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पर्यटकों को आकर्षित कर रही पंचाचूली पर्वत श्रृंखला

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की दारमा घाटी में स्थित पंचाचूली पर्वत श्रृंखला धार्मिक पर्यटन का महत्वपूर्ण केंद्र है. पांच पर्वत चोटियों के इस समूह को धार्मिक ग्रंथों में पंचशिरा के नाम से भी जाना जाता हैं. कुमाऊं के अल्मोड़ा, नैनीताल, रानीखेत और पिथौरागढ़ के हिल स्टेशनों से इसका दीदार होता है.

पंचाचूली पर्वत श्रृंखला
पंचाचूली पर्वत श्रृंखला
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Published : Jun 28, 2021, 2:39 PM IST

Updated : Jun 28, 2021, 5:43 PM IST

देहरादून : देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे दर्शनीय स्थल हैं, जो प्राकृतिक और साहसिक पर्यटन के साथ ही धार्मिक पर्यटन का भी महत्वपूर्ण केंद्र हैं. इन्हीं में से एक है पिथौरागढ़ जिले की दारमा घाटी में स्थित पंचाचूली पर्वत श्रृंखला, जो पांच पर्वत चोटियों का एक समूह है. धार्मिक ग्रंथों में इसे पंचशिरा के नाम से भी जाना जाता हैं. स्थानीय लोग इसे पांडव चोटी के नाम से भी संबोधित करते आ रहे हैं.

मान्यता है कि ये युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव यानी पांचों पांडवों के प्रतीक हैं और वृद्धावस्था में पांडवों ने इन्हीं पांच चोटियों से होते हुए स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया था. पांडवों ने पंचाचूली पर्वत पर ही आखिरी बार भोजन बनाया था. इसके पांच शिखरों पर पांडवों ने पांच चूल्हे बनाये थे, इसलिए यह स्थान पंचाचूली के नाम से जाना जाता है.

पर्यटकों को आकर्षित कर रही पंचाचूली पर्वत श्रृंखला

कुमाऊं के अल्मोड़ा, नैनीताल, रानीखेत और पिथौरागढ़ के हिल स्टेशनों से भी इसका दीदार होता है. यहां आने वाले पर्यटकों का कहना है कि सरकार जो भी सुविधा दे रखी है वो वाकई अच्छी है. उनका कहना है कि सड़कों का निर्माण होने से यहां आना अब बहुत आसान हो गया है.

एक पर्यटक ने कहा, यहां पर आकर मुझे बहुत ज्यादा अच्छा लग रहा है. जो यहां कि दारमा वैली है, वो 12000 फीट की ऊंचाई पर ये स्थित है. मेरे पीछे का नजारा आप देख सकते हैं कि कितना खूबसूरत नजारा है. ये जो पांच पांडव की जो चोटियां हैं, इनको देखने हम और आगे जाएंगे. इससे पहले इतना खूबसूरत नजारा मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा.

पिथौरागढ़ के दुग्तू गांव को पंचाचूली का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. पंचाचूली के दर्शन के लिए पिथौरागढ़ जिले की नैनी-सैनी हवाई पट्टी से 170 किलोमीटर की यात्रा वाहन के जरिये तय कर दारमा घाटी के माइग्रेशन विलेज दुग्तु पहुंचा जा सकता है.

पर्यटकों के लिए बने हैं होम स्टे
पंचाचूली बेस कैंप और ग्लेशियर जाने वाले पर्यटकों के लिए दुग्तू गांव में होम स्टे बने हैं, जो किराए पर मिल जाते हैं. गर्मियों के मौसम में जब पर्यटक भारी तादात में पंचाचूली के दर्शन के लिए आते हैं, तब ये होम स्टे खचाखच भरे होते हैं, जो सीमांत के ग्रामीणों की आजीविका का एक मुख्य स्रोत भी है.

पंचाचूली बेस कैंप के नाम से बाहर के लोग भी आते हैं, विदेशी लोग भी आते हैं और यहां पांच हट हैं. एक हट में पांच लोगों के रहने की व्यवस्था की जाती है. पंचाचूली के नाम से जाना जाता है दुग्तू गांव और रोड के कारण 2-3 साल से यहां काफी यात्री आ रहे हैं. इस बार लॉकडाउन के कारण बहुत कम लोग आ रहे हैं.

सूचना अधिकारी गिरिजा शंकर जोशी ने कहा, मैं सभी से ये अनुरोध करूंगा कि अगर आप प्रकृति के नजदीक आने के इच्छुक हैं तो आप वास्तव में यहां आइए. यहां सरकार द्वारा सभी अच्छी सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं. वाहन से यहां आएंगे तो मात्र 3-4 किमी पैदल चलना पड़ता है. आपको बढ़िया भोजन, बढ़िया सुविधाएं रहेंगी.

बेस कैंप से ग्लेशियर का मार्ग बेहद रोमांचकारी
पंचाचूली ट्रैकिंग बेस कैंप से ग्लेशियर का मार्ग बेहद रोमांचकारी है. इस ट्रैकिंग रूट पर भोज पत्र, शंकुधारी वृक्षों, अल्पाइन घास के मैदान और हिमखंड के यादगार दर्शन होते हैं. पंचाचूली ग्लेशियर से निकलने वाली न्योली नदी का नजारा भी यहां देखते ही बनता है.

