हजारीबाग : प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती, जरूरत होती है तो सिर्फ उसे निखारने की. हजारीबाग जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर बिष्णुगढ़ प्रखंड के उच्चाघाना गांव में महेश करमाली नाम के एक शख्स रहते हैं. महेश को उसके माता पिता बचपन में ही अपने साथ मुंबई लेकर चले गए. गरीबी की वजह से पढ़ाई भी नहीं कर सके. पहले तो वह मजदूरी करते थे, लेकिन बाद में किसी कंपनी में नौकरी मिल गई. हालांकि मैट्रिक पास नहीं होने के कारण उन्हें नौकरी से हटा दिया गया. लॉकडाउन के दौरान बीते साल उन्हें मुंबई छोड़ना पड़ा. वे जब हजारीबाग पहुंचे तो उनके पास दो वक्त की रोटी का भी इंतजाम नहीं था.
गरीबी से जूझते महेश करमाली ने हार नहीं मानी. महेश करमाली ने ईटीवी भारत को बताया कि विष्णुगढ़ के उच्चाघाना में खेती की जमीन थी, लेकिन खेती के लिए पैसा नहीं थे. ना ही उनके पास बैल थे, जिससे खेत जोत सके. लिहाजा उन्होंने कबाड़ से पावर टिलर बनाने की सोची.
तीन दिन में बनाई खेत जोतने की मशीन
मुंबई के एक गैरेज में काम करने के दौरान महेश करमाली ने गाड़ी रिपेयर करना सीखा था. ऐसे में उन्होंने कबाड़ी से एक पुराना स्कूटर खरीदा और फिर अपने एक दोस्त की मदद से गोमिया में खेत जोतने की मशीन बना ली. तीन दिन की जी-तोड़ मेहनत से मशीन बनकर तैयार हो गई.
खेत जोतने की इस मशीन को बड़ी मुश्किल से वे गांव लेकर आए तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाया कि यह क्या ले आए हो? अब इसी मशीन की वाहवाही हर जगह हो रही है. आलम यह है कि अब आस-पास के गांव के लोग भी पावर टिलर बनाने के लिए ऑर्डर दे रहे हैं. महेश की कोशिश है कि गरीबों के लिए वे कम से कम खर्चे पर मशीन बना सकें.
मजदूर बना इंजीनियर
महेश करमाली की बेटी रौशनी कहती हैं कि "मुझे अपने पिता पर बहुत गर्व है कि उन्होंने कबाड़ से खेत जोतने की मशीन बना दी. अब हमारे खेत में फसल उग रही है, जिससे हम लोग आर्थिक रूप से सबल हो रहे हैं. हमारे पिताजी के बारे में चर्चा भी हो रही है. आस-पास के गांव के लोग पापा को इंजीनियर बोलते हैं. ऐसे में मुझे बहुत खुशी होती है. खेती से जो पैसा आता है, उससे मेरे पापा मुझे पढ़ा भी रहे हैं. ताकि मैं उन्हें भविष्य में मदद कर सकूं."
आस पड़ोस के लोग भी महेश करमाली की मेहनत को सलाम कर रहे हैं. उनका कहना है कि महेश ने बहुत ही कठिन परिस्थितियों में जीवन जिया है. लेकिन अब इनकी मशीन ने जीवन में खुशियों की रफ्तार तेज कर दी है. महेश करमाली की मां भी पुराने दिनों को याद कर कहती हैं कि अब धीरे-धीरे हमारी घर की स्थिति सुधर रही है, जिसका एकमात्र कारण पावर टिलर है. महेश करमाली चाहते हैं कि सरकारी मदद मिले तो वे छोटा से गैरेज बनाएं और उस गैरेज के जरिए पावर टिलर समेत दूसरी किफायती मशीन भी बना सकें.
पढ़ेंः सावरकर के पोते रंजीत बोले- मुझे नहीं लगता कि गांधी राष्ट्रपिता हैं