़ें. आदिवासी महिलाओं के जीवन को खुशियों से भर रहे हर्बल रंग, आत्मनिर्भर बनने से सुधर रही आर्थिक स्थिति... विदेशों तक है डिमांड

कैल्शियम रिच चुकंदर, मनुष्य के लिए गुणकारी लहसुन, गाजर, आंवले, सफेद मूसली और अश्वगंधा सहित कई तरह के कैप्सूल बनाई जाती है. जिसको लोगों ने काफी सराहा है और इनकी काफी अच्छी बिक्री भी हो रही है. इनमें आंवला, अश्वगंधा, मैथी, मीठा नीम, अजवाइन, नीम, गाजर, चुकंदर, सफेद मूसली, नीम गिलोय, करेला, सहजना, हाड़जोड़, लहसुन, सूखे अदरक (सोंठ), पालक, बथुआ, निर्गुणी और क्विनोआ शामिल हैं.

सीआईएआई भोपाल में कैप्सूल की न्यूट्रीशन एनालिसिस: डॉ. तिवारी का कहना है कि भारत में कई सब्जियां, फल फूल और जड़ी बूटियां उत्पादित होती हैं, जो पौष्टिक गुणों से भरपूर हैं. इन्हीं को देखते हुए हमने हर्बल कैप्सूल तैयार किए हैं. इन्हीं फाइटोन्यूट्रिएंट्स और न्यूट्रास्यूटिकल (Phytonutrients and Nutraceuticals) को अब वैज्ञानिक जगत में चिकित्सा पद्धति में शामिल किया जा रहा है, जिसे मेडिकल हरबलिज्म नाम दिया गया है. शुरुआत में एक-एक कैप्सूल बनाया गया. इसके बाद करीब हम करीब 19 तरह के कैप्सूल बना चुके हैं. इनका इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग (सीआईएआई) भोपाल में न्यूट्रीशन एनालिसिस करवाया गया है. जिसके रिपोर्ट में सामने आया कि इनके पौस्टिक गुण में उबालने, सुखाने और प्रोसेसिंग के बाद कोई कमी नहीं आई है.

पहले इंडिविजुअल फिर कोंबो पैक बनाएं : डॉ. तिवारी ने बताया कि इन कैप्सूल को कृषि विज्ञान केंद्र के जरिए स्वयं सहायता समूह की महिलाएं बना रही हैं. वे पहले इन कैप्सूल को अलग-अलग बेच रही थी. जिसके बाद हमने एक तरह के गुणकारी कैप्सूल का कॉम्बो पैक बना दिया. इन पैक में 3 से लेकर 5 तरह के कैप्सूल शामिल किए जाते हैं. उन्होंने बताया कि स्वयं सहायता समूह की महिलाएं करीब 16 तरह के फाइटोन्यूट्रिएंट्स हर्बल कैप्सूल के कॉम्बो पैक बना रही है. जिनमें हेयर थेरेपी, एंटी पिंपल, ग्लोइंग स्किन, एंटी डायबिटीज, एंटी अर्थराइटिस, एंटीअस्थमेटिक, एंटी ओबेसिटी, एंटी एनीमिया, डाइजेशन, एक्टिव लंग्स, एक्टिव लीवर, मेमोरी प्लस, इम्यूनिटी बूस्टर, ओस्टियो प्रमोटर, आई केयर और मदर केयर शामिल हैं. जिनकी बड़ी मात्रा में सेल हो रही है.

पढे़ं. उदयपुर में राज्य का सबसे बड़ा ऋण वितरण शिविर, 1200 महिला स्वयं सहायता समूहों को बैंक ऋणों का वितरण

1 से 5 दिन लग रहे हैं कैप्सूल बनने : कैप्सूल तैयार कर रही गायत्री वैष्णव का कहना है कि 19 तरह के कैप्सूल बनाने में अलग-अलग समय लगते हैं. इन कैप्सूल को बनाने में 1 दिन से लेकर 4 से 5 दिन तक लग जाते हैं. इन्हें धोना, सुखाना, पीसना, प्रोसेस करके कैप्सूल में पैक में लाया जाता है. हेमलता सोनगरा ने बताया कि कुछ कैप्सूल को सब्जियों को सुखाकर बनाया जाता है. कुछ ऐसी सब्जियां हैं, जिनमें गाजर, आंवला, चुकंदर, पालक, गिलोय में 3 से 4 दिन भी सूखने में लग जाते हैं, इसलिए उन्हें थोड़ा समय लगता है.

