झांसी: झांसी नगर निगम की फाइलों में एक ऐसा काला दस्तावेज दर्ज कर दिया गया है, जिसका जख्म पीढ़ियों को टीस देगा. शासन ने नगरों के सृजन और इतिहास के बारे में जानकारी मांगी, ताकि हर शहर की जन्म तिथि तय करते हुए उत्सव मनाया जा सके. लेकिन, इतिहास के पन्ने खंगालने और इतिहासविदों से लम्बी मंत्रणा के बाद नगर निगम ने 20 साल पुरानी वह तारीख शासन को बता दी, जब नगर निगम का गठन हुआ था. शासकीय अभिलेखों में अगर यह तारीख दर्ज हो गई तो झांसी का 600 साल पुराना इतिहास गुम हो जाएगा.
दरअसल, स्थानीय निकाय निदेशालय के विशेष सचिव डॉ. राजेंद्र पैंसिया ने जुलाई 2022 में नगर निगम को पत्र भेजकर देश में शहरों की पहचान सुनिश्चित करने के लिए नगरों के सृजन दिवस को जन्मदिवस के तौर पर मनाने का निर्देश दिया था. इसके अंतर्गत नगरों की जन्मतिथि तलाशने के निर्देश दिए गए. नगर आयुक्त पुलकित गर्ग ने अपर नगर आयुक्त की अध्यक्षता में कमेटी का गठन करते हुए नगर के जन्म दिवस की तारीख तय करने के निर्देश दिए. इसके लिए नगर आयुक्त ने अपर नगर आयुक्त मो. कमर की अगुवाई में आठ सदस्यीय कमेटी गठित कर दी थी. इसमें क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. सुरेंद्र दुबे, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अजीत सिंह, जेडएसओ रवि निरंजन, क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी दीपा अरोरा, उपायुक्त उद्योग मनीष चौधरी, इतिहासविद् वसीम खान, मुकुल मेल्होत्रा एवं नीति शास्त्री को शामिल किया गया था.
अलग-अलग विभाग के अधिकारियों व इतिहासविदों की टीम ने झांसी के इतिहास के पन्ने खंगाले. कमेटी के सामने कई गजेटियर पेश किए गए. झांसी से संबंधित पुराने दस्तावेज भी पलटे गए. लेकिन, निगम अफसरों ने इनमें दर्ज किसी तथ्य को नहीं माना. इसके बाद झांसी नगर पालिका को नगर निगम में बदलने की तिथि 7 फरवरी 2002 को ही शहर के जन्मतिथि के तौर पर मानने की सहमति बन गई. यही रिपोर्ट भी शासन को भेज दी गई है. नगर निगम की इस रिपोर्ट पर इतिहास के जानकारों और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य, पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री रविंद्र शुक्ला ने कड़ी नाराजगी जताई है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन ने जताई नाराजगी
पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन ने कहा कि नगर निगम अफसर मनमाने तरीके से झांसी के इतिहास के साथ खिलवाड़ करते रहे. वहीं, झांसी की नुमाइंदगी करने वाले जनप्रतिनिधि इस पूरे मामले में रहस्यमयी चुप्पी साधे हुए हैं. कमेटी की बैठक एवं उसकी रिपोर्ट सामने आने के बाद भी महापौर समेत पार्षदों की ओर से कोई विरोध दर्ज नहीं कराया गया. उनकी सहमति के साथ यह रिपोर्ट शासन को भेजी गई. उन्होंने कहा कि झांसी के इतिहास के साथ किसी भी स्थिति में खिलवाड़ नहीं होने देंगे, चाहे इसके लिए हमें अपने आपको यहां की माटी पर समर्पित करना पड़े. यह रिपोर्ट भेजना कि 7 फरवरी 2002 को झांसी का नाम रखा गया इस सदी का सबसे बड़ा झूठ है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन ने कहा कि सभी जानते हैं कि 1606 के अंदर ओरछा के राजा वीर सिंह जूदेव ने बहुत सारी गढ़िया और दुर्ग बनवाए थे और झांसी का निर्माण भी उसी समय में हुआ था. इतिहास के पुराने पन्नों को अगर देखें तो 1861 में झांसी में कमिश्नर की नियुक्ति हुई थी. झांसी में नगर पालिका बनी थी. इस तरह का भद्दा मजाक बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. जिन अधिकारियों ने इस तरीके का कारनामा किया है उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. इन अधिकारियों का यह कोई पहला कारनामा नहीं है. इससे पहले रानी लक्ष्मीबाई की तलवार चली गई, वस्त्र चले गए और उनकी ढाल चली गई. इसके अलावा झांसी रेलवे स्टेशन का नाम भी बदल दिया गया. जिसके लिए कहा गया था कि भूल बस हो गया. बड़े आंदोलन करने के बाद उसमें झांसी नाम शामिल किया गया. भूल बस ऐसी गलतियां करना यह लोग बंद करें.
'पीएम मोदी और सीएम योगी को लिखेंगे पत्र'
उन्होंने कहा कि इसके लिए हम प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखेंगे. अगर इस गलती को सुधारा नहीं गया तो फिर उसी तरह का सर्व समाज और सभी पार्टियों के साथ मिलकर एक बार फिर ऐसा आंदोलन किया जाएगा जो झांसी रेलवे स्टेशन के नाम बदलने के समय पर किया गया था. वहीं, पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री उत्तर प्रदेश रविंद शुक्ला ने भी इस मामले पर बड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि इनसे अगर पूछा गया कि झांसी का जन्म कब हुआ तो इनको बताना चाहिए था उस तारीख को जब झांसी की उत्पत्ति हुई. और अगर इनसे पूछा गया कि झांसी नगर निगम कब बना तो वह तारीख ठीक होती जो इन्होंने दी है. लेकिन, अगर इनसे पूछा गया कि झांसी की जन्म तिथि क्या है और इन्होंने 7 फरवरी 2000 2 तारीख शासन को लिखकर भेजी है तो यह सरासर गलत है.
यह भी पढ़ें: कमीशनखोरी के आरोप में कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति विनय पाठक के खिलाफ FIR दर्ज
यह दुर्भाग्य है जो अधिकारी रिपोर्ट देते हैं वास्तव में इनका ज्ञान कम है. इतिहास से इनका कोई लेना देना नहीं होता. न ही पढ़ते हैं और न ही जानना चाहते हैं. यही बड़ा दुर्भाग्य है. सच यह है कि झांसी का नाम पहले बलवंत नगर हुआ करता था. चीनी यात्री ह्वेनसांग जब यहां आया था, तब यह झुझुस्व प्रदेश था. उसकी यह राजधानी थी बलवंत नगर. इससे ही प्रवर्तित होते हुए झांसी इसका नाम हो गया. यह शहर आज का नहीं है. बहुत प्राचीन नगर है. इसके लिए इतिहास को खंगालना होगा. गैजेटियर देखना होगा कि इसकी जन्म तिथि क्या है.