कोच्चि (केरल) : केरल उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को तिरुवनंतपुरम अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें 44 वर्षीय व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी (HC upholds life term of father accused of raping his minor daughter). उसे अपनी नाबालिग बेटी से रेप के मामले में दोषी ठहराया गया था.
दरअसल आरोपी की ओर से अपील दाखिल की गई थी, जिस पर न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति सी जयचंद्रन की खंडपीठ ने विचार किया. आरोपी पिता ने अपनी नाबालिग बेटी के साथ बार-बार दुष्कर्म किया और उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी थी. इससे पहले, उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 377 के तहत और पोक्सो अधिनियम के तहत गंभीर यौन हमले के आरोप लगाए गए थे.
अदालत ने यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत अभियुक्त को दी गई सजा को निरस्त कर दिया था. क्योंकि ऐसे दस्तावेज की अनुपलब्धता थी जो उसकी उम्र साबित कर सकते थे.
पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि, 'हमारे जैसे रूढ़िवादी, परंपरा से बंधे, गैर-अनुमेय समाज में कोई भी दुष्कर्म, सामाजिक कलंक और शर्म का झूठा आरोप नहीं लगाएगा.'
यूनाइटेड किंगडम और भारत में मौजूद कानूनों का उल्लेख करते हुए, कोर्ट ने कहा, 'हालांकि पहली बार में यूनाइटेड किंगडम और भारत दोनों में निर्धारित कानून समान हैं, नियम और अपवाद में एक अर्थपूर्ण अंतर है. जो दोनों देशों की सामाजिक परिस्थितियों का सूक्ष्म प्रतिबिंब है.
भारत में दुष्कर्म के मामले में पीड़िता की गवाही एक साथी की तरह नहीं होती है और एक घायल पीड़ित के समान अधिक वजन रखती है. अगर अदालत को उसकी गवाही पर भरोसा करना मुश्किल लगता है, तो ऐसे सबूतों पर भरोसा किया जा सकता है जो उसकी गवाही को आश्वासन दे सकते हैं.' दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निचली अदालत द्वारा लगाई गई सजा या दोषसिद्धि में हस्तक्षेप करने का उसे कोई कारण नहीं मिला.
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(ANI)