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साइबर क्राइम हब बना जामताड़ा, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च की रिपोर्ट में भी बताए गए इनके धोखाधड़ी के तरीके

झारखंड के जामताड़ा को साइबर क्राइम हब के रूप में पहचान मिली हुई है. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च इन इंजीनियरिंग, साइंस एंड मैनेजमेंट में प्रकाशित रिपोर्ट में जामताड़ा के साइबर क्राइम से जुड़े लोगों के काम करने के तौर तरीकों को बताया गया है. Jamtara Cyber Crime Hub.

Jamtara Cyber Crime Hub
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Published : Aug 27, 2022, 10:40 PM IST

रांची/नई दिल्ली: झारखंड में संथाल परगना के आदिवासी क्षेत्र जामताड़ा को साइबर क्राइम हब (Jamtara Cyber Crime Hub) के रूप में पहचान मिली हुई है. यहां बैंक प्रबंधकों के रूप में धोखेबाजों द्वारा किए गए आधे से अधिक अपराध इसी शहर से सामने आए हैं. सैकड़ों स्थानीय युवाओं को साइबर अपराध में विशेषज्ञता प्राप्त है, उनके हाथों में वेब-कनेक्टेड मोबाइल फोन का हथियार हैं.

ये भी पढ़ें- Jagte Raho: गोल्डन आवर्स आपको देगा साइबर क्रिमिनल्स के खिलाफ मौका, जानें क्या है इसके रूल्स

उनके काम करने का तरीका बेहद सरल है. एक नकली आईडी के माध्यम से प्राप्त सिम से नंबरों की एक सीरीज पर कॉल करें, एक अन्य मोबाइल फोन के साथ दूसरे साथी को तैयार रखें, जो एटीएम या डेबिट कार्ड और ओटीपी को तेजी से नोट कर सकें. एक बार जब अकाउंट से पैसा ई-वॉलेट में ट्रांसफर हो जाते हैं, तो वह तुरंत मौका देख निकालने में कामयाब हो जाते हैं.

जमशेदपुर की अर्का जैन यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रॉनिक्स और कॉम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में अस्टिेंट प्रोफेसर श्वेता कुमारी बरनवाल के अनुसार, मोबाइल फोन उनके लिए साइबर कैफे का काम करता था. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च इन इंजीनियरिंग, साइंस एंड मैनेजमेंट (International Journal of Research in Engineering Science and Management) में प्रकाशित जामताड़ा के साइबर क्राइम पर आधारित एक रिपोर्ट में उनके तौर-तरीकों का वर्णन किया गया.

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के अलग-अलग हिस्सों से बैंक प्रबंधकों के रूप में कॉल करने के लिए लोगों के फोन नंबरों को शॉर्टलिस्ट की जाती है और उसके बाद कार्रवाई शुरू होती है. सबसे आम रणनीति अपनी पहचान को बदलना होता है. वे बैंक प्रबंधकों के रूप में कॉल करते हैं, अपने पीड़ितों को बैंक अकाउंट और कार्ड डिटेल शेयर करने के लिए कहते हैं, और फिर जानकारी का उपयोग अपने अकाउंट में पैसा ट्रांसफर करने के लिए करते हैं.

ये भी पढ़ें- Cyber Crime In Jharkhand: ऑनलाइन क्लास करने वाले टीनएजर्स बन रहे साइबर अपराधियों का निशाना

आमतौर पर, यह पीड़ितों को यह कहकर डराते हैं कि उनका एटीएम कार्ड ब्लॉक कर दिया गया है. अगर इसे जल्द ही रिन्यू नहीं कराया तो यह इनएक्टिव हो जाएगा. यही नहीं, जामताड़ा के युवा अपने पीड़ितों को आकर्षक ऑफर भी देते हैं, जैसे कम ब्याज पर भारी कर्ज, अधिक सीमा वाले क्रेडिट कार्ड, या फिर वह पीड़ितों को डराने के लिए कहेंगे कि अगर उन्होंने डिटेल नहीं दी, तो उनका बैंक खाता या एटीएम बंद कर दिया जाएगा.

बरनवाल ने रिपोर्ट में आगे बताया, फिर वे 16 डिजीट कार्ड नंबर और उसकी डिटेल मांगते हैं. कॉल पर, स्वयं या उनके साथी में से कोई एक ई-वॉलेट में सीवीवी नंबर और कार्ड की एक्सपायरी डेट समेत अन्य जानकारी को फीड करता रहता है. फिर, वे पीड़ित से ओटीपी मांगते हैं और इस तरह यह पीड़ित के अकाउंट से ई-वॉलेट में पैसा ट्रांसफर कर लेते हैं.

बरनवाल ने कहा, पैसा आने पर अपराध में शामिल सभी लोगों के बीच बराबर हिस्सों में बांट लिया जाता है. अपराध में शामिल सभी लोगों के पास ई-वॉलेट नहीं होते, जो इस पूरी चेन का केंद्रबिंदु बन जाते हैं. चूंकि कड़े केवाईसी डॉक्यूमेंनटेशन के कारण ई-वॉलेट के जरिए लेन-देन करना मुश्किल है, इसलिए वह टैप्जो, टीएमडब्ल्यू, काइटकेस और कई चीनी समेत ई-वॉलेट को हथियार के रूप में तैयार रखते हैं.

