नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने 'एमएसपी थी एमएसपी है एमएसपी रहेगी' के शीर्षक से एक विज्ञापन जारी किया है. इस विज्ञापन में उन्होंने दावा किया है कि सरकार ने इस सीजन में 29 मार्च तक 692 मिलियन टन (करोड़ क्विंटल) धान की खरीद की है, जो कि पिछले साल इसी अवधि में की गई सरकारी खरीद से 14% अधिक है.
हालांकि एमएसपी गारंटी कानून की मांग के साथ 125 दिन से जय किसान आंदोलन में शामिल योगेंद्र यादव ने कहा है कि यह केवल आधा सत्य है. यादव का कहना है कि यह सरकारी आंकड़ा तीन महत्वपूर्ण बातों को छुपाता है.
इस साल आवक जल्दी होने की वजह से खरीद भी जल्दी हुई है और अब भी सरकार अपने ही 738 मिलियन टन के लक्ष्य से पीछे चल रही है. अधिक खरीद का दावा सीजन पूरा होने पर ही किया जा सकता है.
राष्ट्रीय स्तर पर अधिक खरीद का यह आंकड़ा केवल बिहार, मध्यप्रदेश और पंजाब जैसे कुछ राज्यों में ज्यादा खरीद पर आधारित है. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बंगाल, छत्तीसगढ़ और हरियाणा जैसे देश के अनेक राज्यों में पिछले वर्ष से काफी कम खरीद हुई है.
धान की यह सरकारी खरीद देश में कुल धान के उत्पादन का सिर्फ 38% ही है अगर सरकार 738 मिलियन टन खरीद के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर भी लेती है, तब भी वह देश के कुल धान उत्पादन का 41% ही बनेगा. यानी कि किसी भी हाल में धान की फसल में देश के बहुसंख्यक किसानों को एमएसपी का फायदा नहीं मिल रहा.
सरकारी आंकड़े एक बार फिर यह साबित करते हैं कि देश के अधिकांश किसानों के लिए एमएसपी कागज पर ही थी, कागज पर ही है और सरकारी रवैया के अनुसार कागज पर ही रहेगी. इसलिए जय किसान आंदोलन पिछ्ले 2 हफ्ते से एमएसपी लूट कैलकुलेटर चला रहा है और मांग कर रहा है कि किसन को एमएसपी का कानूनी हक मिले, ताकि सिर्फ कुछ प्रतिशत किसान ही इस एमएसपी का लाभ ना उठाएं बल्कि देश के हर किसान को एमएसपी मिल सके.
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आज केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट में किये गए दावे पर आंकड़ों के साथ जय किसान आंदोलन ने दावा किया है कि सरकार के द्वारा धान के फसल की एमएसपी प्रोक्योरमेंट पर प्रचारित किये जा रहे आंकड़े वास्तविकता से परे हैं.
बीते दो हफ्तों से जय किसान आंदोलन द्वारा लगातर अलग अलग फसलों की खरीद और उनके एमएसपी के बीच के अंतर से संबंधित आंकड़े जारी किये जा रहे हैं. आंकड़ों को एकत्रित करने का स्रोत भी सरकारी वेबसाइट AGMARKNET है.