यह भी पढ़ें- जन्नत से कम नहीं देवभूमि, यहां आप कर सकेंगे खुद से बातें

चीन और नेपाल से सटे उच्च हिमालयी क्षेत्र में बसी दारमा घाटी शीतकाल में 5 महीने तक बर्फ से पटी रहती है. चीन और नेपाल की सीमाओं के पास दारमा घाटी की गोद में बसा पंचाचूली ग्लेशियर अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य का क्षेत्र है. कुदरत ने यहां अपना खजाना जमकर लुटाया है. अगर सरकार प्रचार-प्रसार के साथ ही सीमांत दारमा घाटी में बुनियादी सुविधाओं को बढ़ावा देती तो पंचाचूली देश के शीर्ष पर्यटन स्थलों में शुमार हो सकता है.

देहरादून : देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे दर्शनीय स्थल हैं, जो प्राकृतिक और साहसिक पर्यटन के साथ ही धार्मिक पर्यटन का भी महत्वपूर्ण केंद्र हैं. इन्हीं में से एक है पिथौरागढ़ जिले की दारमा घाटी में स्थित पंचाचूली पर्वत श्रृंखला, जो पांच पर्वत चोटियों का एक समूह है. धार्मिक ग्रंथों में इसे पंचशिरा के नाम से भी जाना जाता हैं. स्थानीय लोग इसे पांडव चोटी के नाम से भी संबोधित करते आ रहे हैं.

मान्यता है कि ये युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव यानी पांचों पांडवों के प्रतीक हैं और वृद्धावस्था में पांडवों ने इन्हीं पांच चोटियों से होते हुए स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया था. पांडवों ने पंचाचूली पर्वत पर ही आखिरी बार भोजन बनाया था. इसके पांच शिखरों पर पांडवों ने पांच चूल्हे बनाये थे, इसलिए यह स्थान पंचाचूली के नाम से जाना जाता है.

पर्यटकों को आकर्षित कर रही पंचाचूली पर्वत श्रृंखला

कुमाऊं के अल्मोड़ा, नैनीताल, रानीखेत और पिथौरागढ़ के हिल स्टेशनों से भी इसका दीदार होता है. यहां आने वाले पर्यटकों का कहना है कि सरकार जो भी सुविधा दे रखी है वो वाकई अच्छी है. उनका कहना है कि सड़कों का निर्माण होने से यहां आना अब बहुत आसान हो गया है.

एक पर्यटक ने कहा, यहां पर आकर मुझे बहुत ज्यादा अच्छा लग रहा है. जो यहां कि दारमा वैली है, वो 12000 फीट की ऊंचाई पर ये स्थित है. मेरे पीछे का नजारा आप देख सकते हैं कि कितना खूबसूरत नजारा है. ये जो पांच पांडव की जो चोटियां हैं, इनको देखने हम और आगे जाएंगे. इससे पहले इतना खूबसूरत नजारा मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा.

पिथौरागढ़ के दुग्तू गांव को पंचाचूली का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. पंचाचूली के दर्शन के लिए पिथौरागढ़ जिले की नैनी-सैनी हवाई पट्टी से 170 किलोमीटर की यात्रा वाहन के जरिये तय कर दारमा घाटी के माइग्रेशन विलेज दुग्तु पहुंचा जा सकता है.

पर्यटकों के लिए बने हैं होम स्टे
पंचाचूली बेस कैंप और ग्लेशियर जाने वाले पर्यटकों के लिए दुग्तू गांव में होम स्टे बने हैं, जो किराए पर मिल जाते हैं. गर्मियों के मौसम में जब पर्यटक भारी तादात में पंचाचूली के दर्शन के लिए आते हैं, तब ये होम स्टे खचाखच भरे होते हैं, जो सीमांत के ग्रामीणों की आजीविका का एक मुख्य स्रोत भी है.

पंचाचूली बेस कैंप के नाम से बाहर के लोग भी आते हैं, विदेशी लोग भी आते हैं और यहां पांच हट हैं. एक हट में पांच लोगों के रहने की व्यवस्था की जाती है. पंचाचूली के नाम से जाना जाता है दुग्तू गांव और रोड के कारण 2-3 साल से यहां काफी यात्री आ रहे हैं. इस बार लॉकडाउन के कारण बहुत कम लोग आ रहे हैं.

सूचना अधिकारी गिरिजा शंकर जोशी ने कहा, मैं सभी से ये अनुरोध करूंगा कि अगर आप प्रकृति के नजदीक आने के इच्छुक हैं तो आप वास्तव में यहां आइए. यहां सरकार द्वारा सभी अच्छी सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं. वाहन से यहां आएंगे तो मात्र 3-4 किमी पैदल चलना पड़ता है. आपको बढ़िया भोजन, बढ़िया सुविधाएं रहेंगी.

बेस कैंप से ग्लेशियर का मार्ग बेहद रोमांचकारी
पंचाचूली ट्रैकिंग बेस कैंप से ग्लेशियर का मार्ग बेहद रोमांचकारी है. इस ट्रैकिंग रूट पर भोज पत्र, शंकुधारी वृक्षों, अल्पाइन घास के मैदान और हिमखंड के यादगार दर्शन होते हैं. पंचाचूली ग्लेशियर से निकलने वाली न्योली नदी का नजारा भी यहां देखते ही बनता है.

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चीन और नेपाल से सटे उच्च हिमालयी क्षेत्र में बसी दारमा घाटी शीतकाल में 5 महीने तक बर्फ से पटी रहती है. चीन और नेपाल की सीमाओं के पास दारमा घाटी की गोद में बसा पंचाचूली ग्लेशियर अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य का क्षेत्र है. कुदरत ने यहां अपना खजाना जमकर लुटाया है. अगर सरकार प्रचार-प्रसार के साथ ही सीमांत दारमा घाटी में बुनियादी सुविधाओं को बढ़ावा देती तो पंचाचूली देश के शीर्ष पर्यटन स्थलों में शुमार हो सकता है.

Last Updated : Jun 28, 2021, 5:43 PM IST
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