हैदराबाद : पाकिस्तान के कट्टरपंथी राजनीतिक संगठन तहरीक-ए-लब्बैक से इमरान खान की सरकार ने प्रतिबंध हटा लिया है. पिछले साल प्रर्दशनों के दौरान सुरक्षा बलों पर हमले के बाद इस संगठन को अप्रैल में पाकिस्तान सरकार ने आतंकी संगठन घोषित कर दिया था. इसके प्रमुख साद रिजवी को हिरासत में रखा गया था. इमरान सरकार के मंत्री असद उमर ने कहा कि टीएलपी आतंकी संगठन की तरह व्यवहार कर रहा है.
अक्टूबर में टीएलपी समर्थकों के लाहौर मार्च और हिंसक प्रदर्शन के बाद इमरान सरकार घुटनों पर आ गई. टीएलपी की तीन मांगे थीं, पैगंबर मोहम्मद के ईशनिंदा वाला चित्र बनाने के लिए फ्रांसीसी राजदूत को निष्कासित किया जाए, टीएलपी प्रमुख साद हुसैन रिज़वी को रिहा किया जाए और पार्टी से प्रतिबंध हटाया जाए. सरकार ने तीनों मांगें मान लीं.
इमरान और सेना की शह पर बना था तहरीक ए लब्बैक ( TLP) : टीएलपी 2017 में पहली बार तब चर्चा में आया था, जब इसके नेता अल्लामा खादिम हुसैन रिजवी के नेतृत्व में उसके समर्थक इस्लामाबाद और रावलपिंडी में जमा हो गए और विधि मंत्री जाहिद हामिद को इस्तीफे के लिए मजबूर कर दिया था. बरेलवी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले इस चरमपंथी राजनीतिक संगठन को इमरान खान, आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ने नवाज शरीफ के खिलाफ खड़ा किया था. 2013 के बाद से ही सेना इस धार्मिक संगठन का उपयोग नवाज शरीफ के खिलाफ होने वाली रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए करती थी.
2015 में मौलवी खादिम हुसैन रिजवी ने तहरीक-ए-लब्बैक नाम से एक चरमपंथी राजनीतिक दल बना लिया. उसने ईशनिंदा करने वालों के खिलाफ जहर उगलना शुरू किया और पाकिस्तान में शरीयत का कानून लागू करने की मांग कर दी. 2011 में पंजाब के गवर्नर की हत्या के मामले में खादिम हुसैन रिजवी ने हत्यारे गार्ड मुमताज कादरी का खुला समर्थन किया. उसने इस हत्या को ईशनिंदा से जोड़कर सही साबित करने की कोशिश की.
धीरे-धीरे टीएलपी की शोहरत बढ़ी तो रिजवी ने सरकारी कानूनों में उसका दखल शुरू किया. टीएलपी की मांग के कारण सरकार को अर्थशास्त्री आतिफ मियां को आर्थिक सलाहकार परिषद से हटाना पड़ा. आतिफ मियां अहमदिया थे, इसलिए टीएलपी उन्हें बड़े पद पर देखना नहीं चाहती थी. 2018 के पाकिस्तानी आम चुनाव में यह पांचवी बड़ी पार्टी बनकर उभरी. 2020 में बीमारी के बाद खादिम हुसैन रिजवी की मौत हो गई . तब उसका बेटा मौलाना साद हुसैन रिजवी पार्टी का मुखिया बना.
सैमुअल पेटी की हत्या के बाद मनाया था जश्न : जब इमरान खान की सरकार सत्ता में आई तो खादिम हुसैन ने राजनीतिक दखल बढ़ा दी. साथ ही ईशनिंदा के नाम पर अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न शुरू किया. पाकिस्तान में कई हिंदू मंदिर तोड़े गए. महिलाओं के साथ ज्यादती का सिलसिला तेज हो गया. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने टीएलपी की हकीकत तब सामने आई, जब अक्टूबर 2020 में उसने फ्रांस में टीचर सैमुअल पेटी की हत्या पर जश्न मनाया और हत्यारे के समर्थन में अपनी वेबसाइट पर लेख लिखे. इस पोस्ट में तहरीक-ए-लब्बैक ने खून से लथपथ सैमुअल पेटी के सिर की तस्वीर भी पोस्ट की.
आसिया बीबी मामले में जजों के खिलाफ फतवा : पाकिस्तान की ईसाई महिला आसिया बीबी पर ईशनिंदा के कारण मुकदमा चला. वह आठ साल तक जेल में रही थी. 2018 में अदालत ने आसिया बीबी को बरी कर दिया. कोर्ट के इस फैसले के बाद तहरीक-ए-लब्बैक ने बरी करने वाले जजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. टीएलपी के सह-संस्थापक मुहम्मद अफजल कादरी ने आसिया बीबी केस की सुनवाई में शामिल सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की हत्या का हुक्म जारी किया.
इस घटना के बाद से टीएलपी ने कोर्ट के बाहर ईशनिंदा के फैसले करना शुरू किए. मार्च 2019 में बहावलपुर के गवर्नमेंट सादिक एगर्टन कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर खालिद हमीद की हत्या कर दी. 2018 में, चारसड्डा में इस्लामिया कॉलेज के प्रिंसिपल सरीर अहमद की एक 17 वर्षीय छात्र को धार्मिक रैलियों में जाने रोका तो टीएलपी की शह पर उनकी हत्या करा दी.
हिंदुओं पर हमले में भी शामिल है तहरीक-ए-लब्बैक : अगस्त 2021 लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा को तोड़ने का आरोप भी तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) पर लगा. अगस्त में ही पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के इलाके रहीम यार खान जिले के गणेश मंदिर में कट्टरपंथियों ने मूर्तियों को तोड़ा था और इसके बड़े हिस्से में आग लगा दी थी. जन्माष्टमी के दिन सिंध में श्रीकृष्ण की मूर्ति को भी तोड़ दिया. अक्टूबर 2020 में भी टीएलपी के कट्टरपंथियों ने सिंध प्रांत में दुर्गा माता के मंदिर में तोड़फोड़ की थी. रिपोर्टस के मुताबिक, तहरीक-ए-लब्बैक धर्म परिवर्तन और जबरन शादी जैसे घटनाओं के लिए कुख्यात है.