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केरल के राज्यपाल बोले, सत्ता के खिलाफ लिखना और आलोचना करना ठीक

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने शनिवार को गोरखपुर में लिटरेरी फेस्टिवल का उद्घाटन किया. इस दौरान उन्होंने क्या कुछ कहा चलिए आगे जानते हैं.

Kerala Governor Arif Mohammad Khan
Kerala Governor Arif Mohammad Khan
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Published : Jan 7, 2023, 6:03 PM IST

गोरखपुर में मीडिया से बातचीत करते केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान.

गोरखपुर: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Kerala Governor Arif Mohammad Khan) ने कहा कि सत्ता के खिलाफ लिखना और आलोचना करना तो उचित है, लेकिन दूरियां पैदा करना ठीक नहीं. राजसत्ता और लोक सत्ता में बहुत अंतर है. लोकसत्ता में जनता मालिक होती है और वही राजा बनाती है. उसके हाथ में ही राजा को पद से हटाने का अधिकार और शक्ति निहित है लेकिन सत्ता और सरकार को भी चाहिए कि वह लोगों के हित में काम करें दूरियां ना पैदा करें. राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान गोरखपुर में आयोजित लिटरेरी फेस्टिवल के उद्घाटन सत्र को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे. इस दौरान जानी-मानी साहित्यकार मृदुला गर्ग भी मंच पर मौजूद थीं. उन्होंने मीडिया के सवालों के जवाब में कहा कि जो सत्ता के खिलाफ लिखेगा वही विश्वसनीय है. इसमें अब हमें ही फर्क करना पड़ेगा कि कौन सही है.

दो दिवसीय गोरखपुर लिट्रेचर फेस्ट की शुरुआत लोकतंत्र और साहित्य विषयक उद्घाटन सत्र से हुई. इसके मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ राजनीतिज्ञ और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि हमारे यहां इस संसार की तुलना एक विषवृक्ष से की गई है. इस संसार से विष उत्पन्न होता है लेकिन इसमें दो अमृत से भरे हुए फल लगते हैं, जिनमें से पहला है काव्य और दूसरे हैं सतपुरुष. काव्य हमें रस देता है और सत्पुरुष हमें मार्गदर्शन देते हैं, जो लोग सार्वजनिक जीवन में होते हैं उनकी व्यस्तता इतनी ज्यादा होती है कि उनको किताबें पढ़ने का समय नहीं मिल पाता है. एक दार्शनिक ने कहा कि जो लोग किताबें नहीं पढ़ते हैं उन्हें इसका अधिकार ही नहीं है कि वह सार्वजनिक जीवन के अंदर आएं. उन्होंने कहा कि मनुष्य एक अकेला जीव नहीं है लेकिन बाकी जीवों और इंसान में फर्क क्या है इसका अर्थ सदैव बदलता रहता है. इतिहास का बोध रखने वाले ही साहित्य पैदा कर सकते हैं. वास्तविक लोकतंत्र में साहित्य का मूल मंत्र यही है कि इतिहास से सबक लेकर वर्तमान तक खड़ा होने का हुनर आ जाए. संवेदनशीलता मनुष्य को औरों से अलग करती है. संवेदनशीलता ही साहित्य की जननी है. पहले यह माना जाता था कि जो सत्ता के खिलाफ लिखेगा वही विश्वसनीय है लेकिन अब हमें यह फर्क करना पड़ेगा कि यह धारणा उस समय की बात है जब सत्ता राजा रानी की कोख से पैदा होती थी. उस समय सत्ताधारी आज की तरह लोकतंत्र से पैदा नहीं होता था.


कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट वक्ता प्रख्यात साहित्यकार मृदुला गर्ग ने कहा कि हमारी संस्कृति उन खूबसूरत संस्कृतियों में से है जो सर्व समाहित है. चूंकि हमें धुंधला देखने की आदत है इस कारण से हम रोशनी से घबराते हैं. हमें समझना होगा कि चुनौती को स्वीकार करने के बाद ही चमक आती है. लोकतन्त्र में साहित्य की महत्ता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र स्वतन्त्र विचार की निर्भीक अभिव्यक्ति है और साहित्य भी वस्तुतः उसी चरित्र का है. लेखक के कथनी नहीं बल्कि उसके पात्रों की करनी का महत्व होता है. लोकतंत्र में ‘मैं नहीं’ की अपेक्षा ‘मैं क्यूं नहीं’ का प्रश्न अधिक सार्थक है. लोकतंत्र की रक्षा में साधारण कदम विशेष अवसरों को बल प्रदान करता है. समाज का साधारण व्यक्ति ही वास्तव में क्रांतियों का अगुआ बन जाता है. हम ऐसे कानूनों पर प्रश्न तो उठाते हैं जो स्वतन्त्रता में बाधक बनते हैं, पर हमनें कभी खुद पर सवाल उठाने की कोशिश नहीं की. इस सत्र में विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार सिंह मौजूद रहे. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार व साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने की.

