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'आत्मनिर्भरता' में छिपा खाद्य तेल की कीमत का समाधान - atmanirbharata edible oil

ईंधन के साथ-साथ खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने आम आदमी का जीना मुश्किल कर दिया है. महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है. 1970 से ही हम खाद्य तेल का आयात कर रहे हैं. लेकिन आज तक हमने खाद्य तेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने को प्राथमिकता नहीं दी.

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खाद्य तेल (कॉन्सेप्ट फोटो)
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Published : May 30, 2021, 5:36 PM IST

हैदराबाद : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक साल पहले कोविड को भारत के भविष्य पर काली छाया की तरह बताया था. आज यह अवलोकन बिल्कुल सही साबित हो रहा है. एक तरफ जहां अलग-अलग क्षेत्रों में रोजगार के अवसर लगातार घट रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों की वजह से आम आदमी की जिंदगी कठिन होती चली जा रही है.

नमक से लेकर दाल, सब्जी और सभी आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ गए हैं. खाद्य तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं. ईंधन के साथ-साथ खाद्य तेल के दाम बढ़ने की वजह से महंगाई बढ़ने लगी है.

लाल चना और बंगाल चना की कीमत 16 से 20 प्रतिशत बढ़ चुकी है. सब्जियों के दाम 80 फीसदी तक बढ़ चुके हैं. खाद्य तेल खरीदना मुश्किल हो रहा है. कैबिनेट मंत्रियों के दावे कि आर्थिक विकास की रफ्तार पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है, पूरी तरह से सही नहीं मालूम पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों का अनुमान है कि विकास दर धीमी होगी और महंगाई भी बढ़ेगी.

वर्तमान महंगाई की मुख्य वजह है पेट्रोल और डीजल के दाम में बढ़ोतरी. करीब दो साल पहले केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस पर वसूला जाने वाला टैक्स 52 फीसदी था, अब यह 70 फीसदी तक पहुंच चुका है. पिछले पांच सालों में पेट्रोलियम ईंधन से होने वाली सरकार की कमाई 3.32 लाख करोड़ से बढ़कर 5.5 लाख करोड़ हो गई है. जनता के प्रति संवेदनहीन होने का ही नतीजा है- टैक्स में बेतहाशा वृद्धि.

केंद्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग का कहना है कि उसने खाद्य तेल की कीमतों पर निगरानी बरकरार रखा है. आत्म निर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभाग ने तेल उत्पादकों, स्टॉकिस्ट और मिल मालिकों से विस्तृत चर्चा भी की.

तेल की बढ़ती कीमतों से आम आदमी को कैसे राहत दी जा सकती है, यह जानने के लिए आपको किसी अनुसंधान की जरूरत नहीं है. निश्चित क्रॉपिंग पैटर्न और खाद्य तेल उत्पादन की कमी दो प्रमुख कारण हैं. विकल्पहीनता की स्थिति के कारण हमें 75 हजार करोड़ का खाद्य तेल आयात करना पड़ता है. खाद्य तेल की खपत दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. इसके बावजूद हम आयात पर निर्भर हैं. अभी हम 1.5 करोड़ टन खाद्य तेल आयात करते हैं. 2030 तक आयात की मात्रा बढ़कर 2.5 करोड़ टन हो जाएगी. पर, सरकार अभी भी आराम से कॉंफ्रेंस में व्यस्त है. एक अध्ययन में बताया गया है कि तेल का उत्पादन अभी मुख्य रूप से उन जमीनों पर की जा रही है, जो बारिश पर निर्भर है. उन भूमि को प्राथमिकता नहीं दी जा रही है, जो उपजाऊ है. जितनी जमीन पर अभी खाद्य तेल का उत्पादन किया जा रहा है, उनके चार फीसदी पर ही सिंचाई हो पाती है.

हम उन देशों से तेल आयात कर रहे हैं, जो न सिर्फ आबादी में हमसे कई गुना छोटे हैं, बल्कि उनका भूगोल भी हमसे बहुत छोटा है. 1970 से ही हम तेल आयात पर निर्भर रहे हैं. सरकार को अपनी नीति में व्यापक बदलाव करना होगा. प्राथमिकता बदलनी होगी. बार-बार नीति बदलने की नीति छोड़नी होगी.