महीने में एक लाख से ज्यादा कैप्सूल की बिक्री : सुमन शर्मा का कहना है कि उन्होंने भी कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग ली थी. हाथ से 200 कैप्सूल बनाते एक दिन लग जाता है. जबकि केवीके में उपलब्ध मशीनों से चंद मिनटों में ही 200 कैप्सूल बन जाते हैं. ऐसे में मशीन के जरिए एक दिन में हजार कैप्सूल बनाए जा सकते हैं. इन कैप्सूल को हम 3 से 5 रुपए में बेचते हैं. एक डिब्बे में करीब 50 कैप्सूल होते हैं. एक बॉक्स 90 से 150 रुपए तक का आता है. जबकि कॉम्बो पैक में 3 से 5 तरह के कैप्सूल होते हैं. जिनकी कीमत 450 से 750 रुपए तक होती है. इसके अलावा हम इन्हें मेले और प्रदर्शनों में भी लेकर जाते हैं, जहां भी बड़ी संख्या में इसकी बिक्री होती है. करीब 1 महीने में हम एक लाख से ज्यादा कैप्सूल बेच देते हैं.

कॉम्बो पैक में शामिल कैप्सूल और फायदा

  • हेयर थैरेपी : आवंला, मैथी, मीठा नीम : बालों को काला और मजबूत चमकदार बनाना, बालों के झड़ने के लिए जिम्मेदार कोर्टिसोल का स्तर नियंत्रित करना.
  • एंटी पिंपल और ग्लोइंग स्किन: नीम, आवंला, मैथी, अजवाइन, गाजर, चुकंदर : शरीर को जीवाणु रोधी व डिटॉक्सिफाई करना, रक्त शोधक व विटामिन सी को बढ़ाना, पाचन तंत्र में सुधार करना, कब्ज से राहत, एंटी ऑक्सीडेंट.
  • एंटी डायबिटीज: सफेद मूसली, मैथी, अजवाइन, गिलोय, करेला, सहजना : इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ाना, मधुमेह को नियंत्रण करना, शुगर लेवल कम करना, एंटी ऑक्सीडेंट, बीपी को कंट्रोल करना.
  • एंटी अर्थराइटिस: अश्वगंधा, मैथी, सहजना, नीम, लहसुन: सूजन को कम करना, हड्डियों में चिकनाई बढ़ाना व दर्द से राहत.
  • एंटी अस्थमेटिक: अजवाइनज़ सहजना, सोंठ, मैथी: सर्दी खांसी को दूर करना, सांस की तकलीफ में राहत, कब्ज से दूर रखना.
  • एंटी ओबेसिटी: अजवाइन, मैथी, मीठा नीम, लहसुन : शरीर के चयापचय में सुधार, कब्ज मिटाना, कोलेस्ट्रोल कंट्रोल, वजन कम करना.
  • एंटी एनीमिया: गाजर, चुकंदर, पालक, बथुआ : शरीर को डिटॉक्सिफाई करना, ब्लड प्लेटलेट व हिमोग्लोबिन बढ़ाना और आयरन का स्रोत.
  • डाइजेशन: बथुआ, अजवाइन, आंवला, पालक: पेट की बीमारियों मिटाना, कब्ज से राहत, फाइबर डाइट और पाचन में सुधार.

पढ़ें. interaction with women in Ajmer: प्रदेश में पहले महिला बैंक की होगी स्थापना, इस टर्म में 10 लाख ग्रामीण महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ने का लक्ष्य - रमेश मीणा

