पालमपुर : कोरोना वायरस के संकट के कारण बने हालातों के बीच चाहें बहुत से व्यवसाय प्रभावित हुए हों, लेकिन इनके बीच हिमाचल प्रदेश में चाय उत्पादन का आंकड़ा एक बड़ी राहत देता नजर आ रहा है. महामारी काल में भी कांगड़ा चाय की पैदावार करीब 18 वर्षों के बाद 10 लाख किलोग्राम के आंकड़े को पार करने की राह पर है.
1990 के दशक में अंतरराष्ट्रीय बाजार में बनी थी खास पहचान
अपनी गुणवत्ता व महक के कारण कांगड़ा चाय ने 1990 के दशक में अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी खास पहचान बना ली थी. 1990 के दशक को कांगड़ा चाय के इतिहास का अब तक का स्वर्णिम युग माना जा सकता है. बताया जाता है कि 1990 से लेकर 2002 तक चाय उद्योग बुलंदियों पर था और हर वर्ष यहां पर दस लाख किलो से अधिक चाय का उत्पादन हो रहा था.
2001-02 में लुढ़का था आंकड़ा
आलम यह कि चाय उत्पादन के प्रति रुची दिखाने लगे छोटे व बड़े चाय उत्पादकों के प्रयासों से 1998-99 में चाय उत्पादन के सभी रिकॉर्ड टूट गए, जब उस साल 17,11,242 किलोग्राम चाय का उत्पादन क्षेत्र में हुआ. 17 लाख किलो से अधिक का रिकार्ड उत्पादन करने के चलते यह माना जा रहा था कि अब से कांगड़ा चाय उद्योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई उंचाई पर पहुंच जाएगा, लेकिन उसके बाद कुछ ऐसे कारण बने कि चाय उत्पादन का ग्राफ लगातार गिरने लगा और चिंताजनक रूप से 2001-02 के बाद से चाय उत्पादन का आंकड़ा 10 लाख किलो तक भी नहीं पहुंच पाया.
इस बार अच्छा हुआ कांगड़ा चाय का उत्पादन
टी बोर्ड इंडिया पालमपुर के उपनिदशक डॉ. अनुपम दास ने बताया कि कोविड-19 के कारण बने हालातों के बीच कांगड़ा चाय व्यवसाय प्रभावित होने की पूरी संभावना थी, लेकिन प्रदेश सरकार ने मार्च में ही केंद्र सरकार की ओर से जारी कोविड-19 के दिशा निर्देशों अनुसार लोगों को कार्य करने की अनुमति के निर्देश दिए गए थे, जिससे कांगड़ा चाय का अच्छा उत्पादन हुआ है.
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उन्होंने कहा कि चाय उत्पादन के लिए बढ़िया परिस्थितियों के चलते इस साल एक लंबे अरसे के बाद चाय पैदावार का आंकड़ा 10 लाख किलोग्राम के पार जाने की पूरी संभावना है. कांगड़ा चाय को इस बार घरेलू मार्केट में ही बढ़िया दाम मिलने से चाय के निर्यात का आंकड़ा कम रहा है.
बीते साल जहां 5700 किलोग्राम चाय निर्यात की गई थी वहीं, इस साल सिर्फ 3500 किलोग्राम के आसपास चाय निर्यात की गई है. कांगड़ा चाय का निर्यात फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड में किया जाता है.