बेंगलुरु : कर्नाटक उच्च न्यायालय का कहना है कि, जब एक पति अपनी पत्नी को उच्च शिक्षा प्राप्त करने और बच्चे को जन्म देने की बात करता है तो इसे क्रूरता नहीं माना जा सकता. न्यायमूर्ति एच.बी. प्रभाकर शास्त्री ने बुधवार को पति और सास पर पत्नी द्वारा लगाए गए उत्पीड़न के आरोपों को भी खारिज कर दिया. पीठ ने निचली अदालत द्वारा दी गई सजा से राहत की मांग करने वाले पति और उसकी मां की याचिका पर विचार किया.
पीठ ने कहा कि दंपति शिक्षित हैं और उन्होंने शादी से पहले अपने भविष्य के बारे में एक-दूसरे से बात की है. इसलिए, एक पति ने अपनी पत्नी को अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने और नौकरी में शामिल होने के लिए कहा, इसे क्रूरता नहीं माना जा सकता है.
पति ने पत्नी से 3 साल तक बच्चा न होने की बात कही थी. लेकिन, पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसके पति के परिवार ने बच्चा पैदा करने की बात को लेकर उसे प्रताड़ित किया. अदालत ने कहा कि, परिवार के व्यापक हित में पति द्वारा अपनी पत्नी से बात करना कि कब बच्चा पैदा करना है को क्रूरता या यातना नहीं माना जा सकता है.
पत्नी ने यह भी आरोप लगाया था कि उसे तमिल भाषा सीखने और अपने पति के साथ शटल और कार्ड गेम खेलने के लिए मजबूर किया गया था. कोर्ट ने यह भी कहा है कि पार्टनर को ऐसी भाषा सीखने के लिए कहने में कोई हर्ज नहीं है, जो परिवार में सभी को पता हो.
दंपति अमेरिका में रहा और पति ने अपनी पत्नी से कहा कि वह पढ़ाई जारी रखे और वहां अच्छी नौकरी ढूंढे. उसने उसे यह भी बताया कि इससे परिवार को मदद मिलेगी. पत्नी ने अपने पति और उसकी मां के खिलाफ दहेज का मामला दर्ज कराया था और प्रताड़ना और क्रूरता का भी आरोप लगाया था. निचली अदालत ने उनकी याचिका को स्वीकार करते हुए सजा सुनाई थी. सत्र न्यायालय ने भी सजा के आदेश को बरकरार रखा था इसलिए याचिकाकर्ता ने राहत की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
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