कोच्चि: केरल हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा कि पुलिस किसी मामले के सिलसिले में कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी पत्रकार का फोन जब्त नहीं कर सकती. न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि पत्रकार 'चौथे स्तंभ का हिस्सा' हैं और यदि किसी मामले के संबंध में उनके मोबाइल फोन की आवश्यकता है, तो इसे जब्त करने से पहले आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों का पालन करना होगा.
अदालत का आदेश एक मलयाली दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार जी विशकन की याचिका पर आया है, जिसमें यूट्यूब 'न्यूज' चैनल मरुनदान मलयाली के संपादक शजन स्करिया के खिलाफ अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के तहत दर्ज मामले के संबंध में पुलिस द्वारा उत्पीड़न करने का आरोप लगाया गया था. इस बीच, उच्चतम न्यायालय ने स्कारिया को पहले ही इस मामले में गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा दे दी है।.केरल की एक विशेष अदालत और यहां उच्च न्यायालय ने उन्हें यह राहत देने से इनकार कर दिया था.
क्या था मामला: दरअसल, मलयालम अखबार के एक पत्रकार ने ऑनलाइन चैनल के संपादक के खिलाफ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले के संबंध में पुलिस द्वारा प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाते हुए केरल उच्च न्यायालय का रुख किया था. पत्रकार ने दावा किया था कि तीन जुलाई को पुलिस अधिकारियों ने उनके घर पर छापा मारा, तलाशी ली और एससी/एसटी मामले में 'आरोपी' शजन स्कारिया के बारे में पूछा.
पत्रकार ने अपनी याचिका में दावा किया है कि उनके घर में 'आतंक' का माहौल बनाने के अलावा, पुलिस ने बाद में उनका मोबाइल भी जब्त कर लिया, जो उनकी आजीविका के लिए बेहद जरूरी है. उन्होंने अपना मोबाइल फोन वापस करने के लिए अदालत से अंतरिम निर्देश देने का अनुरोध किया था. पत्रकार ने वकील जयसूर्या भारतन के माध्यम से दायर अपनी याचिका में यह भी दावा किया है कि उनके घर की तलाशी अनधिकृत थी क्योंकि उन्हें पूर्व में कोई नोटिस नहीं दिया गया था और न ही अधिकारियों के पास कोई वारंट था.
पत्रकार ने यह भी दावा किया कि वह एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामले में आरोपी नहीं हैं और उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है. उन्होंने कहा कि आरोपी स्करिया के साथ उनका एकमात्र संबंध कभी-कभार समाचार साझा करना था जिसके लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता था.
(पीटीआई-भाषा)