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डॉक्टरों से जानिए कितनी जानलेवा है ब्लैक फंगस बीमारी ? - black fungus

गुजरात के सूरत में ब्लैक फंगस के केस ज्यादा हैं. सूरत में नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर्स परेशान हैं. उनका कहना है कि वे अपने मरीजों को रोशनी देने की हर संभव कोशिश करते हैं, लेकिन इस बीमारी ने उन्हें अपने मरीजों की आंखें निकालने के लिए मजबूर कर दिया है. उन्होंने इस बीमारी से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां साझा कीं.

ब्लैक फंगस बीमारी
ब्लैक फंगस बीमारी
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Published : May 24, 2021, 3:37 AM IST

सूरत : देश में म्यूकोरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के केस बढ़ते जा रहे हैं. निजी और सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ती जा रही है. सूरत में नेत्र-विशेषज्ञों की चिंता भी बढ़ गई है. क्योंकि, अब तक वे अपने मरीजों को रोशनी देने का हर संभव प्रयास कर रहे थे, लेकिन इस बीमारी ने उन्हें अपने मरीजों की आंखें निकालने के लिए मजबूर कर दिया है.

ईटीवी भारत ने सूरत में इस तरह की सर्जरी करने वाले डॉक्टरों से मौजूदा स्थिति के बारे में बात की. सर्जन, डॉ. प्रियता सेठ, डॉ. सौरीन गांधी और डॉ. दिशांत शाह म्यूकोरमाइकोसिस को मरीज के मस्तिष्क तक पहुंचने से रोकने के लिए दिन-रात उनके इलाज में लगे हुए हैं. सूरत में ये केवल तीन डॉक्टर हैं, जिन्होंने ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों की सर्जरी की है.

डॉक्टरों से जानिए कितनी जानलेवा है ब्लैक फंगस बीमारी

ये डॉक्टर्स अब तक 34 मरीजों की आंखें निकाल चुके हैं ताकि उनकी जान बच सके. डॉ. प्रियता सेठ कहती हैं कि मस्तिष्क से फंगस को बाहर निकालने की उम्मीद में मरीज अंतिम चरण में उनके पास आते हैं. ऐसे में मरीजों और उनके रिश्तेदारों को यह बताना हमारे लिए बहुत दर्दनाक होता है कि उन्हें अपनी आंखें निकालनी होंगी.

उन्होंने कहा कि इस बीमारी की दवाएं सर्जरी से कहीं ज्यादा महंगी हैं. हम इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि दवाओं का किडनी या अन्य अंगों पर कोई दुष्प्रभाव न हो. इतना ही नहीं आखिरी स्टेज में चेहरे की त्वचा काली हो जाती है या फंगस आंख के अंदर पहुंच जाता है. इसलिए मरीजों की जान बचाने के लिए मजबूरी में भी हमें सर्जरी करनी पड़ती है.

ब्लैक फंगस की दवाइयां बेहद मंहगी
डॉक्टर सौरीन गांधी बताते हैं कि उन्हें अब तक 25 से ज्यादा मरीजों की आंखें निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा है. हम कोशिश करते हैं कि मरीज की आंख न निकालनी पड़े. हम लोगों से कहना चाहते हैं कि समय रहते किसी विशेषज्ञ से इलाज कराएं, ताकि ऐसी स्थिति पैदा न हो.

उन्होंने बताया कि जब म्यूकोरमाइकोसिस आंख में पहुंचता है, तो सर्जरी के बाद इसके इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा बहुत महंगी होती है. दवा की कीमत 30 हजार रुपये प्रति दिन से ज्यादा है. यह 15 से 28 दिनों तक चल सकती है.

कोविड से ठीक होने वाले मरीजों को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. दिशांत शाह कहते हैं कि कोरोना के बाद ठीक हुए मरीज कमजोरी दूर करने के लिए मिठाई खाने लगते हैं. जिन लोगों को डायबिटिज है और जिन्हें डायाबिटिज नहीं है, वे भी ऐसा कर म्यूकोरमाइकोसिस को आमंत्रित करते हैं. यह फंगस के लिए पौष्टिक भोजन बन जाता है.

