बेंगलुरु: कर्नाटक की राज्य कैबिनेट की बैठक में गुरुवार को आय से अधिक संपत्ति के मामले में डीके शिवकुमार के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश देने वाले पिछली भाजपा नीत राज्य सरकार के आदेश को वापस लेने का फैसला किया गया है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व में हुई कैबिनेट बैठक में यह अहम फैसला लिया गया. जब बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने 25 सितंबर 2019 को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 की धारा 6 के तहत सीबीआई को जांच करने का आदेश दिया था.
इस संबंध में सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि पिछली सरकार ने कानूनी कार्रवाई का पालन नहीं किया. उन्होंने कहा कि तत्कालीन सरकार ने डीके शिवकुमरा के अवैध लाभ के मामले की जांच सीबीआई को सौंपी लेकिन उन्होंने कानूनी कार्रवाई का पालन नहीं किया. सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि पिछली सरकार की कार्रवाई पूरी तरह से अवैध थी. उन्होंने कहा कि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ जांच के लिए कानूनी मानदंड हैं.
उन्होंने कहा कि उस समय डीके शिवकुमार उस समय विधायक थे, ऐसे में सरकार को अध्यक्ष से सीबीआई जांच की अनुमति देने से पहले अनुमति लेनी चाहिए थी. हालांकि सरकार ने स्पीकर से इजाजत नहीं ली है. महाधिवक्ता से कानूनी सलाह ली गई थी लेकिन उससे पहले ही तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मौखिक तौर पर सीबीआई जांच के आदेश दे दिए थे. सीएम ने कहा कि उस मौखिक आदेश के अनुसार तत्कालीन सरकार के मुख्य सचिवों ने सीबीआई जांच के लिए अपनी सहमति दी, जो अवैध है. वहीं गृह मंत्री जी परमेश्वर ने कहा कि कैबिनेट के निर्णय के बारे में हम हाई कोर्ट को जानकारी देंगे.
उन्होंने कहा कि मामला सीबीआई कोर्ट पर छोड़ा गया है. उन्होंने कहा कि सीबीआई और अदालत आगे क्या करेगी यह व्यवस्था पर निर्भर है. दूसरी तरफ उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने सीबीआई केस को वापस लेने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि येदियुरप्पा ने मामले को सीबीआई को सौंपने का मौखिक आदेश दिया था, क्या यह राजनीति से प्रेरित नहीं था? उन्होंने कहा कि हमने यह निर्णय कानून के दायरे में अपनी सीमा के अंदर किया है. उन्होंने कहा कि कैबिनेट बैठक के फैसले को हम हाई कोर्ट को सौंपेंगे. सिस्टम में नियम है कि अगर हमें किसी विधायक के खिलाफ पहले से केस करना है तो स्पीकर से इजाजत लेनी होगी.
वहीं गृह मंत्री जी परमेश्वर ने कहा कि कैबिनेट के निर्णय के बारे में हम हाई कोर्ट को जानकारी देंगे. उन्होंने कहा कि मामला सीबीआई कोर्ट पर छोड़ा गया है. उन्होंने कहा कि सीबीआई और अदालत आगे क्या करेगी यह व्यवस्था पर निर्भर है. दूसरी तरफ उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने सीबीआई केस को वापस लेने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि येदियुरप्पा ने मामले को सीबीआई को सौंपने का मौखिक आदेश दिया था, क्या यह राजनीति से प्रेरित नहीं था?
उन्होंने कहा कि हमने यह निर्णय कानून के दायरे में अपनी सीमा के अंदर किया है. उन्होंने कहा कि कैबिनेट बैठक के फैसले को हम हाई कोर्ट को सौंपेंगे. सिस्टम में नियम है कि अगर हमें किसी विधायक के खिलाफ पहले से केस करना है तो स्पीकर से इजाजत लेनी होगी. इसी क्रम में मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा कि पिछली भाजपा सरकार द्वारा डीसीएम डीके शिवकुमार के खिलाफ मामले को सीबीआई को सौंपना अवैध था. बीजेपी ने राजनीतिक द्वेष से हमारे नेता सीएम सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को बांधने की साजिश रची है.