ये भी पढ़ें - पेट्रोल को क्यों नहीं लाया जा रहा जीएसटी के दायरे में

हैदराबाद : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक साल पहले कोविड को भारत के भविष्य पर काली छाया की तरह बताया था. आज यह अवलोकन बिल्कुल सही साबित हो रहा है. एक तरफ जहां अलग-अलग क्षेत्रों में रोजगार के अवसर लगातार घट रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों की वजह से आम आदमी की जिंदगी कठिन होती चली जा रही है.

नमक से लेकर दाल, सब्जी और सभी आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ गए हैं. खाद्य तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं. ईंधन के साथ-साथ खाद्य तेल के दाम बढ़ने की वजह से महंगाई बढ़ने लगी है.

लाल चना और बंगाल चना की कीमत 16 से 20 प्रतिशत बढ़ चुकी है. सब्जियों के दाम 80 फीसदी तक बढ़ चुके हैं. खाद्य तेल खरीदना मुश्किल हो रहा है. कैबिनेट मंत्रियों के दावे कि आर्थिक विकास की रफ्तार पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है, पूरी तरह से सही नहीं मालूम पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों का अनुमान है कि विकास दर धीमी होगी और महंगाई भी बढ़ेगी.

वर्तमान महंगाई की मुख्य वजह है पेट्रोल और डीजल के दाम में बढ़ोतरी. करीब दो साल पहले केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस पर वसूला जाने वाला टैक्स 52 फीसदी था, अब यह 70 फीसदी तक पहुंच चुका है. पिछले पांच सालों में पेट्रोलियम ईंधन से होने वाली सरकार की कमाई 3.32 लाख करोड़ से बढ़कर 5.5 लाख करोड़ हो गई है. जनता के प्रति संवेदनहीन होने का ही नतीजा है- टैक्स में बेतहाशा वृद्धि.

केंद्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग का कहना है कि उसने खाद्य तेल की कीमतों पर निगरानी बरकरार रखा है. आत्म निर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभाग ने तेल उत्पादकों, स्टॉकिस्ट और मिल मालिकों से विस्तृत चर्चा भी की.

तेल की बढ़ती कीमतों से आम आदमी को कैसे राहत दी जा सकती है, यह जानने के लिए आपको किसी अनुसंधान की जरूरत नहीं है. निश्चित क्रॉपिंग पैटर्न और खाद्य तेल उत्पादन की कमी दो प्रमुख कारण हैं. विकल्पहीनता की स्थिति के कारण हमें 75 हजार करोड़ का खाद्य तेल आयात करना पड़ता है. खाद्य तेल की खपत दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. इसके बावजूद हम आयात पर निर्भर हैं. अभी हम 1.5 करोड़ टन खाद्य तेल आयात करते हैं. 2030 तक आयात की मात्रा बढ़कर 2.5 करोड़ टन हो जाएगी. पर, सरकार अभी भी आराम से कॉंफ्रेंस में व्यस्त है. एक अध्ययन में बताया गया है कि तेल का उत्पादन अभी मुख्य रूप से उन जमीनों पर की जा रही है, जो बारिश पर निर्भर है. उन भूमि को प्राथमिकता नहीं दी जा रही है, जो उपजाऊ है. जितनी जमीन पर अभी खाद्य तेल का उत्पादन किया जा रहा है, उनके चार फीसदी पर ही सिंचाई हो पाती है.

हम उन देशों से तेल आयात कर रहे हैं, जो न सिर्फ आबादी में हमसे कई गुना छोटे हैं, बल्कि उनका भूगोल भी हमसे बहुत छोटा है. 1970 से ही हम तेल आयात पर निर्भर रहे हैं. सरकार को अपनी नीति में व्यापक बदलाव करना होगा. प्राथमिकता बदलनी होगी. बार-बार नीति बदलने की नीति छोड़नी होगी.

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