वाराणसी: काशी अद्भुत नगरी है, इस नगरी में बाबा विश्वनाथ माता गंगा (Baba Vishwanath Mata Ganga) के साथ काशी यात्रा का मुख्य पौराणिक महत्व यहां के मंदिरों में दर्शन पूजन के साथ ही पूरा माना जाता है. लेकिन काशी यात्रा में जितना महत्व माता गंगा में स्नान करने और बाबा विश्वनाथ (Baba Vishwanath) के दर्शन करने का है. उससे भी कहीं ज्यादा महत्व काशी के कोतवाल काल भैरव के दर्शन करने को माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि वाराणसी में काशी कोतवाल के दर्शन के बिना काशी यात्रा अधूरी रहती है. काशी में राजा के रूप में जहां भोलेनाथ यानी बाबा विश्वनाथ विराजमान हैं. वहीं, पूरे काशी की प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने के लिए महामंत्री और कोतवाल के रूप में काल भैरव विराजमान हैं. बुधवार को पड़ने वाली भैरव अष्टमी (Bhairav Ashtami in Kashi) के मौके पर काशी के कोतवाल ( Kotwal of Kashi) काल भैरव की महिमा और इनसे जुड़ी मान्यताओं के बारे में जानते हैं.
दरअसल, काशी अलग-अलग खंडों में विभाजित है. काशी की प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने का जिम्मा कोतवाल के रूप में काल भैरव को मिला हुआ है. पुराणों में वर्णित है कि जब काशी को स्थापित किया गया था. उस समय भगवान विश्वेश्वर ने पूरे काशी की संरचना के बाद इसकी देखरेख की जिम्मेदारी अपने स्वरूप काल भैरव को सौंपी थी. श्री काल भैरव मंदिर के महंत नवीन गिरी का कहना है कि पुराणों में वर्णित है कि जब ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से सर्वश्रेष्ठ बताते हुए भगवान ब्रह्मा के 5वें मस्तक में अपने आप का बखान करते हुए अपने को त्रिदेव में सबसे बेहतर और उत्तम बताया. उस समय भगवान विष्णु ने उन्हें ऐसा ना करने की सलाह भी दी. क्योंकि महादेव देवों के देव हैं. वे सबसे उत्तम माने जाते हैं लेकिन तीनों देवताओं के मौजूद रहते हुए भी ब्रह्मा के 5वें सिर ने एक बार फिर से इसी बात को दोहराया.
इस दौरान भगवान शंकर बेहद नाराज हुए और उनके रौद्र रूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई. इसके बाद शिव के स्वरूप काल भैरव ने ब्रह्मा के उस मस्तक को काट दिया. जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा. ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए काल भैरव को काशी भेजा गया. यहीं पर रहकर ब्रह्म हत्या से पाप की मुक्ति का अनुष्ठान करने लगे. ब्रह्मा के पांचवें मस्तक को हाथ में लेकर काल भैरव काशी में घूमते रहे. इस दौरान एक स्थान पर वह कटा मस्तक उनके हाथ से छूटा. जहां उन्होंने कुंड में स्नान करके उस मस्तक को कपाल भैरव के नाम से स्थापित किया. इसके बाद भगवान शंकर ने उन्हें काशी में ही स्थापित होकर काशी के कोतवाल के रूप में नियुक्त कर दिया. जिसके बाद से काल भैरव कोतवाल के रूप में यहां स्थापित हो गए.
काशी में यमराज की नहीं चलती
महंत के मुताबिक काशी कोतवाल को यहां ब्रह्म हत्या (Brahm murder) से मुक्ति मिली और शिव ने यहां भैरव के 8 स्वरूपों को नियुक्त किया है. सबको काशी की अलग-अलग जिम्मेदारी मिली. काल भैरव को कोतवाल बनाया गया. महंत का कहना है कि मान्यताओं और पुराणों के अनुसार काल भैरव के दर्शन के बिना काशी यात्रा दूरी मानी जाती है. इसके पीछे एक मान्यता यह भी है कि काशी में यमराज की भी नहीं चलती है. यहां पर भगवान भैरवनाथ (Lord Bhairavnath) का दंड मृत्यु के उपरांत शरीर पर पड़ता है. जो व्यक्ति के बुरे कर्मों के लिए होता है. इसलिए यहां पर दंड स्वरूप मंत्रों से खुद को अभिमंत्रित करवाने के साथ ही यहां मिलने वाले काले गड्ढे को भगवान भैरवनाथ के केस के रूप में धारण करने की भी मान्यता है. जो बुरी नजरों से तो बचाता ही है साथ ही अकाल मृत्यु के भय से भी मुक्ति दिलाता है.
यहां तक कि काशी में कोई भी प्रशासनिक अधिकारी मंत्री या अन्य आने के साथ ही सबसे पहले काल भैरव का दर्शन करता है. क्योंकि ऐसी मान्यता है कि बिना उनकी अनुमति के काशी में प्रवेश भी नहीं हो सकता. यही वजह है कि जिला अधिकारी से लेकर पुलिस प्रशासनिक पदों पर कोई भी अधिकारी आने के बाद ज्वाइनिंग के लिए बाद में पहुंचता है. पहले काशी कोतवाल में मस्तक नवाने जाता है.
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