कोझीकोड : भारत में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक शिक्षा प्रदान करने में केरल अग्रणी राज्य है. जब सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में बुनियादी ढांचे और पाठ्यक्रम की गुणवत्ता दोनों में क्रांतिकारी बदलाव आया, तो अधिक से अधिक बच्चे केरल में सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने के प्रति इच्छा प्रकट करते देखे गए. केरल के सरकारी स्कूलों में शिक्षा के साथ-साथ मध्याह्न भोजन योजना को भी अब देश में शीर्ष स्थान दिया जा रहा है.
गरीब परिवारों के बच्चों को स्कूलों के प्रति आकर्षित करने और उनकी शिक्षा के प्रति रूचि बढ़ाने के अपने प्रारंभिक उद्देश्य से केरल में मध्याह्न भोजन योजना काफी प्रगति कर रहा है. अब इसका उद्देश्य 'स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग' के आदर्श का अनुसरण करते हुए आठवीं कक्षा तक के बच्चों को पौष्टिक और संतुलित आहार प्रदान करना है. इस योजना के तहत राज्य के लगभग 13,000 सरकारी स्कूलों में 26 लाख से अधिक छात्रों को मध्याह्न भोजन दिया जाता है. मध्याह्न भोजन में बच्चों को चावल के साथ हरे चने, सांबर और नारियल का एक डिश परोसा जाता है. वहीं, सप्ताह के मंगलवार के दिन चावल के साथ मिक्स वेज, सूप और अचार दिया जाता है. बुधवार के दिन चावल, सब्जी, हरे चने या लाल चने की स्टर फ्राई और नारियल का एक डिश दिया जाता है. गुरुवार को चावल, हरे चने की दाल और मिक्स वेज रहता है. शुक्रवार के दिन चावल, बंगाल चना या हरे चने की दाल और सांबर दिया जाता है.
इसके अलावा, सप्ताह में एक दिन अंडे और 'नेंद्रन' केला और हफ्ते में दो बार दूध दिया जाता है. कई स्कूलों में मेन्यू में सप्ताह में कम से कम एक बार मछली और मांस को भी शामिल किया गया है. पोषण टीम एक चार्ट भी तैयार करती है, जिसमें पत्तेदार सब्जियां, अलग-अलग किस्म की दालों को शामिल करना सुनिश्चित करती है. नदक्कवू सरकारी बालिका उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक संतोष टी ने कहा, 'दोपहर के भोजन की ऑडिटिंग बहुत सख्ती से की जा रही है. छोटी-सी भी कदाचार की जानकारी में आने पर प्रधानाध्यापक को तुरंत निलंबित कर दिया जा सकता है. इसलिए हर प्रधानाध्यापक इस योजना के सभी पहलुओं का बहुत सतर्कता से ध्यान रख रहा है.
प्रत्येक विद्यालय में मध्याह्न भोजन समिति गठित की जाती है. अभिभावक शिक्षक संघ (पीटीए) के अध्यक्ष समिति के अध्यक्ष हैं और स्कूल के प्रधानाध्यापक सदस्य सचिव हैं. समिति में पीटीए के सदस्य, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के बच्चों के माता-पिता, अल्पसंख्यक समुदायों के माता-पिता, शिक्षक और स्थानीय स्वशासन के वार्ड सदस्य इसके सदस्य हैं. मध्याह्न भोजन के मेन्यू तय करने के लिए समिति की हर महीने एक बार बैठक बुलाई जाती है.
स्कूल से स्वच्छ, स्वस्थ और स्वादिष्ट भोजन मिलने की खुशी भी बच्चों के चेहरे पर साफ झलकती है. छात्राओं से पूछे जाने पर उन्होंने मध्याह्न भोजन को लेकर काफी खुशी जतायी. उन्होंने कहा, 'यहां खाना सब अच्छा है. मुझे यह पसंद है और मैं ठीक से खाती हूं. यह साफ, स्वस्थ और स्वास्थ्यकर होता है.
बता दें कि केरल में मध्याह्न भोजन की व्यवस्था साल 1984 से शुरू हुई थी. यहां केंद्र सरकार द्वारा योजना की शुरुआत से बहुत पहले शुरू हुई व्यवस्था के तहत बच्चों को बाजरे का उप्पुम मध्याह्न भोजन के तौर पर दिया जाता था. जब कार्यक्रम शुरू किया गया था तो तटीय क्षेत्र में केवल 222 एलपी स्कूलों को इसमें शामिल किया गया था. साल 1985 में, इस योजना को राज्य के सभी एलपी स्कूलों में विस्तारित किया गया और साल 1987-88 के शैक्षणिक वर्ष में, यह योजना कक्षा सात तक के सभी छात्रों के लिए उपलब्ध कराई गई थी. इसके बाद इस योजना को साल 2007-08 में अंततः कक्षा आठ के सभी छात्रों के लिए विस्तारित किया गया. जब केंद्र सरकार ने 1995 में इस योजना को केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में पेश किया, तो केरल सरकार ने अपनी मौजूदा योजना को जारी रखने का फैसला किया.
मध्याह्न भोजन योजना अब सरकारी स्कूलों, सहायता प्राप्त स्कूलों, विशेष स्कूलों और स्थानीय निकायों द्वारा संचालित स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा आठ तक के सभी छात्रों को शामिल किया गया है. केरल सरकार योजना के लिए प्रति वर्ष 600 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर रही है. बच्चों के भोजन पर सरकार जितना खर्च करती है, उसके अलावा माता-पिता और परोपकारी लोगों की सक्रिय भागीदारी केरल में इसे एक अनूठा कार्यक्रम बनाती है.
किचन गार्डन में उगाई जाने वाली सब्जियां और जनता द्वारा प्रायोजित विशेष व्यंजन को भी पूर्व नियोजित मेनू के साथ परोसा जाता है. कई अभिभावक अब अपने बच्चों के जन्मदिन को अलग-अलग तरीके से मनाने के लिए आगे आ रहे हैं. सहपाठियों को जन्मदिन मनाने के लिए मिठाई भेजने की सामान्य प्रथा के बजाय, अब बच्चों के लिए विशेष व्यंजन बनाने के लिए स्कूल की रसोई में सामग्री प्रदान करने लगे हैं.