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गोरखपुर में मीडिया से बातचीत करते केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान.

गोरखपुर: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Kerala Governor Arif Mohammad Khan) ने कहा कि सत्ता के खिलाफ लिखना और आलोचना करना तो उचित है, लेकिन दूरियां पैदा करना ठीक नहीं. राजसत्ता और लोक सत्ता में बहुत अंतर है. लोकसत्ता में जनता मालिक होती है और वही राजा बनाती है. उसके हाथ में ही राजा को पद से हटाने का अधिकार और शक्ति निहित है लेकिन सत्ता और सरकार को भी चाहिए कि वह लोगों के हित में काम करें दूरियां ना पैदा करें. राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान गोरखपुर में आयोजित लिटरेरी फेस्टिवल के उद्घाटन सत्र को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे. इस दौरान जानी-मानी साहित्यकार मृदुला गर्ग भी मंच पर मौजूद थीं. उन्होंने मीडिया के सवालों के जवाब में कहा कि जो सत्ता के खिलाफ लिखेगा वही विश्वसनीय है. इसमें अब हमें ही फर्क करना पड़ेगा कि कौन सही है.

दो दिवसीय गोरखपुर लिट्रेचर फेस्ट की शुरुआत लोकतंत्र और साहित्य विषयक उद्घाटन सत्र से हुई. इसके मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ राजनीतिज्ञ और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि हमारे यहां इस संसार की तुलना एक विषवृक्ष से की गई है. इस संसार से विष उत्पन्न होता है लेकिन इसमें दो अमृत से भरे हुए फल लगते हैं, जिनमें से पहला है काव्य और दूसरे हैं सतपुरुष. काव्य हमें रस देता है और सत्पुरुष हमें मार्गदर्शन देते हैं, जो लोग सार्वजनिक जीवन में होते हैं उनकी व्यस्तता इतनी ज्यादा होती है कि उनको किताबें पढ़ने का समय नहीं मिल पाता है. एक दार्शनिक ने कहा कि जो लोग किताबें नहीं पढ़ते हैं उन्हें इसका अधिकार ही नहीं है कि वह सार्वजनिक जीवन के अंदर आएं. उन्होंने कहा कि मनुष्य एक अकेला जीव नहीं है लेकिन बाकी जीवों और इंसान में फर्क क्या है इसका अर्थ सदैव बदलता रहता है. इतिहास का बोध रखने वाले ही साहित्य पैदा कर सकते हैं. वास्तविक लोकतंत्र में साहित्य का मूल मंत्र यही है कि इतिहास से सबक लेकर वर्तमान तक खड़ा होने का हुनर आ जाए. संवेदनशीलता मनुष्य को औरों से अलग करती है. संवेदनशीलता ही साहित्य की जननी है. पहले यह माना जाता था कि जो सत्ता के खिलाफ लिखेगा वही विश्वसनीय है लेकिन अब हमें यह फर्क करना पड़ेगा कि यह धारणा उस समय की बात है जब सत्ता राजा रानी की कोख से पैदा होती थी. उस समय सत्ताधारी आज की तरह लोकतंत्र से पैदा नहीं होता था.


कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट वक्ता प्रख्यात साहित्यकार मृदुला गर्ग ने कहा कि हमारी संस्कृति उन खूबसूरत संस्कृतियों में से है जो सर्व समाहित है. चूंकि हमें धुंधला देखने की आदत है इस कारण से हम रोशनी से घबराते हैं. हमें समझना होगा कि चुनौती को स्वीकार करने के बाद ही चमक आती है. लोकतन्त्र में साहित्य की महत्ता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र स्वतन्त्र विचार की निर्भीक अभिव्यक्ति है और साहित्य भी वस्तुतः उसी चरित्र का है. लेखक के कथनी नहीं बल्कि उसके पात्रों की करनी का महत्व होता है. लोकतंत्र में ‘मैं नहीं’ की अपेक्षा ‘मैं क्यूं नहीं’ का प्रश्न अधिक सार्थक है. लोकतंत्र की रक्षा में साधारण कदम विशेष अवसरों को बल प्रदान करता है. समाज का साधारण व्यक्ति ही वास्तव में क्रांतियों का अगुआ बन जाता है. हम ऐसे कानूनों पर प्रश्न तो उठाते हैं जो स्वतन्त्रता में बाधक बनते हैं, पर हमनें कभी खुद पर सवाल उठाने की कोशिश नहीं की. इस सत्र में विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार सिंह मौजूद रहे. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार व साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने की.

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