सरकार का फैसला अवैध-विजयेंद्र: बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने कहा कि यह अवैध संपत्ति अधिग्रहण का मामला है. इस मामले में सरकार का फैसला पूरी तरह से अवैध है. उन्होंने कहा कि डीके शिवकुमार को खुद सरकार के फैसले का विरोध करना चाहिए था. ऐसा लग रहा है कि मानो डीके शिकुमार ने मान लिया हो कि उनसे गलती हुई है. क्या वह कानून से डरते हैं? उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार के इस कैबिनेट फैसले का कड़ा विरोध करती है. हमारे कार्यकाल में लिया गया फैसला राजनीति से प्रेरित नहीं था. उन्होंने कहा कि शुरुआती जांच में अवैधता होने की जानकारी के आधार पर सीबीआई जांच की इजाजत दी गई. उन्होंने कहा कि आईटी जांच में राज्य के अलावा अन्य हिस्सों से काफी रकम जब्त की गई. हालांकि आईटी जांच अभी भी जारी है. उन्होंने प्रदेश सरकार के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. साथ ही कहा कि सरकार ने यह फैसला कानून के खिलाफ लिया है. सरकार ने उन्हें बचाने के लिए यह फैसला लिया है.
यह अवैध संपत्ति अधिग्रहण का मामला है. इस मामले में सरकार का फैसला पूरी तरह से अवैध है. डीके शिवकुमार को खुद सरकार के फैसले का विरोध करना चाहिए था. ऐसा लग रहा है मानो डीके शिवकुमार ने मान लिया हो कि उनसे गलती हुई है. क्या वह कानून से डरता है? बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बी वाई विजयेंद्र ने किया सवाल. उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार के इस कैबिनेट फैसले का कड़ा विरोध करती है.
हमारे कार्यकाल में लिया गया फैसला राजनीति से प्रेरित नहीं था. उन्होंने कहा कि शुरुआती जांच में अवैधता होने की जानकारी के आधार पर सीबीआई जांच की इजाजत दी गई. उन्होंने कहा कि आईटी जांच में राज्य के अलावा अन्य हिस्सों से काफी रकम जब्त की गई. हालांकि आईटी जांच अभी भी जारी है. उन्होंने प्रदेश सरकार के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. साथ ही कहा कि सरकार ने यह फैसला कानून के खिलाफ लिया है. सरकार ने उन्हें बचाने के लिए यह फैसला लिया है.
डीके शिवकुमार केस को सीबीआई से वापस लेना निंदनीय- केएस ईश्वरप्पा: पूर्व मंत्री केएस ईश्वरप्पा ने राज्य सरकार की कार्रवाई की निंदा की और इस बात पर नाराजगी जताई कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जल्दबाजी में कैबिनेट बैठक बुलाकर फैसला लिया. राज्य सरकार की यह जल्दबाजी भरी कार्रवाई लोकतांत्रिक व्यवस्था का अपमान है. चोर हमेशा चोर ही रहता है. कांग्रेस सरकार 139 लोगों के समर्थन से हर अवांछित काम कर रही है. डीके शिवकुमार की सभी अदालतों में उनके पक्ष में की गई अपील विफल हो गई है. उन्होंने कहा कि सीबीआई की रिपोर्ट में है कि 5 साल में 250 करोड़ की संपत्ति बढ़ी है. मुझे नहीं पता कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी इतने शांत कैसे हैं. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री का पद बरकरार रखने के लिए इस मामले को वापस लेने पर हस्ताक्षर किए थे.
राज्य सरकार लुटेरों को संरक्षण दे रही है- एचडी कुमारस्वामी: पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि कांग्रेस सरकार लुटेरों को संरक्षण दे रही है. इस सरकार में चल रही गतिविधियों पर बहुत चर्चा हो रही है. उन्होंने कहा कि मामला कोर्ट में है इसलिए ज्यादा बात करने की जरूरत नहीं है. जिनमें शिष्टाचार है वो डरते हैं, जिनमें शिष्टाचार नहीं है वो कोर्ट में हैं तो क्या, कहीं भी हैं तो क्या? उन्होंने परोक्ष रूप से डी के शिवकुमार पर निशाना साधते हुए पूछा कि उन लोगों को क्या कहा जाए जो अत्याचार में हैं जो जो चाहें खरीद सकते हैं.
नैतिक और कानूनी रूप से गलत - प्रह्लाद जोशी: केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि वे निष्पक्षता से काम कर रहे हैं. यह नैतिक और कानूनी रूप से गलत है. देश में एक न्यायिक व्यवस्था है. अदालतों ने सरकारी फैसलों के खिलाफ भी फैसले दिए हैं. न्यायिक प्रणाली पूरी तरह से स्वतंत्र है. उन्होंने कहा कि यह सही नहीं है कि आरोप पत्र दाखिल करने के चरण में ही मामला वापस ले लिया गया है. संबंधित जांच एजेंसियों की आरोप सूची अदालत को सौंपी जानी चाहिए. हमें विश्वास है कि अदालत कैबिनेट के इस फैसले को खारिज कर देगी.
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