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HIV पॉजिटिव युवाओं द्वारा संचालित कैफे ने तोड़े एचआईवी से संबंधित सारे मिथक - wb hiv positive people run cafe

एचआईवी पॉजिटिव युवाओं द्वारा चलाए जा रहे कोलकाता कैफे ने कलंक तोड़े, भीड़ खींची

HIV पॉजिटिव युवाओं द्वारा संचालित कैफे
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Published : Apr 11, 2022, 2:37 PM IST

कोलकाता: कोलकाता के बालीगंज इलाके में सात एचआईवी पॉजिटिव युवाओं द्वारा संचालित एक कैफे बीमारी के बारे में प्रचलित गलत धारणाओं को तोड़ने के अलावा, जीवन के सभी क्षेत्रों से पूर्वाग्रह मुक्त ग्राहकों को अपनी ओर काफी आकर्षित कर रहा है. 'पॉजिटिव कैफे', पहली बार 2018 में जोधपुर पार्क में डॉ कल्लोल घोष द्वारा 100-वर्ग फुट गैरेज में शुरू किया गया था. हाल ही में उसका पता बदल गया और "ग्राहकों की बढ़ती भीड़" को सर्विस देने के लिए बल्लीगंज स्थित बड़े स्थान पर शिफ्ट हो गया है.

सात युवक खाने-पीने की चीजें जैसे कॉफी, मछली और चिप्स से लेकर सैंडविच आदि ग्राहकों को परोसते भी हैं. एशिया में इस तरह का यह पहला कैफे होने का दावा करने वाले घोष ने सोमवार को पीटीआई-भाषा से कहा कि हमारे नियमित ग्राहकों को एचआईवी पॉजिटिव लोगों द्वारा संचालित कैफे पर जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है. हालांकि वो अपने कैफे से संबंधित जानकारी पंफलेट (brochures) सभी आगंतुकों को देते हैं. कैफे के बारे में पुछने पर अधिकांश ग्राहकों का कहना है कि उन्हें कोई समस्या नहीं है, हालांकि कुछ लोग जानने के बाद अभी भी लौट जाते हैं. बिसवी सदी के लोग लोग बहुत प्रगतिशील होते हैं. यह बता दें कि एचआईवी अन्य संक्रामक रोगों की तरह नहीं फैलता है.

संघर्ष के शुरुआती दिनों को याद करते हुए, एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाने वाले घोष ने कहा कि उनको समाज की मुख्यधारा में कैफे खोलकर बसाने में थोड़ी दिक्कत आयी परंतु थोड़ा समझाने के बाद जोधपुर में एक निर्जन स्थल पर बनी इमारत के मालिक ने अपने गैरेज को किराए पर देने के लिए सहमति व्यक्त की. हालांकि कुछ पड़ोसियों ने हमारे उद्यम पर आपत्ति जताते हुए दावा किया कि हमारे कैफे से उत्पन्न कचरा आसपास के क्षेत्र में एड्स फैला सकता है. बता दें कि यह दक्षिण कोलकाता का एक पॉश इलाका था.

हालांकि यह एक कठिन लड़ाई थी लेकिन शहर के लोगों ने कभी मुंह नहीं मोड़ा. अब हमारे नए बालीगंज पते पर कोलकातावासियों का एक क्रॉस-सेक्शन - युवा पेशेवरों, छात्रों, अधिकारियों से लेकर गृहिणियों और यहां तक ​​कि मशहूर हस्तियों तक बेझिझक के हमारे स्थान पर आते हैं. यहां पर एरिया बड़ा होने के कारण हम ज्यादा लोगों को सर्विस दे पा रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान हमारा कैफे बंद था. परंतु प्रतिबंध हटते ही पुरानी रौनक लोट आयी. एनजीओ ने बंद के दौरान सात कर्मचारियों की देखभाल की. भविष्य की योजना को बताते हुए कहा कि आने वाले दिनों में शहर के चार शॉपिंग मॉल में 'पॉजिटिव कैफे' आउटलेट खोले जाएंगे. ग्राहकों के एक समूह ने कहा कि हम दूसरों से अलग नहीं हैं और हमारे साथ पराये जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए. 'कैक्टस' बैंड के सिद्धू दा अर्थात सिद्धार्थ रे कई बार हमारे कैफे में आए और हमें मेहनत करते जारी रखने के लिए काफी प्रोत्साहित किया. हम इस कैफे को स्वीकार करने के लिए शहरवासियों को धन्यवाद देते हैं.

