मैसूर: हाथी बलराम, जिसने 14 मौकों पर मैसूरु दशहरा के दौरान सुनहरा हावड़ा (Golden Elephant Seat) ढोया था, रविवार को हुनसुर के पास नागरहोल टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट में भीमनकट्टे हाथी शिविर में उसकी मौत हो गई. वह कुछ समय से बीमार चल रहा था. बताया जा रहा है कि 67 वर्षीय हाथी पिछले दस दिनों से मुंह के छालों से पीड़ित है. दशहरा उत्सव के शुभ 10वें दिन जब बलराम ने 800 किलोग्राम की सुनहरे हावड़ा में देवी की पवित्र मूर्ति को अपनी पीठ पर ढोया, तो वह आकर्षण का केंद्र बन गया.
बलराम हर समय अपने व्यवहार और शांति के लिए जाना जाता था. वह अन्य चंचल हाथियों के विपरीत एक सौम्य, सौम्य स्वभाव और अंतर्मुखी के रूप में जाना जाता था. उसके बारे में इंटरनेट पर भी काफी जानकारी दी गई और साथ ही उस पर एक पुस्तक भी है. उसपर लिखी गई पुस्तक का शीर्षक बलराम: ए रॉयल एलिफेंट है, जिसे टेड और बेट्सी लेविन ने लिखा और चित्रित किया है.
आपको बता दें कि बलराम को पिछले साल एक किसान ने देसी बंदूक से गोली मार दी थी, लेकिन छर्रों ने वृद्ध हाथी को ज्यादा चोट नहीं पहुंचाई और वह मामूली चोटों के चलते बच गया था. वन पशु चिकित्सकों की समय पर मदद से वह तेजी से ठीक हुआ. बलराम को 1987 में कर्नाटक के कोडागु क्षेत्र में सोमवारपेट के पास कट्टेपुरा जंगल से पकड़ लिया गया था.
साल 1990 के दशक के अंत में वह विश्व प्रसिद्ध दशहरा जंबोस का हिस्सा बन गया. सज्जन बलराम ने सुनहरी हावड़ा ले जाने की जिम्मेदारी ली और जब उसे एक महीने से अधिक समय तक कड़ा अभ्यास करना पड़ा तो उसे कोई समस्या नहीं हुई. बलराम ने 750 किलोग्राम सोने की अम्बरी को लेकर अपना कर्तव्य शिष्टता से निभाया. हावड़ा हाथी के रूप में 13 साल की सेवा के बाद बलराम सेवानिवृत्त हुआ.