नई दिल्ली : कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा के केंद्रीय कार्यालय में सन्नाटा पसर गया. शायद आला नेताओं को भी यह मालूम नहीं था कि कर्नाटक में उम्मीद से इतनी कम सीटें आएंगी. हालांकि भाजपा संशय तो जरूर था लेकिन फिर भी उम्मीद थी कि उन्हें विपक्ष में बैठना भी पड़ा तो वह 100 के आंकड़े को पार कर लेंगे. शुरुआती रुझानों के बाद दोपहर तक स्थिति स्पष्ट होने के बाद भाजपा मुख्यालय में सन्नाटा रहा. एक-एक कर भाजपा के नेता पार्टी के बचाव में आ चुके थे लेकिन कोई भी यह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर चूक कहां हुई. बहरहाल पार्टी के नेताओं ने यह जवाब दिया कि पार्टी हार पर मंथन करेगी और अपनी गलतियों को सुधारेगी. इस संबंध में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद जफर इस्लाम (BJP National Spokesperson Syed Zafar Islam) ने इस सवाल पर की चूक कहां हुई, उन्होंने कहा कि इस बात को लेकर पार्टी समीक्षा करेगी और मंथन करेगी कि किन बातों को लेकर चूक हुई है. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी हार और जीत दोनों के बाद ही समीक्षा करती है और इस हार के बाद भी पार्टी के अंदर मंथन जरूर होगा.
इस सवाल पर कि बीएस येदियुरप्पा के हटाए जाने के बाद लिंगायत समुदाय नाराज था, पार्टी को कहीं ना कहीं इसकी भरपाई करनी पड़ी. इस पर इस्लाम ने कहा कि येदियुरप्पा कभी भी पार्टी से अलग नहीं हुए. प्रधानमंत्री हो या फिर गृह मंत्री सभी ने येदियुरप्पा जो हमारे पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं, उन्हें पूरा सम्मान और दर्जी दिया इसीलिए लिंगायत समुदाय का अलग होना यह कहीं से भी उचित नहीं है. इस सवाल पर कि क्या बजरंगबली का नारा जनता को पसंद नहीं आया, उनका कहना था कि जनता जनार्दन है और किन बातों पर वोट करती है और किन बातों को वह पसंद करती है, वह अपने विवेक से काम लेती है लेकिन हां यदि कुछ कमियां रह गई हैं तो पार्टी उन कमियों को दूर करने की कोशिश करेगी. इस सवाल पर कि क्या कर्नाटक से लोकसभा सीटों की उम्मीद है, उन्होंने कहा कि 100 प्रतिशत लोकसभा में कर्नाटक से अच्छी सीटें आएंगी.
कहा जा सकता है कि विकास को लेकर चुनाव प्रचार की शुरुआत करने वाली भाजपा ने चुनाव प्रचार को पूरी तरह से ध्रुवीकरण पर केंद्रित कर दिया था और शायद कर्नाटक की जनता को यह पसंद नहीं आया. कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की हार पार्टी के लिए एक बड़ा धक्का तो है क्योंकि कर्नाटक को पार्टी दक्षिण के गेटवे के तौर पर देख रही थी और इसके बाद तेलंगाना और आगे चलकर तमिलनाडु में भी विधानसभा चुनाव होने हैं.
पार्टी को उम्मीद थी कि कर्नाटक में यदि अच्छी सीटें मिलती हैं तो इसका उन राज्यों के चुनाव परिणाम पर भी असर पड़ेगा लेकिन जिस तरह से पार्टी ने तमाम विकास कार्य और जनकल्याणकारी योजनाओं से हटकर अपने चुनाव प्रचार को बजरंगबली, मुस्लिम आरक्षण खत्म करने की बात या फिर एनआरसी और यूसीसी पर केंद्रित किया यह जुमला कहीं ना कहीं कर्नाटक में पार्टी के लिए काम नहीं आया. शायद यही वजह है कि पार्टी में हार के मंथन का दौर शुरू हो चुका है और शायद आने वाले राज्यों में पार्टी यह दोबारा गलती ना दोहराए.
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