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Odisha Train Accident : जानिए क्या है इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम, जिसकी वजह से हुआ बालासोर रेल हादसा

रेलवे सिग्नलिंग में इंटरलॉकिंग बहुत महत्वपूर्ण है. यह ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि बालासोर ट्रेन हादसे की मुख्य वजह इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम में गड़बड़ी होना था. पढ़िए पूरी खबर...

electronic interlocking system,
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम
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Published : Jun 4, 2023, 3:34 PM IST

नई दिल्ली : ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे की प्रमुख वजह इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम में गड़बड़ी होना बताया गया है. इस बारे में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घटना के लिए इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम को ही जिम्मेदार बताया. हालांकि पहले इंटरलॉकिंग मैनुअली होती थी लेकिन अब यह इलेक्ट्रॉनिक हो गई है. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक इंटररलॉकिंग में बदलाव की वजह से यह हादसा हुआ.

इंटरलॉकिंग कैसे काम करता है- रेलवे स्टेशन के पास यार्डों में कई लाइनें होती हैं. इन लाइनों को आपस में जोड़ने के लिए प्वाइंट्स होते हैं. वहीं इन प्वाइंट्स को चलाने के लिए हर प्वाइंट पर एक मोटर लगी होती है. दूसरी सिग्नल की बात करें तो सिग्नल के द्वारा लोको पायलट को यह जानकारी दी जाती है कि वह अपनी ट्रेन के साथ रेलवे स्टेशन के यार्ड में प्रवेश करे. वहीं प्वाइंट्स और सिग्नलों को बीच में एक लॉकिंग इस तरह की होती है प्वाइंट्स सेट होने के बाद जिस लाइन का रूट सेट किया हुआ होता है उसी लाइन के लिए सिग्नल आए. इसे सिग्नल इंटरलॉकिंग कहते हैं. यही इंटरलॉकिंग ट्रेन की सुरक्षा को सुनिश्चित करती है. बता दें कि इंटरलॉकिंग का सीधा अर्थ यह कि अगर लूप लाइन सेट हो तो लोको पायलट को मेन लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा. वहीं यदि मेन लाइन का सिग्नल सेट है तो फिर लूप लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा.

इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग क्या है- रेलवे इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग रेलवे में सिग्नल देने में उपयोग होने वाली एक महत्वपूर्ण प्रणाली है. यह एक ऐसी सुरक्षा प्रणाली हो जिसके माध्यम से ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सिग्नल और स्विच के बीच ऑपरेटिंग सिस्टम को कंट्रोल करती है. इसके जरिए यार्ड में फेक्शंस इस तरह से कंट्रोल होते है, जिससे ट्रेन के एक कंट्रोल्ड एरिया के माध्यम से सुरक्षित तरीके से गुजरना सुनिश्चित किया जा सके. बता दें कि रेलवे सिग्नलिंग इंटरलॉक्ड सिग्नलिंग सिस्टम से काफी आगे है. मैकेनिकल और इलेक्ट्रो-मैकेनिकल इंटरलॉकिंग आज के समय में आधुनिक सिग्नलिंग है. इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग एक ऐसा सिग्नलिंग अरेंजमेंट है, जिसमें इलेक्ट्रो-मैकेनिकल या कन्वेंशनल पैनल इंटरलॉकिंग से काफी ज्यादा फायदे हैं. वहीं इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में इंटरलॉकिंग लॉजिक सॉफ्टवेयर बेस्ड होता है. इसमें कोई भी मोडिफिकेशन आसान होता है.

कैसे खराब हुआ इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम- अमूमन पर सिस्टम में खराबी होने पर सिग्नल लाल हो जाता है. क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटरलॉकिंग एक असफल-सुरक्षित तंत्र है, इसलिए समस्याएं बाहरी हो सकती हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बालासोर मामले में प्वाइंट्स को नॉर्मल लाइन पर सेट करना चाहिए था न कि लूप लाइन पर. लेकिन वहां पर प्वाइंट्स को लूप लाइन पर सेट किया गया था. इससे पता चलता है कि ऐसा किसी व्यक्ति की गड़बड़ी के बिनी नहीं हो सकता है. फिलहाल मामले की जांच चल रही है.