उन्होंने कहा कि कोरोना से ठीक होने के बाद अपनी सेहत का खासा ख्याल रखने की जरूरत है. मरीजों को जागरूक करना हमारा कर्तव्य है. लेकिन ऐसे मुश्किल हालात में जब मरीज की आंख निकालने की बात आती है तो यह हमारे लिए भी बहुत दुख की बात होती है.

यह भी पढ़ें- मधुमेह और कमजोर इम्युनिटी वालों के लिए ब्लैक फंगस खतरनाक : डॉ. सायमा

सूरत : देश में म्यूकोरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के केस बढ़ते जा रहे हैं. निजी और सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ती जा रही है. सूरत में नेत्र-विशेषज्ञों की चिंता भी बढ़ गई है. क्योंकि, अब तक वे अपने मरीजों को रोशनी देने का हर संभव प्रयास कर रहे थे, लेकिन इस बीमारी ने उन्हें अपने मरीजों की आंखें निकालने के लिए मजबूर कर दिया है.

ईटीवी भारत ने सूरत में इस तरह की सर्जरी करने वाले डॉक्टरों से मौजूदा स्थिति के बारे में बात की. सर्जन, डॉ. प्रियता सेठ, डॉ. सौरीन गांधी और डॉ. दिशांत शाह म्यूकोरमाइकोसिस को मरीज के मस्तिष्क तक पहुंचने से रोकने के लिए दिन-रात उनके इलाज में लगे हुए हैं. सूरत में ये केवल तीन डॉक्टर हैं, जिन्होंने ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों की सर्जरी की है.

डॉक्टरों से जानिए कितनी जानलेवा है ब्लैक फंगस बीमारी

ये डॉक्टर्स अब तक 34 मरीजों की आंखें निकाल चुके हैं ताकि उनकी जान बच सके. डॉ. प्रियता सेठ कहती हैं कि मस्तिष्क से फंगस को बाहर निकालने की उम्मीद में मरीज अंतिम चरण में उनके पास आते हैं. ऐसे में मरीजों और उनके रिश्तेदारों को यह बताना हमारे लिए बहुत दर्दनाक होता है कि उन्हें अपनी आंखें निकालनी होंगी.

उन्होंने कहा कि इस बीमारी की दवाएं सर्जरी से कहीं ज्यादा महंगी हैं. हम इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि दवाओं का किडनी या अन्य अंगों पर कोई दुष्प्रभाव न हो. इतना ही नहीं आखिरी स्टेज में चेहरे की त्वचा काली हो जाती है या फंगस आंख के अंदर पहुंच जाता है. इसलिए मरीजों की जान बचाने के लिए मजबूरी में भी हमें सर्जरी करनी पड़ती है.

ब्लैक फंगस की दवाइयां बेहद मंहगी
डॉक्टर सौरीन गांधी बताते हैं कि उन्हें अब तक 25 से ज्यादा मरीजों की आंखें निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा है. हम कोशिश करते हैं कि मरीज की आंख न निकालनी पड़े. हम लोगों से कहना चाहते हैं कि समय रहते किसी विशेषज्ञ से इलाज कराएं, ताकि ऐसी स्थिति पैदा न हो.

उन्होंने बताया कि जब म्यूकोरमाइकोसिस आंख में पहुंचता है, तो सर्जरी के बाद इसके इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा बहुत महंगी होती है. दवा की कीमत 30 हजार रुपये प्रति दिन से ज्यादा है. यह 15 से 28 दिनों तक चल सकती है.

कोविड से ठीक होने वाले मरीजों को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. दिशांत शाह कहते हैं कि कोरोना के बाद ठीक हुए मरीज कमजोरी दूर करने के लिए मिठाई खाने लगते हैं. जिन लोगों को डायबिटिज है और जिन्हें डायाबिटिज नहीं है, वे भी ऐसा कर म्यूकोरमाइकोसिस को आमंत्रित करते हैं. यह फंगस के लिए पौष्टिक भोजन बन जाता है.

उन्होंने कहा कि कोरोना से ठीक होने के बाद अपनी सेहत का खासा ख्याल रखने की जरूरत है. मरीजों को जागरूक करना हमारा कर्तव्य है. लेकिन ऐसे मुश्किल हालात में जब मरीज की आंख निकालने की बात आती है तो यह हमारे लिए भी बहुत दुख की बात होती है.

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