प्रोफेसर ने रिपोर्ट में लिखा है कि वे हमेशा एक नया ई-वॉलेट की तलाश में रहते हैं, इसके लिए वे संबंधित यूजर से लीज पर अकाउंट लेते हैं और इसके बदले में कुछ राशि का भुगतान करते हैं. पुलिस सिम कार्ड बेचने वालों, ई-वॉलेट कंपनियों और इस चेन में शामिल बैंक खातों के नेटवर्क पर शिकंजा कस रही है.

रांची/नई दिल्ली: झारखंड में संथाल परगना के आदिवासी क्षेत्र जामताड़ा को साइबर क्राइम हब (Jamtara Cyber Crime Hub) के रूप में पहचान मिली हुई है. यहां बैंक प्रबंधकों के रूप में धोखेबाजों द्वारा किए गए आधे से अधिक अपराध इसी शहर से सामने आए हैं. सैकड़ों स्थानीय युवाओं को साइबर अपराध में विशेषज्ञता प्राप्त है, उनके हाथों में वेब-कनेक्टेड मोबाइल फोन का हथियार हैं.

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उनके काम करने का तरीका बेहद सरल है. एक नकली आईडी के माध्यम से प्राप्त सिम से नंबरों की एक सीरीज पर कॉल करें, एक अन्य मोबाइल फोन के साथ दूसरे साथी को तैयार रखें, जो एटीएम या डेबिट कार्ड और ओटीपी को तेजी से नोट कर सकें. एक बार जब अकाउंट से पैसा ई-वॉलेट में ट्रांसफर हो जाते हैं, तो वह तुरंत मौका देख निकालने में कामयाब हो जाते हैं.

जमशेदपुर की अर्का जैन यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रॉनिक्स और कॉम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में अस्टिेंट प्रोफेसर श्वेता कुमारी बरनवाल के अनुसार, मोबाइल फोन उनके लिए साइबर कैफे का काम करता था. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च इन इंजीनियरिंग, साइंस एंड मैनेजमेंट (International Journal of Research in Engineering Science and Management) में प्रकाशित जामताड़ा के साइबर क्राइम पर आधारित एक रिपोर्ट में उनके तौर-तरीकों का वर्णन किया गया.

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के अलग-अलग हिस्सों से बैंक प्रबंधकों के रूप में कॉल करने के लिए लोगों के फोन नंबरों को शॉर्टलिस्ट की जाती है और उसके बाद कार्रवाई शुरू होती है. सबसे आम रणनीति अपनी पहचान को बदलना होता है. वे बैंक प्रबंधकों के रूप में कॉल करते हैं, अपने पीड़ितों को बैंक अकाउंट और कार्ड डिटेल शेयर करने के लिए कहते हैं, और फिर जानकारी का उपयोग अपने अकाउंट में पैसा ट्रांसफर करने के लिए करते हैं.

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आमतौर पर, यह पीड़ितों को यह कहकर डराते हैं कि उनका एटीएम कार्ड ब्लॉक कर दिया गया है. अगर इसे जल्द ही रिन्यू नहीं कराया तो यह इनएक्टिव हो जाएगा. यही नहीं, जामताड़ा के युवा अपने पीड़ितों को आकर्षक ऑफर भी देते हैं, जैसे कम ब्याज पर भारी कर्ज, अधिक सीमा वाले क्रेडिट कार्ड, या फिर वह पीड़ितों को डराने के लिए कहेंगे कि अगर उन्होंने डिटेल नहीं दी, तो उनका बैंक खाता या एटीएम बंद कर दिया जाएगा.

बरनवाल ने रिपोर्ट में आगे बताया, फिर वे 16 डिजीट कार्ड नंबर और उसकी डिटेल मांगते हैं. कॉल पर, स्वयं या उनके साथी में से कोई एक ई-वॉलेट में सीवीवी नंबर और कार्ड की एक्सपायरी डेट समेत अन्य जानकारी को फीड करता रहता है. फिर, वे पीड़ित से ओटीपी मांगते हैं और इस तरह यह पीड़ित के अकाउंट से ई-वॉलेट में पैसा ट्रांसफर कर लेते हैं.

बरनवाल ने कहा, पैसा आने पर अपराध में शामिल सभी लोगों के बीच बराबर हिस्सों में बांट लिया जाता है. अपराध में शामिल सभी लोगों के पास ई-वॉलेट नहीं होते, जो इस पूरी चेन का केंद्रबिंदु बन जाते हैं. चूंकि कड़े केवाईसी डॉक्यूमेंनटेशन के कारण ई-वॉलेट के जरिए लेन-देन करना मुश्किल है, इसलिए वह टैप्जो, टीएमडब्ल्यू, काइटकेस और कई चीनी समेत ई-वॉलेट को हथियार के रूप में तैयार रखते हैं.

प्रोफेसर ने रिपोर्ट में लिखा है कि वे हमेशा एक नया ई-वॉलेट की तलाश में रहते हैं, इसके लिए वे संबंधित यूजर से लीज पर अकाउंट लेते हैं और इसके बदले में कुछ राशि का भुगतान करते हैं. पुलिस सिम कार्ड बेचने वालों, ई-वॉलेट कंपनियों और इस चेन में शामिल बैंक खातों के नेटवर्क पर शिकंजा कस रही है.

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