डोड्डाबल्लापुरा (बेंगलुरु ग्रामीण) : कर्नाटक के बेंगलुरु ग्रामीण अंतर्गत डोड्डाबल्लापुरा शहर से करीब तीन किमी. दूर मुक्तिधाम (श्मशान घाट) में लक्ष्मम्मा नामक महिला के द्वारा अब तक पांच हजार से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है. बता दें कि शहर के देवांग बोर्ड के प्रयास से 2001 में यहां पर मुक्तिधाम की शुरुआत हुई थी. तभी से 60 वर्षीय लक्ष्मम्मा ने अपने पति उमाशंकर के साथ शवों का दाह संस्कार शुरू किया था.
सात साल पूर्व लक्ष्मम्मा के पति का निधन हो जाने के बाद लक्ष्मम्मा ने अकेले ही इस काम का जिम्मा संभाल लिया. वह हर दिन एक-दो शवों का अंतिम संस्कार करती हैं. मुक्तिधाम में शव के पहुंचने से पहले शव जलाने के लिए बने बॉक्स को व्यवस्थित किया जाता है. तत्पश्चात शव के आने के बाद शव को उसमें रखकर फिर लकड़ियां रखी जाती हैं. वहीं शव को पूरी तरह से जलने में करीब पांच से छह घंटे का समय लगता है. इस दौरान लक्ष्मम्मा शव के पूरी तरह से जलने तक प्रतीक्षा करती हैं. वहीं लक्ष्मम्मा देवांग बोर्ड के द्वारा दिए जाने वाले 6 रूपये मासिक और मृतकों के परिजनों से मिले पैसों से वह अपना गुजर-बसर कर रही हैं.
ईटीवी भारत से बात करते हुए लक्ष्मम्मा ने कहा, 'कोविड के दौरान शवों का अंतिम संस्कार करना एक बड़ी चुनौती थी. यहां तक कि करीबी रिश्तेदार भी शवों को छूने से डरते थे. ऐसे संकट के दौरान मैंने बिना किसी अतिरिक्त सुरक्षा के मास्क पहनकर इस काम को अंजाम दिया. उन्होंने कहा कि उस दौरान वह एक दिन में 7 से 10 शवों का दाह संस्कार करती थीं.' लक्ष्मम्मा ने कहा कि यहां पर इसी तरह जीवन चलता रहता है, मुझे कोई डर नहीं है, मुझे इस काम से शांति मिलती है. लक्ष्मम्मा ने कहा कि कई बार उन्होंने मृतक के परिजनों के बिना ही शव का खुद ही अंतिम संस्कार किया है. लक्ष्मम्मा को उनकी सेवा के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. साथ ही तालुक प्रशासन और जिला प्रशासन और अन्य संघों और संगठनों ने दुर्लभ सेवा के सम्मान में पुरस्कार दिए हैं.
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