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कोरोना से होने वाली मौत को न दिखाने की याचिका पर हाईकोर्ट, 'फैसला जनता को करने दें' - दर्शकों के पास बेहतर देखने का विकल्प

कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया कि कोरोना से हो रही लोगों की मौत व कोविड संक्रमित शवों के सामूहिक अंतिम संस्कार को दिखाने से लोगों को जान का खतरा हो सकता है. इस पर कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि यह यह दर्शकों पर निर्भर है कि वे इसे देखना चाहते हैं या नहीं. रिमोट का बटन उनके हाथ में है, यह उनके हाथ में ही रहने दीजिए.

हाई कोर्ट
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Published : May 12, 2021, 10:12 PM IST

बेंगलुरु : हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर मीडिया पर रोक लगाने की मांग की गई थी. इसमें कहा गया था कि कोविड से हो रही मौत और कोविड संक्रमित शवों के सामूहिक अंतिम संस्कार को दिखाने से लोगों की जान को खतरा है. इसलिए उन पर पाबंदी लगाई जाए. कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी.

हाईकोर्ट ने कहा कि टीवी का रिमोट लोगों के हाथों में होता है. ऐसे में यह दर्शकों पर निर्भर है कि वे इसे देखना चाहते हैं या नहीं, उनके पास बेहतर देखने का विकल्प है.

हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि इस बारे में संबंधित प्राधिकरण के पास शिकायत दर्ज की जा सकती है.

कर्नाटक के चीफ जस्टिस एएस ओका की अध्यक्षता वाली एक डिविजनल बेंच ने लेज किट फाउंडेशन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोविड -19 के मीडिया कवरेज को प्रतिबंधित करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी.

पढ़ें - घर-घर जाकर टीकाकरण से बचाई जा सकती थी अनेक लोगों की जान : बंबई उच्च न्यायालय

याचिका में आरोप लगाया गया था कि, विजुअल मीडिया कोविड-संक्रमित मरीजों को मौत के मुंह में धकेलने का काम कर रहा है. श्मशान में सामूहिक अंतिम संस्कार का दृश्य भयावह है. ऐसी खबरें लोगों को डराती हैं और संक्रमित लोगों को भी. वहीं जो लोग ऐसे समाचार कवरेज देखते हैं, उनके मनोवैज्ञानिक तनाव से मरने की संभावना अधिक होती है. यह जीवन के लिए खतरा पैदा करता है.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने कहा कि, मीडिया के खिलाफ आपदा प्रबंधन निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए.

बेंगलुरु : हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर मीडिया पर रोक लगाने की मांग की गई थी. इसमें कहा गया था कि कोविड से हो रही मौत और कोविड संक्रमित शवों के सामूहिक अंतिम संस्कार को दिखाने से लोगों की जान को खतरा है. इसलिए उन पर पाबंदी लगाई जाए. कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी.

हाईकोर्ट ने कहा कि टीवी का रिमोट लोगों के हाथों में होता है. ऐसे में यह दर्शकों पर निर्भर है कि वे इसे देखना चाहते हैं या नहीं, उनके पास बेहतर देखने का विकल्प है.

हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि इस बारे में संबंधित प्राधिकरण के पास शिकायत दर्ज की जा सकती है.

कर्नाटक के चीफ जस्टिस एएस ओका की अध्यक्षता वाली एक डिविजनल बेंच ने लेज किट फाउंडेशन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोविड -19 के मीडिया कवरेज को प्रतिबंधित करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी.

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याचिका में आरोप लगाया गया था कि, विजुअल मीडिया कोविड-संक्रमित मरीजों को मौत के मुंह में धकेलने का काम कर रहा है. श्मशान में सामूहिक अंतिम संस्कार का दृश्य भयावह है. ऐसी खबरें लोगों को डराती हैं और संक्रमित लोगों को भी. वहीं जो लोग ऐसे समाचार कवरेज देखते हैं, उनके मनोवैज्ञानिक तनाव से मरने की संभावना अधिक होती है. यह जीवन के लिए खतरा पैदा करता है.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने कहा कि, मीडिया के खिलाफ आपदा प्रबंधन निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए.

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