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कपास आयात पर सीमा शुल्क में छूट का किसान महासभा ने किया विरोध

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Published : Apr 15, 2022, 4:20 PM IST

सरकार के द्वारा कपास के आयात पर सीमा शुल्क में छूट दिए जाने का अखिल भारतीय किसान महासभा (एआईकेएस) ने विरोध किया है. महासभा ने कहा है कि इससे देश के कपास किसानों पर कीमतों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से बोझ पड़ सकता है. पढ़िए ईटीवी भारत के संवाददाता अभिजीत ठाकुर की रिपोर्ट...

AIKS President Ashok Dhawale
एआईकेएस के अध्यक्ष अशोक धवले

नई दिल्ली : सरकार ने कहा है कि कपास के आयात पर सीमा शुल्क में छूट देने से कीमतों में कमी लाने में मदद मिल सकती है. वहीं किसान महासभा ने सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने कॉरपोरेट टेक्सटाइल कंपनियों के इशारे पर इसे किया है. बता दें कि हाल ही में केंद्र सरकार ने 14 अप्रैल से 30 सितंबर तक सभी कपास आयातों पर सीमा शुल्क में छूट दी है. भारत में कपास के आयात पर टैक्स और अधिभार सहित लगभग 11 प्रतिशत कर लगता है.

इस संबंध में अखिल भारतीय किसान महासभा (एआईकेएस) के अध्यक्ष अशोक धवले ने अपने एक बयान में कहा है कि यह कदम भारत में किसानों द्वारा उगाए गए कपास की सुनिश्चित लाभकारी कीमतों और खरीद को तय बगैर किया उठाया गया है. इससे चीन, ब्राजील और संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य स्थानों से सस्ते में कापस आने की संभावना है. धवले ने कहा कि इस वजह से देश के संकटग्रस्त कपास किसानों पर कीमतों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से बोझ पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में कपास के क्षेत्र में संकट में किसानों के द्वारा सबसे अधिक आत्महत्या करने का मामला सामने आ चुका है.

दूसरी तरफ भाजपा सरकार का दावा है कि कपड़ा उद्योग को कच्चे माल की कमी से निपटने में यह निर्णय कारगर जरूरी हो गया है. वहीं वित्त मंत्रालय का कहना है कि देश में कपास की अपेक्षित पैदावार से कमी की वजह से घरेलू कपास की कीमतों में उछाल के कारण आयात शुल्क को समाप्त किया जाना आवश्यक था. मंत्रालय ने कहा है कि सरकार के इस कदम से घरेलू कपड़ा उद्योगों की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता के दबाव को कम करने में मदद मिलेगी, वहीं इससे उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी. हालांकि बड़े कारपोरेट कपड़ा उद्योग कभी भी उपभोक्ताओं को सस्ते कच्चे माल का लाभ नहीं मुहैया कराते हैं बल्कि वे केवल लाभ को अधिकतम करने के उद्देश्य से चलाए जाते हैं.

अखिल भारतीय किसान महासभा (एआईकेएस) के मुताबिक सरकार का यह निर्णय हमारे देश के कपास किसानों के लिए आपदा का कारण बनेगा जो पहले से ही गंभीर संकट में हैं और लाभकारी कीमतों का एहसास करने में असमर्थ हैं. कपास किसान को अभी तक उत्पादन लागत का कम से कम डेढ़ गुना लाभकारी कीमतों पर सुनिश्चित खरीद के रूप में कोई सुरक्षा की गारंटी भी नहीं है. महासभा ने कहा है कि कच्चे कपास की आवक से कीमतों में तो गिरावट आएगी लेकिन इसका बोझ भारत के गरीब किसानों पर पड़ेगा.

ये भी पढ़ें - कपास की बढ़ती कीमतों के बीच KVIC ने खादी संस्थानों को कीमतों में बढ़ोतरी से बचाया

अखिल भारतीय किसान सभा ने मांग की है कि सरकार को इस फैसले को वापस लेना चाहिए और कपास पर आयात शुल्क बहाल करना चाहिए. साथ ही किसानों की उपज को लाभकारी कीमतों पर खरीदने की व्यवस्था करनी चाहिए. किसान संघ ने यह भी मांग की कि सरकार को आयात शुल्क को खत्म करने के बजाय किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए. एआईकेएस ने कपास उत्पादक राज्यों में अपनी इकाइयों से असंवेदनशील निर्णय के विरोध में उठने का आह्वान किया है.

