भोपाल : बॉलीवुड फिल्मों में देखा होगा कि बचपन में खोए हुए बच्चे के जवान होने पर मां उसके शरीर पर बने किसी निशानी से पहचान लेती और अधूरा परिवार पूरा हो जाता है. हालांकि असल जिंदगी में ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है, लेकिन हाल ही में महाराष्ट्र से ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. यहां 10 साल पहले घर से लापता हुआ एक लड़का 'आधार कार्ड' के जरिए अपने असली यानी बायलॉजिकल माता पिता से मिल सका है.
एक बात और गौर करने वाली है कि आधार कार्ड फर्जी तरीके से सरकारी योजनाओं का लाभ लेने वालों के लिए एक मजबूत हथियार बनकर सामने आया है. आधार कार्ड को देश में भले ही नागरिकों की पहचान बताने वाला अहम दस्तावेज माना जा रहा है, लेकिन इसने अब सामाजिक तौर पर खोए हुए लोगों की खोज-खबर लेने में भी अहम भूमिका निभाना शुरू कर दिया है. आइए हम आपको बताते हैं कैसे एक परिवार की खुशियां लौटाने में आधार मददगार साबित हुआ.
'आधार' से मिला आमिर को परिवार
मध्य प्रदेश के जबलपुर से आठ साल की उम्र में लापता हुआ मानसिक रूप से अशक्त आमिर आधार कार्ड की वजह से अब 18 साल की उम्र में अपने परिवार वालों से दोबारा मिल पाया है. वह महाराष्ट्र के नागपुर में एक दामले परिवार के साथ रहने लगा था. 2011 में आमिर के लापता होने से पहले परिवार के सदस्यों ने उसका आधार पंजीकरण कराया था, जिसने अब घरवालों से मिलने में उसकी मदद की. इतने वर्षों से परिवार के सदस्य की तरह उसकी देखभाल करने वाले व्यक्ति समर्थ दामले ने कहा कि आमिर को 30 जून को उसके माता-पिता को सौंप दिया गया. दामले नागपुर के पंचशील नगर इलाके में एक अनाथालय चलाते थे. जो 2015 में बंद हो गया. दामले ने बताया कि वह करीब आठ साल का था और रेलवे स्टेशन पर भटकता मिला था. पुलिस उसे हमारे अनाथालय लेकर आई थी.
साफ बोल ना पाने और स्कूल में पढ़ने लिखने में मन ना लगने के साथ ही स्कूल बंक करने की आदत और कचरा बीनने वाले बच्चों की संगत. आमिर एक बार अपनी इन्हीं आदतों के चलते पुलिस थाने भी पहुंच गया था. जहां से उसके माता -पिता उसे लेकर आए थे, लेकिन 10 पहले जब वो घर से गायब हुआ तो फिर किसी को नहीं मिला, क्योंकि वो किसी ट्रेन में चढ़कर नागपुर पहुंच गया. यहां वह एक अनाथालय में भी रहा. एक संस्था ने उसे यहां पहुंचाया था. यहां से नागपुर के दामले परिवार ने उसे गोद लिया. अब 10 साल बाद एक बार फिर वह अपने पुराने परिवार के पास लौट आया है.
आमिर को मिला नया नाम 'अमन'
नागपुर के दामले दंपती ने 2012 में सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद अनाथालय में जहां आमिर एक लावारिस के तौर पर दर्ज था. दामले परिवार के घर में आए आमिर को अब हिंदू नाम अमन मिल चुका था. यह अमन भी पूरी तरह खुद के आमिर होने की बात को भूल चुका था. मानसिक तौर पर कमजोर आमिर का दामले परिवार ने इलाज कराया. वह दामले परिवार के साथ बीते 9 साल से उनके बेटे की तरह रह रहा था. अमन की असली पहचान मिलने के बाद दामले परिवार भी खुशी-खुशी उसे उसके अपने परिवार को सौंपने के लिए तैयार हो गए.
आमिर उर्फ अमन ने जोड़ा प्यार का बंधन
नागपुर के नवप्रकाश परिसर में रहने वाले दामले परिवार के मुखिया समर्थ दामले के परिवार में उनकी पत्नी लक्ष्मी, एक बेटा और बेटी भी हैं, लेकिन इन सभी ने अमन की पहचान और पता मिलने के बाद उसे उसके असली मां-बाप से मिलाने की कोशिश शुरू कर दी. जबलपुर पुलिस से संपर्क किया गया और स्थानीय पार्षद ने आमिर के पिता को उनके लड़के के जिंदा होने और नागपुर में होने की सूचना दी. जिसके बाद पुलिस की मदद से आमिर अपने परिवार और अपने असली माता-पिता के पास पहुंच गया.
टूट चुकी थी परिवार की उम्मीद
आमिर की बूढ़ी दादी ने बताया कि उन्होंने और परिवार के दूसरे लोगों ने आमिर को ढू़ंढने की बहुत कोशिश की. कई मंदिरों- मजारों पर मन्नतें मांगी, पुलिस में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी लिखाई. आस-पास के भी कई दरगाहों और मजारों पर बैठे बैठे कई दिन गुजारे. उम्मीद थी शायद आमिर यहां आए, लेकिन कई दिनों के इंतजार के बाद भी ऐसा नहीं हुआ. आमिर के मिलने की परिवार की उम्मीद टूट चुकी थी. आमिर के पिता, मां, बहन बूढ़ी दादी सभी आमिर को खोज-खोज कर हिम्मत हार चुके थे. उन्हें लगने लगा था कि आमिर जिंदा भी होगा या नहीं.
