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Kachan Gaadi ritual: कांटों के झूले में लेटकर कन्या ने बस्तर दशहरा पर्व मनाने की दी अनुमति

Bastar Dussehra बस्तर दशहरा में काछन गादी की रस्म पूरी हुई. इस रस्म में माता से दशहरा पर्व मनाने की अनुमति ली जाती है. कन्या कांटों के झूले पर लेटकर दशहरा पर्व मनाने की अनुमति राज परिवार को देती है. Kachan Gaadi ritual

Kachan Gaadi ritual completed in Bastar Dussehra
बस्तर दशहरा में काछन गादी की रस्म
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Published : Sep 26, 2022, 10:47 AM IST

जगदलपुर: अपनी अनोखी व आकर्षक परंपराओ के लिये विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की शुरुआत रविवार रात काछनदेवी की अनुमति के बाद हो गया है. दशहरा पर्व शुरू करने की अनुमति लेने की यह परम्परा भी अपने आप में अनुठी है. काछन गादी नामक इस रस्म में एक नाबालिग कुंवारी कन्या पीहू ने बेल के कांटों के झूले पर लेटकर बस्तर दशहरा शुरू करने की अनुमति दी. Kachan Gaadi ritual completed in Bastar Dussehra

बस्तर दशहरा में काछन गादी की रस्म

हजारों लोगों के बीच पूरा हुआ काछन गादी: पिछले 2 साल से कोरोना की वजह से इस रस्म में केवल बस्तर राजपरिवार के सभी सदस्य के साथ देवी देवताओं को निमंत्रण दिया गया था. लेकिन इस साल सभी लोगों को आमंत्रण दिया गया. यही वजह है कि हजारों की संख्या में लोग इस रस्म को करीब से देखने पहुंचे.

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क्या है काछन गादी: करीब 600 सालों से चली आ रही इस परंपरा की मान्यता अनुसार बेल के कांटों के झूले पर लेटी कन्या के अंदर साक्षात देवी आकर पर्व शुरू करने की अनुमति देती है. बस्तर का महापर्व दशहरा बिना किसी बाधा के संपन्न हो इस मन्नत और आशीर्वाद के लिए काछनदेवी की पूजा होती है. काछनदेवी के रूप में मिर्घान जाति की कुंआरी कन्या पीहू ने बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व शुरू करने की अनुमति दी.

6 साल की बच्ची कांटों के झूले पर लेटी: 6 साल की कन्या पीहू ने काछनदेवी के रूप में बेल के कांटों के झूले पर लेटकर सदियों पुरानी इस परंपरा को निभाने के लिए अनुमति दी. मान्यता है कि इस महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने के लिये काछनदेवी की अनुमति जरूरी है. इसके लिए मिर्घान जाति की कुंवारी कन्या को बेल के कांटों से बने झूले पर लिटाया जाता है. इस दौरान उसके अंदर खुद देवी आकर पर्व शुरू करने की अनुमति देती है.

हर साल पितृमोक्ष अमावस्या को इस प्रमुख विधान को निभा कर बस्तर राज परिवार यह अनुमति प्राप्त करते हैं. इस दौरान बस्तर राजपरिवार के सदस्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ हजारों की संख्या में लोग इस अनुठी परंपरा को देखने काछन गुडी पहुंचते हैं.

जगदलपुर: अपनी अनोखी व आकर्षक परंपराओ के लिये विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की शुरुआत रविवार रात काछनदेवी की अनुमति के बाद हो गया है. दशहरा पर्व शुरू करने की अनुमति लेने की यह परम्परा भी अपने आप में अनुठी है. काछन गादी नामक इस रस्म में एक नाबालिग कुंवारी कन्या पीहू ने बेल के कांटों के झूले पर लेटकर बस्तर दशहरा शुरू करने की अनुमति दी. Kachan Gaadi ritual completed in Bastar Dussehra

बस्तर दशहरा में काछन गादी की रस्म

हजारों लोगों के बीच पूरा हुआ काछन गादी: पिछले 2 साल से कोरोना की वजह से इस रस्म में केवल बस्तर राजपरिवार के सभी सदस्य के साथ देवी देवताओं को निमंत्रण दिया गया था. लेकिन इस साल सभी लोगों को आमंत्रण दिया गया. यही वजह है कि हजारों की संख्या में लोग इस रस्म को करीब से देखने पहुंचे.

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क्या है काछन गादी: करीब 600 सालों से चली आ रही इस परंपरा की मान्यता अनुसार बेल के कांटों के झूले पर लेटी कन्या के अंदर साक्षात देवी आकर पर्व शुरू करने की अनुमति देती है. बस्तर का महापर्व दशहरा बिना किसी बाधा के संपन्न हो इस मन्नत और आशीर्वाद के लिए काछनदेवी की पूजा होती है. काछनदेवी के रूप में मिर्घान जाति की कुंआरी कन्या पीहू ने बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व शुरू करने की अनुमति दी.

6 साल की बच्ची कांटों के झूले पर लेटी: 6 साल की कन्या पीहू ने काछनदेवी के रूप में बेल के कांटों के झूले पर लेटकर सदियों पुरानी इस परंपरा को निभाने के लिए अनुमति दी. मान्यता है कि इस महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने के लिये काछनदेवी की अनुमति जरूरी है. इसके लिए मिर्घान जाति की कुंवारी कन्या को बेल के कांटों से बने झूले पर लिटाया जाता है. इस दौरान उसके अंदर खुद देवी आकर पर्व शुरू करने की अनुमति देती है.

हर साल पितृमोक्ष अमावस्या को इस प्रमुख विधान को निभा कर बस्तर राज परिवार यह अनुमति प्राप्त करते हैं. इस दौरान बस्तर राजपरिवार के सदस्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ हजारों की संख्या में लोग इस अनुठी परंपरा को देखने काछन गुडी पहुंचते हैं.

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