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नई दिल्ली : ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे की प्रमुख वजह इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम में गड़बड़ी होना बताया गया है. इस बारे में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घटना के लिए इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम को ही जिम्मेदार बताया. हालांकि पहले इंटरलॉकिंग मैनुअली होती थी लेकिन अब यह इलेक्ट्रॉनिक हो गई है. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक इंटररलॉकिंग में बदलाव की वजह से यह हादसा हुआ.

इंटरलॉकिंग कैसे काम करता है- रेलवे स्टेशन के पास यार्डों में कई लाइनें होती हैं. इन लाइनों को आपस में जोड़ने के लिए प्वाइंट्स होते हैं. वहीं इन प्वाइंट्स को चलाने के लिए हर प्वाइंट पर एक मोटर लगी होती है. दूसरी सिग्नल की बात करें तो सिग्नल के द्वारा लोको पायलट को यह जानकारी दी जाती है कि वह अपनी ट्रेन के साथ रेलवे स्टेशन के यार्ड में प्रवेश करे. वहीं प्वाइंट्स और सिग्नलों को बीच में एक लॉकिंग इस तरह की होती है प्वाइंट्स सेट होने के बाद जिस लाइन का रूट सेट किया हुआ होता है उसी लाइन के लिए सिग्नल आए. इसे सिग्नल इंटरलॉकिंग कहते हैं. यही इंटरलॉकिंग ट्रेन की सुरक्षा को सुनिश्चित करती है. बता दें कि इंटरलॉकिंग का सीधा अर्थ यह कि अगर लूप लाइन सेट हो तो लोको पायलट को मेन लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा. वहीं यदि मेन लाइन का सिग्नल सेट है तो फिर लूप लाइन का सिग्नल नहीं जाएगा.

इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग क्या है- रेलवे इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग रेलवे में सिग्नल देने में उपयोग होने वाली एक महत्वपूर्ण प्रणाली है. यह एक ऐसी सुरक्षा प्रणाली हो जिसके माध्यम से ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सिग्नल और स्विच के बीच ऑपरेटिंग सिस्टम को कंट्रोल करती है. इसके जरिए यार्ड में फेक्शंस इस तरह से कंट्रोल होते है, जिससे ट्रेन के एक कंट्रोल्ड एरिया के माध्यम से सुरक्षित तरीके से गुजरना सुनिश्चित किया जा सके. बता दें कि रेलवे सिग्नलिंग इंटरलॉक्ड सिग्नलिंग सिस्टम से काफी आगे है. मैकेनिकल और इलेक्ट्रो-मैकेनिकल इंटरलॉकिंग आज के समय में आधुनिक सिग्नलिंग है. इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग एक ऐसा सिग्नलिंग अरेंजमेंट है, जिसमें इलेक्ट्रो-मैकेनिकल या कन्वेंशनल पैनल इंटरलॉकिंग से काफी ज्यादा फायदे हैं. वहीं इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में इंटरलॉकिंग लॉजिक सॉफ्टवेयर बेस्ड होता है. इसमें कोई भी मोडिफिकेशन आसान होता है.

कैसे खराब हुआ इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम- अमूमन पर सिस्टम में खराबी होने पर सिग्नल लाल हो जाता है. क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटरलॉकिंग एक असफल-सुरक्षित तंत्र है, इसलिए समस्याएं बाहरी हो सकती हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बालासोर मामले में प्वाइंट्स को नॉर्मल लाइन पर सेट करना चाहिए था न कि लूप लाइन पर. लेकिन वहां पर प्वाइंट्स को लूप लाइन पर सेट किया गया था. इससे पता चलता है कि ऐसा किसी व्यक्ति की गड़बड़ी के बिनी नहीं हो सकता है. फिलहाल मामले की जांच चल रही है.

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