जब...पता पूछते हुए अयूब के घर पहुंचे स्थानीय पार्षद
कुछ दिन पहले ही अचानक स्थानीय पार्षद अयूब शेख के घर का पता पूछते पूछते उनके घर का सामने जा पहुंचे. उन्होंने जिस घर के सामने खड़े होकर अयूब शेख का पता पूछा तो लोगों ने बताया कि जहां आप खड़े हैं यही अयूब शेक का घर है. पार्षद ने आमिर की मां से मुलाकात की और यहीं से पूरी कहानी आगे बढ़ती चली गई. पार्षद ने आमिर की मां से उनके बच्चे के बारे में पूछा कि वह कहां है, क्या उन्हें उसके बारे में कुछ पता है. उन्हें बताया गया कि वह पिछले 10 साल से गायब है और आज तक नहीं लौटा है.
एक लड़के के आधार कार्ड में आपके घर का पता है!
स्थानीय नेता ने आमिर के परिजनों को बताया कि नागपुर में एक 17-18 साल का लड़का है, जिसके आधार कार्ड में आपके घर का पता दर्ज है. ऐसा सुनते ही परिजनों की खुशी का ठिकाना न रहा. आमिर से मिलने की उनकी उम्मीदें फिर से जिंदा होने लगीं थी. यह बात पता लगते ही कड़ियां आपस में जुड़ने लगीं. अयूब पुलिस से मिले, पुलिस ने आधार कार्ड के फोटो के माध्यम और जहां से आमिर का आधार कार्ड बनवाने के लिए एप्लाई किया गया था वहां का पता निकाला और अयूब अपने बेटे को लेने इस पते पर रवाना हो गए.
अपने असली परिवार को नहीं पहचाना पाया था आमिर
ईटीवी भारत से बातचीत में आमिर की मां मेहरुन्निसा ने बताया कि जब कई साल बाद आमिर अपने माता-पिता से मिला तो वह उन्हें ठीक से पहचान भी नहीं पाया था. उसे बीती हुए चीजें याद नहीं थी, लेकिन जब उसे यहां लेकर आए तो वह धीरे-धीरे सभी को अपने घर को और कॉलोनी के लोगों को और अपने दोस्तों को भी पहचानने लगा है.
बाइक से 250 किलोमीटर दूर जन्मदिन मनाने पहुंचा नागपुर
ईटीवी भारत की टीम जब जबलपुर में आमिर के घर पर पहुंची तव वह अपने घऱ पर नहीं था. उसके परिजनों ने बताया कि वह अपने पिता के साथ मां लक्ष्मी दामले का जन्मदिन मनाने और अपने बीमार दादाजी को देखने नागपुर गया हुआ है. हमारे सामने ही आमिर के परिजनों ने अमन के परिजनों से वीडियो कॉलिंग के जरिए बातचीत की और उनकी खैरियत ली. दोनों परिवारों के बीच इतनी आत्मियता से बातचीत हुई. दो अलग-अलग राज्यों में रहने वाले एक दूसरे से अंजान दोनों परिवारों के बीच यह प्यार का बंधन इस बच्चे की वजह से ही बंधा है. यहां ना तो कोई हिंदू नजर आया ना कोई मुस्लिम, दिखाई दी तो दोनों परिवारों की बीच आत्मीय रिश्ता जोड़ने वाली प्यार की डोर और आमिर उर्फ अमन की दो मां एक देवकी तो दूसरी यशोदा.
अपनेपन ने गिराई मजहब की दीवार
एक मुस्लिम लड़का जिसे नागपुर के दामले परिवार ने अपने बेटे की तरह पाला. उसे लाड़-प्यार और अपनापन दिया. इतना प्यार की अमन बना आमिर अपने असली परिवार और बायोलॉजिक माता-पिता को भूल चुका था. उसके परिवार वालों को उसके जिंदा होने की उम्मीद ही नहीं थी, लेकिन जब उन्हें पता चला कि उनका आमिर नागपुर के दामले परिवार के पास है तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा वे उसे लेने नागपुर पहुंच गए. इस बात का कोई ख्याल नहीं आया कि वह हिंदू परिवार उनके साथ कैसा व्यवहार करेगा. उनका बेटा उन्हें मिलेगा या नहीं, फोन पर हुई बातों से अपनेपन की ऐसी डोर जुड़ी जिसमें धर्म और मजहब की बातें कहीं आड़े ही नहीं आईं.
मुस्लिम परिवार में जन्मा आमिर जिसे एक हिंदू परिवार ने पाया अपनापन दिया यही साबित करता है धर्म और मजहब इंसानी रिश्तों से ऊपर नहीं हो सकते. आमिर 2015 तक एक अनाथालय में रहा. अनाथालय बंद हो जाने के बाद उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था. इसके बाद दामले परिवार अनाथालय से संपर्क कर उसे अपने घर ले गया. तब से वह उनके परिवार के साथ ही घर के सदस्य की तरह रहा. बचपन में साफ बोलने में असमर्थ आमिर सिर्फ अम्मा ही बोल पाता था. इसलिए दामले परिवार ने उसका नाम अमन रख दिया. वह अपने घर का पता, माता-पिता का नाम कुछ भी नहीं बता पाता था.
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