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आखिर बीजेपी राज्यों में सीएम क्यों बदल रही है, क्या यह डैमेज कंट्रोल है ?

बीजेपी लगातार राज्यों में मुख्यमंत्री बदल रही है. क्या राजनीतिक दृष्टि से सीएम बदलना बीजेपी की दूरदृष्टि है या सिर्फ एंटी कंबेंसी से बचने के लिए तात्कालिक उपाय हैं. इससे पार्टी को फायदा होगा या नुकसान? आखिर भारतीय जनता पार्टी इस बदलाव से क्या मैसेज देना चाहती है. इन सारे सवालों के जबाव के लिए पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट

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Published : Sep 13, 2021, 6:04 PM IST

Updated : Sep 13, 2021, 7:21 PM IST

हैदराबाद : 13 सितंबर को गुजरात के नए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने शपथ ले ली. इसके साथ ही 2022 से पहले बीजेपी ने तीसरे राज्यों में नए नेतृत्व पर दांव खेल दिया. उत्तराखंड, कर्नाटक के बाद गुजरात में सीएम बदलने के बाद यह चर्चा है कि अभी बीजेपी शासित दो अन्य राज्यों में बदलाव होंगे. नेतृत्व में बदलाव के कारण राज्यों और नेताओं के हिसाब से अलग-अलग हैं लेकिन बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का संदेश स्पष्ट है. अभी यह बदलाव एंटी कंबेंसी पर काबू पाने के मक़सद से किया जा रहा है. कोरोना काल में सही प्रबंधन नहीं होने के कारण सभी राज्य सरकारों की काफी किरकिरी हुई थी.

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बीजेपी के पूर्व सीएम, जिन्होंने कार्यकाल पूरा नहीं किया.

वोटर को गुस्से को कम करने के लिए बदल दिए चेहरे : अभी भाजपा की देश की 16 राज्यों में खुद या गठबंधन की सरकार है. 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी यह नहीं चाहती है कि जनता के बीच नेतृत्व के प्रति नाराजगी रहे. अभी तक बीजेपी के सभी मुख्यमंत्री केंद्रीय नेतृत्व यानी अमित शाह और नरेंद्र मोदी की पसंद के हिसाब से बनते रहे हैं. गुजरात के नए सीएम भूपेंद्र पटेल और कर्नाटक के सीएम वसवराज बोम्मई को भी अमित शाह के करीबी होने का फायदा ही मिला है. इस कारण ये सीएम पद के अन्य दावेदारों से आगे रहे. माना जा रहा है कि इस बदलाव के जरिये आलाकमान नेताओं की गुटबाजी पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रहा है.

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बी एल संतोष बीजेपी के सख्त प्रशासकों में से एक हैं.

बदलाव के पक्षधर हैं संगठन महासचिव बी एल संतोष : गुजरात में भी पूर्व सीएम विजय रूपाणी और बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष सीआर पाटिल के बीच अनबन चल रही थी. कर्नाटक में भी पूर्व सीएम बी एस येदियुरप्पा और पार्टी के संगठन महासचिव बी एल संतोष के बीच खींचतान जगजाहिर हो चुकी थी. उत्तराखंड में कांग्रेस से भाजपा में आए नेता भी हमेशा असंतोष के स्वर बुलंद करते रहते हैं. अभी पार्टी के संगठन महासचिव बी एल संतोष हैं. भारतीय जनता पार्टी में संगठन महासचिव का पद अध्यक्ष के बाद दूसरा सबसे ताकतवर पद है. चर्चा यह है कि बी एल संतोष उन सभी राज्यों में नेतृत्व बदलने की वकालत करते हैं, जहां सीएम के कारण पार्टी की छवि कमजोर होती है या सीएम सरकार पर नियंत्रण नहीं रखते हैं.