  • एक्टिव लंग्स: सहजना, गाजर, करेला, निर्गुणी, मैथी : सांस की तकलीफ में राहत, इम्यूनिटी बढ़ाना, खांसी जुखाम मिटाना.
  • एक्टिव लीवर: करेला, बथुआ, चुकंदर, क्विनोआ व गिलोय : शरीर को डिटॉक्सिफाई करना, रक्तशोधक, प्लेटलेट बढ़ाना, लीवर को ठीक रखना, पोटेशियम, प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, एमिनो एसिड व जिंक का स्त्रोत.
  • मेमोरी प्लस: क्विनोआ, आंवला, चुकंदर, निर्गुणी: याददाश्त और मानसिक स्वास्थ्य बढ़ाना, दिमाग को ठंडा रखना.
  • इम्यूनिटी बूस्टर: सफेद मूसली, आंवला, चुकंदर, निर्गुणी व गिलोय : इम्यूनिटी और खून बढ़ाना, हड्डियों को मजबूत करना, बॉडी से आलस दूर करना.
  • ओस्टियो प्रोमोटर: चुकंदर, सहजना, अश्वगंधा, हाड़जोड़, गाजर : कैल्शियम का स्रोत, हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत करना, फैक्चर को ठीक करने में राहत देना.
  • आई केयर: आंवला, गाजर, सफेद मूसली: दृष्टि में सुधार, विटामिन ए का स्रोत, कंजेक्टिवाइटिस से बचाना.
  • मदर केयर: सहजना, सफेद मूसली, सोंठ, अजवाइन : कैल्शियम स्त्रोत, गर्भावस्था के बाद और शिशु की देखभाल, दर्द से राहत, स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए उपयोगी, शरीर की चयापचय में सुधार.

कोटा. भागदौड़ भरी जिंदगी ने हमारे खान-पान और दिनचर्या पर भी असर डाला है. जिसके कारण हमारे भोजन करने के समय से लेकर तरीके में भी बदलाव आया है. आज के बच्चों की तो पूरी डाइट ही फास्ट फूड पर निर्भर हो गई है. ऐसे में जो परंपरागत फल और सब्जियों से न्यूट्रीशन उन्हें मिलता था, वो कम हो गया है. ऐसे ही लोगों के लिए कोटा विश्वविद्यालय परिसर में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में हर्बल और फाइटोन्यूट्रिएंट्स तैयार किया जा रहा है. इन्हें फाइटोन्यूट्रिएंट्स (Phytonutrients) कैप्सूल के रूप में बनाया जा रहा है. ऐसे में अगर कोई बच्चा बथुआ, पालक, चुकंदर, सफेद मूसली या गाजर का सीधा सेवन नहीं कर पाता है, तो उनको ये कैप्सूल दिया जा सकता है.

कैप्सूल के जरिए उन्हें जरूरी न्यूट्रिएंट्स मिल सकेगा. कोटा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र की स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं ऐसे करीब 19 प्रकार के कैप्सूल तैयार कर रही हैं. उन्होंने एक कदम और बढ़कर इन फाइटोन्यूट्रिएंट्स का कॉम्बो पैक भी तैयार किया है. कॉम्बो पैक में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए कई तरह के विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, जिंक और अमीनो एसिड को शामिल किया गया है.

कोटा में तैयार किए जा रहे हर्बल कैप्सूल.

पहले एक बनाया, सफल होने पर 19 तक पहुंचे : कृषि विश्वविद्यालय कोटा की मानव संसाधन निदेशक डॉक्टर ममता तिवारी का कहना है कि मनुष्य की जीवन शैली में काफी परिवर्तन हुआ है. हम लंबे समय तक बैठे रहने, एयर कंडीशन और आधुनिक सुख-सुविधाओं के आदी हो गए हैं. इससे स्वास्थ्य पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय चिकित्सा पद्धति के अनुसार कैप्सूल तैयार किया है, जिन्हें आसानी से लोग उपयोग कर सकें.

पढ़ें. आदिवासी महिलाओं के जीवन को खुशियों से भर रहे हर्बल रंग, आत्मनिर्भर बनने से सुधर रही आर्थिक स्थिति... विदेशों तक है डिमांड

कैल्शियम रिच चुकंदर, मनुष्य के लिए गुणकारी लहसुन, गाजर, आंवले, सफेद मूसली और अश्वगंधा सहित कई तरह के कैप्सूल बनाई जाती है. जिसको लोगों ने काफी सराहा है और इनकी काफी अच्छी बिक्री भी हो रही है. इनमें आंवला, अश्वगंधा, मैथी, मीठा नीम, अजवाइन, नीम, गाजर, चुकंदर, सफेद मूसली, नीम गिलोय, करेला, सहजना, हाड़जोड़, लहसुन, सूखे अदरक (सोंठ), पालक, बथुआ, निर्गुणी और क्विनोआ शामिल हैं.

