नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में विकास के वादों से शुरू हुआ चुनाव प्रचार, अब ध्रुवीकरण की राजनीति पर आकर अटक गया है. बयानबाजी और अलग-अलग धार्मिक मान्यताओं का अब पूरे चुनाव प्रचार में बोलबाला हो चुका है. क्या बीजेपी-क्या कांग्रेस, अन्य पार्टियां जैसे एआईएमआईएम और जेडीएस जैसी पार्टियों ने भी धार्मिक मान्यताओं और आस्थाओं को कुरेदने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. किस बात का सबसे ज्यादा बोलबाला है कर्नाटक के चुनाव प्रचार में.
वैसे तो भाजपा ने कर्नाटक में डबल इंजन की सरकार का दम भरते हुए, चुनाव प्रचार की शुरुआत की थी, लेकिन पार्टी के चुनाव प्रचार में अब एंट्री बजरंगबली ने ले ली है. साथ ही यूसीसी और एनआरसी जैसे मुद्दों ने बीजेपी के वादों में पहले ही एंट्री ले ली थी. सूत्रों की माने तो जिस तरह कांग्रेस, एआईएमआईएम और जेडीएस जैसी पार्टियों ने बीजेपी की तरफ से आरक्षण खत्म किए जाने के बाद से प्रचार को ध्रुवीकरण की चासनी में घोला.
उससे मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की आशंका से डरी बीजेपी ने भी आखिरकार विकास के एजेंडे से हटकर अंततः हिंदू तुष्टिकरण के प्रचार पर ही अपना सारा कैंपेन केंद्रित कर दिया है. एक तो राज्य में पार्टी सत्ता में है और कहीं ना कहीं एंटी इनकंबेंसी के फैक्टर के साथ-साथ पार्टी के नेताओं की नाराजगी का फैक्टर भी बीजेपी को सता रहा है. वहीं दूसरी तरफ पार्टी में राज्य के नेता इन मुद्दों को ज्यादा तरजीह देते नजर नहीं आ रहे हैं.
हिजाब के बैन को लेकर पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री और लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा पहले से ही ज्यादा सहमत नजर नहीं आ रहे है, लेकिन केंद्रीय नेताओं की तरफ से मुस्लिम आरक्षण को खत्म करने जैसे मुद्दे और बीजेपी के दोबारा सत्ता में आने पर राज्य में एनआरसी और यूसीसी लगाए जाने के मुद्दे को जरूर हवा दी जा रही है. ये असम चुनाव के बाद पहली बार देखा जा रहा है. इससे साफ है की अब पार्टियों को अपने-अपने वोट बैंक के ध्रुवीकरण का सहारा ही नजर आ रहा है.
राज्य के प्रचार में आईएसआईएस और धर्मांतरण जैसे मुद्दे पहले ही जगह ले चुके थे और अब रही-सही कसर कांग्रेस के घोषणापत्र में बजरंग दल के बैन लगाने की बात ने पूरी कर दी. उस पर तड़का कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन के प्रधानमंत्री पर दिए गए बयान, जिसे जहरीला बयान बताते हुए केंद्रीय चुनाव आयोग से बीजेपी ने शिकायत कर प्रचार में प्रतिबंध लगाने की भी गुहार लगा है.
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बयानों का सिलसिला भी यहीं नहीं थमा और खड़गे के बेटे प्रियांग खड़गे ने भी उससे एक कदम आगे बढ़कर ताबड़-तोड़ बयान दे दिया और देखते ही देखते विकास, रोजगार, शिक्षा सफाई स्थायित्व जैसे तमाम मुद्दों से हटकर ये चुनाव अब कौन कितना ध्रुवीकरण कर सकता है इस पर आकर टिक गया है.