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जानिए कौन कितने दिन रहे मुख्यमंत्री

परफॉर्म नहीं करने वाले नए सीएम की भी हो सकती है छुट्टी : भारतीय जनता पार्टी में भी हाईकमान कल्चर शुरू हो गया है. नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता के कारण बीजेपी में हाईकमान की पसंद और नापसंद मायने रखती है. बताया यह जा रहा है कि इनके चुनाव में जातीय समीकरण और केंद्रीय नेतृत्व का करीबी होना एक अहम फैक्टर हैं मगर नए सीएम को कुर्सी पर बैठाने से पहले पार्टी टास्क दे रही है. आलाकमान उन्हें साफ तौर से बता रही है कि उन्हें या तो एंटी कंबेंसी से निपटने के लिए सारे उपाय करने होंगे या फिर पद छोड़ने के लिए तैयार होना होगा. इसके अलावा उन्हें विवादित बयान और फैसलों से भी दूर रहना होगा.

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इन नामों पर अटकलें लगाई जा रहीं हैं

सीएम कोई भी हो, चुनाव तो नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ेगी बीजेपी : सवाल यह है कि चुनाव से ठीक पहले सीएम बदलने का नतीजों पर क्या फर्क पड़ेगा. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राज्यों में बीजेपी के क्षत्रपों का कद पीएम मोदी के सामने काफी छोटा है. लोकसभा चुनाव हो या राज्यों के चुनाव, बीजेपी हर चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ती है. 2014 के बाद से बीजेपी के वोटर भी स्थानीय नेतृत्व के बजाय नरेंद्र मोदी की नीतियों के हिसाब से वोट करते हैं, इसलिए राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन वोट के हिसाब ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है. बदलाव का मकसद जातीय संतुलन साधने के साथ स्थानीय नेतृत्व की गुटबाजी को कम करना है. साथ ही केंद्रीय नेतृत्व के हिसाब से माहौल तैयार करना है.

सीएम को दिखानी होगी अपनी परफॉर्मेंस : राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड में सीएम को बदला, क्योंकि वह परफॉर्म नहीं कर पा रहे थे. जनता का विश्वास नहीं जीत पाए. रूपाणी का परफॉर्मेंस उस स्तर का नहीं था, जिसके नाम पर चुनाव में जा सकते थे. चुनाव अमित शाह और नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़े जाएंगे. रूपाणी का नाम गुजरात में अनजाना नहीं था. जनता उनके हिसाब-किताब का आंकलन कर चुकी थी, जिससे चुनाव में दिक्कत हो सकती थी. अब नए मुख्यमंत्री पर लोगों का भरोसा होगा. इसके बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह का सिक्का चल सकता है.

राजनीतिक विश्लेषकों की राय

विश्लेषकों की राय, नया प्रयोग कर रही है बीजेपी : नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बीजेपी पांच साल के मुख्यमंत्री को प्रयोग कर चुकी है. वह असफल हो चुकी है. झारखंड और राजस्थान में जो सरकार पूरे 5 साल चली, वह दोबारा नहीं आई. हरियाणा में मिलीजुली सरकार आई. इसलिए अब पार्टी पांच साल से कम का प्रयोग कर रही है. बीजेपी अपने वोटर यह बताना चाहती है, वह जनता की इच्छा से नेतृत्व बदल सकती है. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक, डॉ. दिलीप अग्निहोत्री राज्यों में सीएम चेहरे को बदलाव को स्थायित्व के खिलाफ नहीं मानते. डॉ. अग्निहोत्री का मानना है कि बीजेपी सबसे कम सीएम बदलने वाली पार्टी है. नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में सीएम पद पर निरंतरता का ख्याल रखा गया.

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एक्सपर्ट डॉ. दिलीप अग्निहोत्री की राय

लोकसभा चुनाव में फेरबदल का असर नहीं : योगेश मिश्र मानते हैं कि 2024 में होने वाले चुनाव के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. मगर 2024 के चुनाव में राज्यों में होने वाली जीत-हार का फर्क नहीं पड़ेगा. उस समय नरेंद्र मोदी की नीतियों और काम के हिसाब से बीजेपी को वोट मिलेगा. नरेंद्र मोदी ने बीजेपी को हिंदी पट्टी से आगे बढ़ाकर पैन इंडिया स्तर का किया है. इसका असर लोकसभा चुनाव में दिखेगा. डॉ. दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि पहले विधानसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सीएम कैंडिडेट नहीं बदले गए और बीजेपी की हार हुई थी. इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को इन राज्यों में भारी समर्थन मिला.