सीआईएआई भोपाल में कैप्सूल की न्यूट्रीशन एनालिसिस: डॉ. तिवारी का कहना है कि भारत में कई सब्जियां, फल फूल और जड़ी बूटियां उत्पादित होती हैं, जो पौष्टिक गुणों से भरपूर हैं. इन्हीं को देखते हुए हमने हर्बल कैप्सूल तैयार किए हैं. इन्हीं फाइटोन्यूट्रिएंट्स और न्यूट्रास्यूटिकल (Phytonutrients and Nutraceuticals) को अब वैज्ञानिक जगत में चिकित्सा पद्धति में शामिल किया जा रहा है, जिसे मेडिकल हरबलिज्म नाम दिया गया है. शुरुआत में एक-एक कैप्सूल बनाया गया. इसके बाद करीब हम करीब 19 तरह के कैप्सूल बना चुके हैं. इनका इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग (सीआईएआई) भोपाल में न्यूट्रीशन एनालिसिस करवाया गया है. जिसके रिपोर्ट में सामने आया कि इनके पौस्टिक गुण में उबालने, सुखाने और प्रोसेसिंग के बाद कोई कमी नहीं आई है.

पहले इंडिविजुअल फिर कोंबो पैक बनाएं : डॉ. तिवारी ने बताया कि इन कैप्सूल को कृषि विज्ञान केंद्र के जरिए स्वयं सहायता समूह की महिलाएं बना रही हैं. वे पहले इन कैप्सूल को अलग-अलग बेच रही थी. जिसके बाद हमने एक तरह के गुणकारी कैप्सूल का कॉम्बो पैक बना दिया. इन पैक में 3 से लेकर 5 तरह के कैप्सूल शामिल किए जाते हैं. उन्होंने बताया कि स्वयं सहायता समूह की महिलाएं करीब 16 तरह के फाइटोन्यूट्रिएंट्स हर्बल कैप्सूल के कॉम्बो पैक बना रही है. जिनमें हेयर थेरेपी, एंटी पिंपल, ग्लोइंग स्किन, एंटी डायबिटीज, एंटी अर्थराइटिस, एंटीअस्थमेटिक, एंटी ओबेसिटी, एंटी एनीमिया, डाइजेशन, एक्टिव लंग्स, एक्टिव लीवर, मेमोरी प्लस, इम्यूनिटी बूस्टर, ओस्टियो प्रमोटर, आई केयर और मदर केयर शामिल हैं. जिनकी बड़ी मात्रा में सेल हो रही है.

पढे़ं. उदयपुर में राज्य का सबसे बड़ा ऋण वितरण शिविर, 1200 महिला स्वयं सहायता समूहों को बैंक ऋणों का वितरण

1 से 5 दिन लग रहे हैं कैप्सूल बनने : कैप्सूल तैयार कर रही गायत्री वैष्णव का कहना है कि 19 तरह के कैप्सूल बनाने में अलग-अलग समय लगते हैं. इन कैप्सूल को बनाने में 1 दिन से लेकर 4 से 5 दिन तक लग जाते हैं. इन्हें धोना, सुखाना, पीसना, प्रोसेस करके कैप्सूल में पैक में लाया जाता है. हेमलता सोनगरा ने बताया कि कुछ कैप्सूल को सब्जियों को सुखाकर बनाया जाता है. कुछ ऐसी सब्जियां हैं, जिनमें गाजर, आंवला, चुकंदर, पालक, गिलोय में 3 से 4 दिन भी सूखने में लग जाते हैं, इसलिए उन्हें थोड़ा समय लगता है.

महीने में एक लाख से ज्यादा कैप्सूल की बिक्री : सुमन शर्मा का कहना है कि उन्होंने भी कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग ली थी. हाथ से 200 कैप्सूल बनाते एक दिन लग जाता है. जबकि केवीके में उपलब्ध मशीनों से चंद मिनटों में ही 200 कैप्सूल बन जाते हैं. ऐसे में मशीन के जरिए एक दिन में हजार कैप्सूल बनाए जा सकते हैं. इन कैप्सूल को हम 3 से 5 रुपए में बेचते हैं. एक डिब्बे में करीब 50 कैप्सूल होते हैं. एक बॉक्स 90 से 150 रुपए तक का आता है. जबकि कॉम्बो पैक में 3 से 5 तरह के कैप्सूल होते हैं. जिनकी कीमत 450 से 750 रुपए तक होती है. इसके अलावा हम इन्हें मेले और प्रदर्शनों में भी लेकर जाते हैं, जहां भी बड़ी संख्या में इसकी बिक्री होती है. करीब 1 महीने में हम एक लाख से ज्यादा कैप्सूल बेच देते हैं.