यह भी पढ़ें-जम्मू-कश्मीर: गुलमर्ग में खुला 'दुनिया का सबसे बड़ा' इग्लू कैफे

पीटीआई

कोलकाता: कोलकाता के बालीगंज इलाके में सात एचआईवी पॉजिटिव युवाओं द्वारा संचालित एक कैफे बीमारी के बारे में प्रचलित गलत धारणाओं को तोड़ने के अलावा, जीवन के सभी क्षेत्रों से पूर्वाग्रह मुक्त ग्राहकों को अपनी ओर काफी आकर्षित कर रहा है. 'पॉजिटिव कैफे', पहली बार 2018 में जोधपुर पार्क में डॉ कल्लोल घोष द्वारा 100-वर्ग फुट गैरेज में शुरू किया गया था. हाल ही में उसका पता बदल गया और "ग्राहकों की बढ़ती भीड़" को सर्विस देने के लिए बल्लीगंज स्थित बड़े स्थान पर शिफ्ट हो गया है.

सात युवक खाने-पीने की चीजें जैसे कॉफी, मछली और चिप्स से लेकर सैंडविच आदि ग्राहकों को परोसते भी हैं. एशिया में इस तरह का यह पहला कैफे होने का दावा करने वाले घोष ने सोमवार को पीटीआई-भाषा से कहा कि हमारे नियमित ग्राहकों को एचआईवी पॉजिटिव लोगों द्वारा संचालित कैफे पर जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है. हालांकि वो अपने कैफे से संबंधित जानकारी पंफलेट (brochures) सभी आगंतुकों को देते हैं. कैफे के बारे में पुछने पर अधिकांश ग्राहकों का कहना है कि उन्हें कोई समस्या नहीं है, हालांकि कुछ लोग जानने के बाद अभी भी लौट जाते हैं. बिसवी सदी के लोग लोग बहुत प्रगतिशील होते हैं. यह बता दें कि एचआईवी अन्य संक्रामक रोगों की तरह नहीं फैलता है.

संघर्ष के शुरुआती दिनों को याद करते हुए, एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाने वाले घोष ने कहा कि उनको समाज की मुख्यधारा में कैफे खोलकर बसाने में थोड़ी दिक्कत आयी परंतु थोड़ा समझाने के बाद जोधपुर में एक निर्जन स्थल पर बनी इमारत के मालिक ने अपने गैरेज को किराए पर देने के लिए सहमति व्यक्त की. हालांकि कुछ पड़ोसियों ने हमारे उद्यम पर आपत्ति जताते हुए दावा किया कि हमारे कैफे से उत्पन्न कचरा आसपास के क्षेत्र में एड्स फैला सकता है. बता दें कि यह दक्षिण कोलकाता का एक पॉश इलाका था.

हालांकि यह एक कठिन लड़ाई थी लेकिन शहर के लोगों ने कभी मुंह नहीं मोड़ा. अब हमारे नए बालीगंज पते पर कोलकातावासियों का एक क्रॉस-सेक्शन - युवा पेशेवरों, छात्रों, अधिकारियों से लेकर गृहिणियों और यहां तक ​​कि मशहूर हस्तियों तक बेझिझक के हमारे स्थान पर आते हैं. यहां पर एरिया बड़ा होने के कारण हम ज्यादा लोगों को सर्विस दे पा रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान हमारा कैफे बंद था. परंतु प्रतिबंध हटते ही पुरानी रौनक लोट आयी. एनजीओ ने बंद के दौरान सात कर्मचारियों की देखभाल की. भविष्य की योजना को बताते हुए कहा कि आने वाले दिनों में शहर के चार शॉपिंग मॉल में 'पॉजिटिव कैफे' आउटलेट खोले जाएंगे. ग्राहकों के एक समूह ने कहा कि हम दूसरों से अलग नहीं हैं और हमारे साथ पराये जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए. 'कैक्टस' बैंड के सिद्धू दा अर्थात सिद्धार्थ रे कई बार हमारे कैफे में आए और हमें मेहनत करते जारी रखने के लिए काफी प्रोत्साहित किया. हम इस कैफे को स्वीकार करने के लिए शहरवासियों को धन्यवाद देते हैं.

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