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एक्सपर्ट योगेश मिश्र की राय

कांग्रेस में सीएम बदलने की परंपरा : सिर्फ ऐसा नहीं है कि बीजेपी शासित राज्यों में सीएम बदलते रहे हों. जब कांग्रेस पूरे देश में अपने शिखर पर थी तब भी राज्यों में आलाकमान की मर्जी के हिसाब से मुख्यमंत्री बदलते रहे. उत्तराखंड में हर पार्टी ने लगातार सीएम बदला. उत्तराखंड में कांग्रेस के एनडी तिवारी को छोड़कर कोई भी मुख्यमंत्री नहीं हुए जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. गुजरात में भी माधव सिंह सोलंकी और नरेंद्र मोदी ही टिकाऊ सीएम साबित हुए. उत्तरप्रदेश में संपूर्णानंद (1954-60) के बाद किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया. जबकि उनके बाद कांग्रेस के 14 मुख्यमंत्री बने. बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के बाद कांग्रेस के किसी सीएम को पांच साल तक राज करने का मौका नहीं मिला. जबकि 1989 तक बिहार में कांग्रेस के 19 मुख्यमंत्री बने. कर्नाटक में देवराज उर्स ( 1972-77) के बाद किसी सीएम को पांच साल तक सरकार चलाने की मोहलत नहीं मिली. मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह ही ऐसे कांग्रेसी रहे, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया.

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क्षेत्रीय दलों के नेता, जिनके बदलने का सवाल ही नहीं

कम्युनिस्ट पार्टी और क्षेत्रीय दलों के सीएम स्थायी होते हैं : सीएम बदलने के मामले में तमिलनाडु, बिहार, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर रहा है. इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकार रही है. परिवार आधारित क्षेत्रीय दलों की यह खासियत है कि इनके नेता अपनी पार्टी में सर्वमान्य होते हैं, जैसे कांग्रेस में गांधी परिवार का नेतृत्व होता है. करुणानिधि, जयललिता, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, जगन मोहन रेड्डी, के. चंद्रशेखर राव और ममता बनर्जी ऐसे नाम हैं, जिनकी सत्ता उनके राज्यों में स्थायी रही है. इसके अलावा केरल में सीपीआई एम के सीएम भी राजनीतिक उठापटक से दूर हैं. पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु और बुद्धदेब भट्टाचार्य की सरकार भी बिना फेरबदल के चली थी.

यह भी पढ़ें : गुजरात के नए मुख्यमंत्री बने भूपेंद्र पटेल, राज्यपाल ने दिलाई शपथ

हैदराबाद : 13 सितंबर को गुजरात के नए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने शपथ ले ली. इसके साथ ही 2022 से पहले बीजेपी ने तीसरे राज्यों में नए नेतृत्व पर दांव खेल दिया. उत्तराखंड, कर्नाटक के बाद गुजरात में सीएम बदलने के बाद यह चर्चा है कि अभी बीजेपी शासित दो अन्य राज्यों में बदलाव होंगे. नेतृत्व में बदलाव के कारण राज्यों और नेताओं के हिसाब से अलग-अलग हैं लेकिन बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का संदेश स्पष्ट है. अभी यह बदलाव एंटी कंबेंसी पर काबू पाने के मक़सद से किया जा रहा है. कोरोना काल में सही प्रबंधन नहीं होने के कारण सभी राज्य सरकारों की काफी किरकिरी हुई थी.

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बीजेपी के पूर्व सीएम, जिन्होंने कार्यकाल पूरा नहीं किया.

वोटर को गुस्से को कम करने के लिए बदल दिए चेहरे : अभी भाजपा की देश की 16 राज्यों में खुद या गठबंधन की सरकार है. 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी यह नहीं चाहती है कि जनता के बीच नेतृत्व के प्रति नाराजगी रहे. अभी तक बीजेपी के सभी मुख्यमंत्री केंद्रीय नेतृत्व यानी अमित शाह और नरेंद्र मोदी की पसंद के हिसाब से बनते रहे हैं. गुजरात के नए सीएम भूपेंद्र पटेल और कर्नाटक के सीएम वसवराज बोम्मई को भी अमित शाह के करीबी होने का फायदा ही मिला है. इस कारण ये सीएम पद के अन्य दावेदारों से आगे रहे. माना जा रहा है कि इस बदलाव के जरिये आलाकमान नेताओं की गुटबाजी पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रहा है.

