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बिहार के गया में खानकाह दरगाह में हिंदू समुदाय के लोग भी आते हैं

बिहार के गया में खानकाह दरगाह में हिंदू समुदाय के लोग भी मोहम्मद साहब के शांति और मोहब्बत के संदेशों को सुनने आते हैं.

A Khanqah in Gaya where the Hindu community reaches with devotion
बिहार के गया में खानकाह दरगाह में हिंदू समुदाय के लोग भी आते हैं
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Published : Oct 9, 2022, 12:51 PM IST

गया: बिहार राज्य के गया जिले में एक खानकाह है जो सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है. इसके कारण यह खानकाह प्यार और भाईचारे की मिसाल बन गया है. खानकाह गया शहर में स्थित है. सज्जादा नशीन हजरत मौलाना मुफ्ती सैयद शाह सबाउद्दीन मुनामी के अनुसार देश में पहली बार रबी-उल-अव्वल में इसी खानकाह से सीरत की बैठक शुरू हुई थी.

उसके बाद, यह परंपरा धीरे-धीरे देश के विभिन्न हिस्सों और क्षेत्रों में फैल गई. खास बात यह है कि न केवल मुसलमान बल्कि हिंदू समुदाय के लोग भी पैगंबर मोहम्मद (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद) की पूरी जीवनी, सेवाओं, चरित्र और कार्यों को सुनने आते हैं.

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इनमें एक उदय कुमार भी है, जो सुबह 'मंदिर में पूजा' करते हैं और रात में खानकाह में पैगंबर की बात सुनने जाते हैं. यह सिलसिला पिछले दस साल से चल रहा है, उदय कुमार ने हाल ही में दशहरा भक्ति के साथ मनाई. उस दौरान उनका सीरत-उल-नबी की सभा में भी आना-जाना जारी रहा. खानकाह के निदेशक सैयद शाह अता फैसल का कहना है कि बैठक को सुनने के लिए केवल उदय कुमार ही नहीं, बल्कि कई अन्य हिंदू भाई आते हैं.

गया: बिहार राज्य के गया जिले में एक खानकाह है जो सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है. इसके कारण यह खानकाह प्यार और भाईचारे की मिसाल बन गया है. खानकाह गया शहर में स्थित है. सज्जादा नशीन हजरत मौलाना मुफ्ती सैयद शाह सबाउद्दीन मुनामी के अनुसार देश में पहली बार रबी-उल-अव्वल में इसी खानकाह से सीरत की बैठक शुरू हुई थी.

उसके बाद, यह परंपरा धीरे-धीरे देश के विभिन्न हिस्सों और क्षेत्रों में फैल गई. खास बात यह है कि न केवल मुसलमान बल्कि हिंदू समुदाय के लोग भी पैगंबर मोहम्मद (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद) की पूरी जीवनी, सेवाओं, चरित्र और कार्यों को सुनने आते हैं.

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इनमें एक उदय कुमार भी है, जो सुबह 'मंदिर में पूजा' करते हैं और रात में खानकाह में पैगंबर की बात सुनने जाते हैं. यह सिलसिला पिछले दस साल से चल रहा है, उदय कुमार ने हाल ही में दशहरा भक्ति के साथ मनाई. उस दौरान उनका सीरत-उल-नबी की सभा में भी आना-जाना जारी रहा. खानकाह के निदेशक सैयद शाह अता फैसल का कहना है कि बैठक को सुनने के लिए केवल उदय कुमार ही नहीं, बल्कि कई अन्य हिंदू भाई आते हैं.

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