एआईकेएस का कहना है कि सरकार के इस कदम से देश के कपास किसानों के लिए बड़ी समस्या की वजह बनेगा, क्योंकि वह पहले से ही लाभकारी कीमतों को लेकर गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं. इतना ही नहीं कपास किसानों को अभी तक उत्पादन लागत की कम से कम डेढ़ गुना लाभकारी कीमतों पर खरीद के रूप में कोई सुरक्षा की गारंटी भी नहीं है. एआईकेएस ने कपास उत्पादक राज्यों में अपनी इकाइयों से इस फैसले के विरोध में उठाने का आह्वान किया है.

नई दिल्ली : सरकार ने कहा है कि कपास के आयात पर सीमा शुल्क में छूट देने से कीमतों में कमी लाने में मदद मिल सकती है. वहीं किसान महासभा ने सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने कॉरपोरेट टेक्सटाइल कंपनियों के इशारे पर इसे किया है. बता दें कि हाल ही में केंद्र सरकार ने 14 अप्रैल से 30 सितंबर तक सभी कपास आयातों पर सीमा शुल्क में छूट दी है. भारत में कपास के आयात पर टैक्स और अधिभार सहित लगभग 11 प्रतिशत कर लगता है.

इस संबंध में अखिल भारतीय किसान महासभा (एआईकेएस) के अध्यक्ष अशोक धवले ने अपने एक बयान में कहा है कि यह कदम भारत में किसानों द्वारा उगाए गए कपास की सुनिश्चित लाभकारी कीमतों और खरीद को तय बगैर किया उठाया गया है. इससे चीन, ब्राजील और संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य स्थानों से सस्ते में कापस आने की संभावना है. धवले ने कहा कि इस वजह से देश के संकटग्रस्त कपास किसानों पर कीमतों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से बोझ पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में कपास के क्षेत्र में संकट में किसानों के द्वारा सबसे अधिक आत्महत्या करने का मामला सामने आ चुका है.

दूसरी तरफ भाजपा सरकार का दावा है कि कपड़ा उद्योग को कच्चे माल की कमी से निपटने में यह निर्णय कारगर जरूरी हो गया है. वहीं वित्त मंत्रालय का कहना है कि देश में कपास की अपेक्षित पैदावार से कमी की वजह से घरेलू कपास की कीमतों में उछाल के कारण आयात शुल्क को समाप्त किया जाना आवश्यक था. मंत्रालय ने कहा है कि सरकार के इस कदम से घरेलू कपड़ा उद्योगों की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता के दबाव को कम करने में मदद मिलेगी, वहीं इससे उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी. हालांकि बड़े कारपोरेट कपड़ा उद्योग कभी भी उपभोक्ताओं को सस्ते कच्चे माल का लाभ नहीं मुहैया कराते हैं बल्कि वे केवल लाभ को अधिकतम करने के उद्देश्य से चलाए जाते हैं.

अखिल भारतीय किसान महासभा (एआईकेएस) के मुताबिक सरकार का यह निर्णय हमारे देश के कपास किसानों के लिए आपदा का कारण बनेगा जो पहले से ही गंभीर संकट में हैं और लाभकारी कीमतों का एहसास करने में असमर्थ हैं. कपास किसान को अभी तक उत्पादन लागत का कम से कम डेढ़ गुना लाभकारी कीमतों पर सुनिश्चित खरीद के रूप में कोई सुरक्षा की गारंटी भी नहीं है. महासभा ने कहा है कि कच्चे कपास की आवक से कीमतों में तो गिरावट आएगी लेकिन इसका बोझ भारत के गरीब किसानों पर पड़ेगा.

ये भी पढ़ें - कपास की बढ़ती कीमतों के बीच KVIC ने खादी संस्थानों को कीमतों में बढ़ोतरी से बचाया

अखिल भारतीय किसान सभा ने मांग की है कि सरकार को इस फैसले को वापस लेना चाहिए और कपास पर आयात शुल्क बहाल करना चाहिए. साथ ही किसानों की उपज को लाभकारी कीमतों पर खरीदने की व्यवस्था करनी चाहिए. किसान संघ ने यह भी मांग की कि सरकार को आयात शुल्क को खत्म करने के बजाय किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए. एआईकेएस ने कपास उत्पादक राज्यों में अपनी इकाइयों से असंवेदनशील निर्णय के विरोध में उठने का आह्वान किया है.

एआईकेएस का कहना है कि सरकार के इस कदम से देश के कपास किसानों के लिए बड़ी समस्या की वजह बनेगा, क्योंकि वह पहले से ही लाभकारी कीमतों को लेकर गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं. इतना ही नहीं कपास किसानों को अभी तक उत्पादन लागत की कम से कम डेढ़ गुना लाभकारी कीमतों पर खरीद के रूप में कोई सुरक्षा की गारंटी भी नहीं है. एआईकेएस ने कपास उत्पादक राज्यों में अपनी इकाइयों से इस फैसले के विरोध में उठाने का आह्वान किया है.

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