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बी एल संतोष बीजेपी के सख्त प्रशासकों में से एक हैं.

बदलाव के पक्षधर हैं संगठन महासचिव बी एल संतोष : गुजरात में भी पूर्व सीएम विजय रूपाणी और बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष सीआर पाटिल के बीच अनबन चल रही थी. कर्नाटक में भी पूर्व सीएम बी एस येदियुरप्पा और पार्टी के संगठन महासचिव बी एल संतोष के बीच खींचतान जगजाहिर हो चुकी थी. उत्तराखंड में कांग्रेस से भाजपा में आए नेता भी हमेशा असंतोष के स्वर बुलंद करते रहते हैं. अभी पार्टी के संगठन महासचिव बी एल संतोष हैं. भारतीय जनता पार्टी में संगठन महासचिव का पद अध्यक्ष के बाद दूसरा सबसे ताकतवर पद है. चर्चा यह है कि बी एल संतोष उन सभी राज्यों में नेतृत्व बदलने की वकालत करते हैं, जहां सीएम के कारण पार्टी की छवि कमजोर होती है या सीएम सरकार पर नियंत्रण नहीं रखते हैं.

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जानिए कौन कितने दिन रहे मुख्यमंत्री

परफॉर्म नहीं करने वाले नए सीएम की भी हो सकती है छुट्टी : भारतीय जनता पार्टी में भी हाईकमान कल्चर शुरू हो गया है. नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता के कारण बीजेपी में हाईकमान की पसंद और नापसंद मायने रखती है. बताया यह जा रहा है कि इनके चुनाव में जातीय समीकरण और केंद्रीय नेतृत्व का करीबी होना एक अहम फैक्टर हैं मगर नए सीएम को कुर्सी पर बैठाने से पहले पार्टी टास्क दे रही है. आलाकमान उन्हें साफ तौर से बता रही है कि उन्हें या तो एंटी कंबेंसी से निपटने के लिए सारे उपाय करने होंगे या फिर पद छोड़ने के लिए तैयार होना होगा. इसके अलावा उन्हें विवादित बयान और फैसलों से भी दूर रहना होगा.

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इन नामों पर अटकलें लगाई जा रहीं हैं

सीएम कोई भी हो, चुनाव तो नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ेगी बीजेपी : सवाल यह है कि चुनाव से ठीक पहले सीएम बदलने का नतीजों पर क्या फर्क पड़ेगा. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राज्यों में बीजेपी के क्षत्रपों का कद पीएम मोदी के सामने काफी छोटा है. लोकसभा चुनाव हो या राज्यों के चुनाव, बीजेपी हर चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ती है. 2014 के बाद से बीजेपी के वोटर भी स्थानीय नेतृत्व के बजाय नरेंद्र मोदी की नीतियों के हिसाब से वोट करते हैं, इसलिए राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन वोट के हिसाब ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है. बदलाव का मकसद जातीय संतुलन साधने के साथ स्थानीय नेतृत्व की गुटबाजी को कम करना है. साथ ही केंद्रीय नेतृत्व के हिसाब से माहौल तैयार करना है.

सीएम को दिखानी होगी अपनी परफॉर्मेंस : राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड में सीएम को बदला, क्योंकि वह परफॉर्म नहीं कर पा रहे थे. जनता का विश्वास नहीं जीत पाए. रूपाणी का परफॉर्मेंस उस स्तर का नहीं था, जिसके नाम पर चुनाव में जा सकते थे. चुनाव अमित शाह और नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़े जाएंगे. रूपाणी का नाम गुजरात में अनजाना नहीं था. जनता उनके हिसाब-किताब का आंकलन कर चुकी थी, जिससे चुनाव में दिक्कत हो सकती थी. अब नए मुख्यमंत्री पर लोगों का भरोसा होगा. इसके बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह का सिक्का चल सकता है.

