वॉशिंगटन : जनता के नेता, सुधारक और दूसरों का दर्द समझने वाले व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध जो बाइडेन किसी जमाने में देश के सबसे युवा सीनेटरों में से एक थे और आज अपने लंबे अनुभव के साथ अमेरिकी इतिहास के सबसे बुजुर्ग राष्ट्रपति बनने तक का उनका सफर बेहद दिलचस्प रहा है. उनके पास लगभग पांच दशक का राजनीतिक अनुभव है.
छह बार सीनेटर रहे डेमोक्रेटिक नेता बाइडेन ने 78 वर्ष की उम्र में राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप को परास्त कर दिया. इससे पहले वह 1988 और 2008 में राष्ट्रपति पद की दौड़ में दो बार असफल भी रह चुके हैं.
डेलावेयर से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ नेता बाइडेन का बचपन से ही राष्ट्रपति बनने का सपना था, लेकिन तीसरे प्रयास में उनका सपना तब पूरा होता दिखा जब उन्होंने पिछले साल 29 फरवरी को साउथ कैरोलाइना से डेमोक्रेटिक पार्टी के प्राइमरी में जीत दर्ज कर कई दिग्गजों को पीछे छोड़ दिया और अमेरिका के राजनीतिक इतिहास में उनकी सबसे नाटकीय वापसी हुई.
वॉशिंगटन में पांच दशक गुजार चुके बाइडेन ह्वाइट हाउस में दो बार पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के अधीन उपराष्ट्रपति रह चुके हैं. उन्होंने इस बार खुद को अमेरिका की जनता के सामने ट्रंप के विकल्प के रूप में मजबूती से रखा.
डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से अगस्त में राष्ट्रपति चुनाव में अपनी उम्मीदवारी स्वीकार करते हुए बाइडेन ने 'अमेरिका की आत्मा' को बहाल करने का संकल्प लिया और कहा कि वह देश में प्रकाश फैलाने का काम करेंगे, न कि अंधकार.
इस बार अत्यधिक कड़वाहट भरे राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप को पराजित कर बाइडेन ह्वाइट हाउस में सत्तासीन होने वाले अब तक के सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं.
बाइडेन ने अपने विजय भाषण में देश को एकजुट करने का संकल्प लिया और कहा, 'यह अमेरिका में जख्मों पर मरहम लगाने' का समय है.
उन्होंने कहा, 'मैं इस पद का इस्तेमाल अमेरिका की आत्मा को बहाल करने, इस राष्ट्र के आधार का पुनर्निर्माण करने, मध्यम वर्ग के लिए काम करने और अमेरिका को फिर से विश्व में सम्माननीय बनाने तथा यहां देश में हम सभी को एकजुट करने के लिए करना चाहता हूं.'
तीन दशक से अधिक समय तक डेलावेयर से सीनेटर रहने और फिर ओबामा के तहत आठ साल तक उपराष्ट्रपति रहने के दौरान बाइडेन का भारत-अमेरिका संबंधों का मजबूत पैरोकार रहने का ट्रैक रिकॉर्ड है.
बाइडेन ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि भारत और अमेरिका स्वाभाविक साझेदार हैं.
रिपब्लिकन प्रशासन के दौरान भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार पारित कराने और द्विपक्षीय कारोबार में 500 अरब डॉलर का लक्ष्य तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने से लेकर बाइडेन के हमेशा भारतीय नेतृत्व के साथ मजबूत संबंध रहे हैं. बड़ी संख्या में भारतीय-अमेरिकी उनसे जुड़े हैं.
बाइडेन ने अपने प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर कम से कम 20 भारतीय-अमेरिकियों को नामित किया है जिनमें से 13 महिलाएं हैं. यह अपने आप में एक ऐसे छोटे जातीय समूह के लिए एक नया रिकॉर्ड है जिसकी आबादी कुल आबादी का महज एक प्रतिशत है. इन लोगों में से 17 शक्तिशाली ह्वाइट हाउस परिसर का हिस्सा होंगे.
देश के 46वें राष्ट्रपति के रूप में बाइडेन का शपथग्रहण भी अपने आप में ऐतिहासिक है क्योंकि कमला हैरिस के रूप में पहली बार कोई महिला देश में उपराष्ट्रपति पद की कमान संभालेगी.
छप्पन वर्षीय हैरिस भी अमेरिका की उपराष्ट्रपति बनने वाली भारतीय मूल की पहली अफ्रीकी अमेरिकी महिला हैं.
सन 1942 में पेनसिल्वेनिया में कैथोलिक परिवार में जन्मे जो रॉबिनेट बाइडेन जूनियर ने यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर में पढ़ाई की और फिर 1968 में सिरकॉस यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री प्राप्त की. उनके पिता भट्टी की सफाई करने तथा पुरानी कारें बेचने का काम करते थे.
बाइडेन पहली बार 1972 में निर्वाचित हुए और डेलावेयर राज्य से छह बार सीनेटर रहे.
वह पहली बार 29 साल की उम्र में निर्वाचित होकर अमेरिकी सीनेट के लिए चुने जाने वाले सबसे युवा प्रतिनिधियों में से एक थे.
बाइडेन ने 1988 और 2008 में भी अपनी पार्टी से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनने के लिए दावेदारी की थी, लेकिन असफल रहे थे.
स्पष्ट वक्ता के रूप में जाने जाने वाले बाइडेन 1972 की कार दुर्घटना सहित अपने परिवार के साथ हुईं दुखद घटनाओं के बारे में खुलकर बात करते हैं. कार दुर्घटना में उनकी पहली पत्नी नीलिया और उनकी 13 महीने की बेटी नाओमी की मौत हो गई थी तथा उनके बेटे ब्यू और हंटर गंभीर रूप से घायल हो गए थे.
बाइडेन की अपनी दूसरी पत्नी जिल जैकब से 1975 में मुलाकात हुई थी और फिर जून 1977 में उन्होंने शादी कर ली. 1981 में उनकी बेटी एश्ले पैदा हुई.
वर्ष 2015 में बाइडेन के पुत्र 46 वर्षीय ब्यू की ब्रेन ट्यूमर से मौत हो गई जिन्होंने इराक युद्ध में भाग लिया था तथा डेलावयेर के अटॉर्नी जनरल के रूप में सेवाएं दी थीं.
वर्ष 1988 में बाइडेन को भी दिमाग से जुड़ी एक समस्या हुई थी.
बाइडेन को पिछले साल राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी तब मिली थी जब प्रतिद्वंद्वी सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने अप्रैल 2020 में उम्मीदवारी की दौड़ से अपना नाम वापस ले लिया.
बाइडेन पर यौन उत्पीड़न के आरोप भी लगे जिन्हें उन्होंने खारिज किया.