नई दिल्ली : कश्मीर में आतंकवाद के बाद के वर्षों की भयानक छवियों और भयावहता को याद करते हुए कश्मीरी पंडितों ने भारत सरकार से उन्हें सम्मान और सम्मान के साथ उनकी मूल भूमि में 'स्थानांतरित' करने का आग्रह किया. साथ ही 'कश्मीरी पंडितों' के बीच एकता का आह्वान किया.
शनिवार को नई दिल्ली में आयोजित 'ग्लोबल कश्मीरी पंडित कॉन्क्लेव: 'विस्तास्ता कॉलिंग- राइट टू जस्टिस' (Vitasta Calling- Right to Justice) नामक कार्यक्रम में बोलते हुए कई कश्मीरी पंडितों ने 1990 के दशक की भयावहता को याद किया और कहा 'यह एक पलायन है. दुनिया और लोगों को यह स्वीकार करने की जरूरत है कि कश्मीर हमेशा कश्मीरी पंडितों का स्थान रहा है, इसके बावजूद हमें अपनी मूल भूमि छोड़ने के लिए मजबूर किया गया और धमकी दी गई.'
कार्यक्रम में पिछले साल मध्य कश्मीर के बडगाम जिले में आतंकवादियों द्वारा मारे गए राहुल भट के पिता बिट्टा भट भी मौजूद थे. उन्होंने उस खौफनाक दिन को याद करते हुए कहा कि कश्मीरी पंडितों को सिर्फ उनकी 'पहचान' के कारण पीड़ित होना पड़ा.
उन्होंने कहा कि 'राहुल एक संवेदनशील व्यक्ति था जिसे इन आतंकवादियों ने सिर्फ उसकी पहचान के कारण मार डाला. बडगाम में उनके कार्यालय के अंदर उनकी हत्या कर दी गई. मैं एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखता हूं, जिसे दो बार इन आतंकियों की क्रूरता का सामना करना पड़ा. पहली बार 1997 में संग्रामपुरा नरसंहार के दौरान जब आतंकियों ने मेरे भाइयों को खोजने के लिए हमारे घर पर दस्तक दी थी. बाद में उन्हें यह कहकर घर के बाहर बुलाया कि वे आर्मी से हैं और फिर उन्होंने उन्हें बेरहमी से गोली मार दी. यह गांव का एक छोटा सा इलाका था जिसमें कुछ पंडित परिवार रहते थे. और दूसरी बार, मैंने अपना बेटा खो दिया.'
उन्होंने कहा कि 'यह नरसंहार है और मुझे कहना चाहिए कि घाटी से कश्मीरी पंडितों का सफाया करने के लिए यह जातीय सफाई क्षेत्रवार की गई थी और की जा रही है.' सरकार से आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि उनके समुदाय को 'पूर्ण सुरक्षा' के साथ जल्द से जल्द स्थानांतरित किया जाना चाहिए. दिन भर चले कार्यक्रम में मंच पर बैठे कई लोगों ने कश्मीरी पंडितों से खचाखच भरे श्रोताओं और अन्य लोगों को उन भयानक रातों और नीरस सुबहों की अपनी यादें ताजा कीं.
जब इस रिपोर्टर ने कुछ कश्मीरी पंडितों से अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद की स्थिति पर बात की तो उन्होंने कहा कि कोई भी इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकता है कि पर्यटन में उछाल आया है और हत्याओं और पथराव के मामलों में भारी कमी आई है, लेकिन केवल कुछ ही कश्मीरी पंडित अपनी मूल भूमि पर लौट आए हैं. उनमें से भी कुछ को पिछले साल आतंकियों ने टारगेट किलिंग कर क्रूरता से मार डाला था.
उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील अशोक भान ने अपने संबोधन के दौरान कहा, 'आज हमारे नुकसान, मौतें, अन्याय की 33वीं वर्षगांठ है, लेकिन हम अभी भी देशभक्त बने हुए हैं, इस उम्मीद के साथ कि न्याय मिलेगा.'
उन्होंने यह भी पूछा कि ऐसा क्यों है कि 'भारतीय राज्य जिसे वैश्विक प्रशंसा मिल रही है और जिसकी अर्थव्यवस्था फलफूल रही है, कश्मीरी पंडितों को स्थानांतरित करने में असमर्थ है.'
उन्होंने सवाल किया कि जब इतनी इच्छाशक्ति से राममंदिर बन सकता है तो सरकार हमें हमारी जन्मभूमि पर लौटने में मदद क्यों नहीं कर रही है? कुछ पैनलिस्टों ने अब्दुल्ला और मुफ़्ती पर उनकी नीतियों के लिए और उनके निर्णायक कार्यों के लिए जम्मू और कश्मीर राज्य को बर्बाद करने के लिए भी दोषी ठहराया.