राजनीतिक विश्लेषकों की राय

विश्लेषकों की राय, नया प्रयोग कर रही है बीजेपी : नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बीजेपी पांच साल के मुख्यमंत्री को प्रयोग कर चुकी है. वह असफल हो चुकी है. झारखंड और राजस्थान में जो सरकार पूरे 5 साल चली, वह दोबारा नहीं आई. हरियाणा में मिलीजुली सरकार आई. इसलिए अब पार्टी पांच साल से कम का प्रयोग कर रही है. बीजेपी अपने वोटर यह बताना चाहती है, वह जनता की इच्छा से नेतृत्व बदल सकती है. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक, डॉ. दिलीप अग्निहोत्री राज्यों में सीएम चेहरे को बदलाव को स्थायित्व के खिलाफ नहीं मानते. डॉ. अग्निहोत्री का मानना है कि बीजेपी सबसे कम सीएम बदलने वाली पार्टी है. नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में सीएम पद पर निरंतरता का ख्याल रखा गया.

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एक्सपर्ट डॉ. दिलीप अग्निहोत्री की राय

लोकसभा चुनाव में फेरबदल का असर नहीं : योगेश मिश्र मानते हैं कि 2024 में होने वाले चुनाव के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. मगर 2024 के चुनाव में राज्यों में होने वाली जीत-हार का फर्क नहीं पड़ेगा. उस समय नरेंद्र मोदी की नीतियों और काम के हिसाब से बीजेपी को वोट मिलेगा. नरेंद्र मोदी ने बीजेपी को हिंदी पट्टी से आगे बढ़ाकर पैन इंडिया स्तर का किया है. इसका असर लोकसभा चुनाव में दिखेगा. डॉ. दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि पहले विधानसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सीएम कैंडिडेट नहीं बदले गए और बीजेपी की हार हुई थी. इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को इन राज्यों में भारी समर्थन मिला.

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एक्सपर्ट योगेश मिश्र की राय

कांग्रेस में सीएम बदलने की परंपरा : सिर्फ ऐसा नहीं है कि बीजेपी शासित राज्यों में सीएम बदलते रहे हों. जब कांग्रेस पूरे देश में अपने शिखर पर थी तब भी राज्यों में आलाकमान की मर्जी के हिसाब से मुख्यमंत्री बदलते रहे. उत्तराखंड में हर पार्टी ने लगातार सीएम बदला. उत्तराखंड में कांग्रेस के एनडी तिवारी को छोड़कर कोई भी मुख्यमंत्री नहीं हुए जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. गुजरात में भी माधव सिंह सोलंकी और नरेंद्र मोदी ही टिकाऊ सीएम साबित हुए. उत्तरप्रदेश में संपूर्णानंद (1954-60) के बाद किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया. जबकि उनके बाद कांग्रेस के 14 मुख्यमंत्री बने. बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के बाद कांग्रेस के किसी सीएम को पांच साल तक राज करने का मौका नहीं मिला. जबकि 1989 तक बिहार में कांग्रेस के 19 मुख्यमंत्री बने. कर्नाटक में देवराज उर्स ( 1972-77) के बाद किसी सीएम को पांच साल तक सरकार चलाने की मोहलत नहीं मिली. मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह ही ऐसे कांग्रेसी रहे, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया.

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क्षेत्रीय दलों के नेता, जिनके बदलने का सवाल ही नहीं

कम्युनिस्ट पार्टी और क्षेत्रीय दलों के सीएम स्थायी होते हैं : सीएम बदलने के मामले में तमिलनाडु, बिहार, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर रहा है. इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकार रही है. परिवार आधारित क्षेत्रीय दलों की यह खासियत है कि इनके नेता अपनी पार्टी में सर्वमान्य होते हैं, जैसे कांग्रेस में गांधी परिवार का नेतृत्व होता है. करुणानिधि, जयललिता, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, जगन मोहन रेड्डी, के. चंद्रशेखर राव और ममता बनर्जी ऐसे नाम हैं, जिनकी सत्ता उनके राज्यों में स्थायी रही है. इसके अलावा केरल में सीपीआई एम के सीएम भी राजनीतिक उठापटक से दूर हैं. पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु और बुद्धदेब भट्टाचार्य की सरकार भी बिना फेरबदल के चली थी.

यह भी पढ़ें : गुजरात के नए मुख्यमंत्री बने भूपेंद्र पटेल, राज्यपाल ने दिलाई शपथ

Last Updated : Sep 13, 2021, 7:21 PM IST
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