कॉम्बो पैक में शामिल कैप्सूल और फायदा

  • हेयर थैरेपी : आवंला, मैथी, मीठा नीम : बालों को काला और मजबूत चमकदार बनाना, बालों के झड़ने के लिए जिम्मेदार कोर्टिसोल का स्तर नियंत्रित करना.
  • एंटी पिंपल और ग्लोइंग स्किन: नीम, आवंला, मैथी, अजवाइन, गाजर, चुकंदर : शरीर को जीवाणु रोधी व डिटॉक्सिफाई करना, रक्त शोधक व विटामिन सी को बढ़ाना, पाचन तंत्र में सुधार करना, कब्ज से राहत, एंटी ऑक्सीडेंट.
  • एंटी डायबिटीज: सफेद मूसली, मैथी, अजवाइन, गिलोय, करेला, सहजना : इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ाना, मधुमेह को नियंत्रण करना, शुगर लेवल कम करना, एंटी ऑक्सीडेंट, बीपी को कंट्रोल करना.
  • एंटी अर्थराइटिस: अश्वगंधा, मैथी, सहजना, नीम, लहसुन: सूजन को कम करना, हड्डियों में चिकनाई बढ़ाना व दर्द से राहत.
  • एंटी अस्थमेटिक: अजवाइनज़ सहजना, सोंठ, मैथी: सर्दी खांसी को दूर करना, सांस की तकलीफ में राहत, कब्ज से दूर रखना.
  • एंटी ओबेसिटी: अजवाइन, मैथी, मीठा नीम, लहसुन : शरीर के चयापचय में सुधार, कब्ज मिटाना, कोलेस्ट्रोल कंट्रोल, वजन कम करना.
  • एंटी एनीमिया: गाजर, चुकंदर, पालक, बथुआ : शरीर को डिटॉक्सिफाई करना, ब्लड प्लेटलेट व हिमोग्लोबिन बढ़ाना और आयरन का स्रोत.
  • डाइजेशन: बथुआ, अजवाइन, आंवला, पालक: पेट की बीमारियों मिटाना, कब्ज से राहत, फाइबर डाइट और पाचन में सुधार.

पढ़ें. interaction with women in Ajmer: प्रदेश में पहले महिला बैंक की होगी स्थापना, इस टर्म में 10 लाख ग्रामीण महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ने का लक्ष्य - रमेश मीणा

  • एक्टिव लंग्स: सहजना, गाजर, करेला, निर्गुणी, मैथी : सांस की तकलीफ में राहत, इम्यूनिटी बढ़ाना, खांसी जुखाम मिटाना.
  • एक्टिव लीवर: करेला, बथुआ, चुकंदर, क्विनोआ व गिलोय : शरीर को डिटॉक्सिफाई करना, रक्तशोधक, प्लेटलेट बढ़ाना, लीवर को ठीक रखना, पोटेशियम, प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, एमिनो एसिड व जिंक का स्त्रोत.
  • मेमोरी प्लस: क्विनोआ, आंवला, चुकंदर, निर्गुणी: याददाश्त और मानसिक स्वास्थ्य बढ़ाना, दिमाग को ठंडा रखना.
  • इम्यूनिटी बूस्टर: सफेद मूसली, आंवला, चुकंदर, निर्गुणी व गिलोय : इम्यूनिटी और खून बढ़ाना, हड्डियों को मजबूत करना, बॉडी से आलस दूर करना.
  • ओस्टियो प्रोमोटर: चुकंदर, सहजना, अश्वगंधा, हाड़जोड़, गाजर : कैल्शियम का स्रोत, हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत करना, फैक्चर को ठीक करने में राहत देना.
  • आई केयर: आंवला, गाजर, सफेद मूसली: दृष्टि में सुधार, विटामिन ए का स्रोत, कंजेक्टिवाइटिस से बचाना.
  • मदर केयर: सहजना, सफेद मूसली, सोंठ, अजवाइन : कैल्शियम स्त्रोत, गर्भावस्था के बाद और शिशु की देखभाल, दर्द से राहत, स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए उपयोगी, शरीर की चयापचय में सुधार.
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