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उल्फा और सरकार के बीच समझौता : बड़ा सवाल- क्या परेश बरुआ के बातचीत में शामिल हुए बिना स्थायी शांति होगी? - परेश बरुआ

Peace treaty of ULFA : उल्फा (आई) के प्रमुख परेश बरुआ शांति समझौते पर हस्ताक्षर के समानांतर चर्चा का केंद्र बिंदु बन गए हैं. ऐसी अटकलें हैं कि उल्फा (एसडब्ल्यूए) का नेतृत्व कर रहे परेश बरुआ कब बातचीत की मेज पर आएंगे? क्या परेश बरुआ के बिना यह शांति समझौता पूरा हो गया है? Paresh Baruah, ULFA Govt complete Peace treaty.

Paresh Baruah
परेश बरुआ
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 30, 2023, 10:00 PM IST

गुवाहाटी: यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम ने 29 दिसंबर को नई दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक में केंद्र और असम सरकार के साथ शांति समझौता किया. शांति समझौते के बाद एक नाम चर्चा में है और वह है उल्फा (स्वतंत्र) के प्रमुख परेश बरुआ का, जो आज भी संप्रभु असम की अपनी मांग पर कायम हैं. उल्फा (आई) यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम का एक अलग गुट है, जिसका गठन 2012 में हुआ था, जब मुख्य संगठन के कई वरिष्ठ नेताओं ने आत्मसमर्पण किया और प्राथमिक मांग के बिना शांति वार्ता के लिए सहमति व्यक्त की.

शांति समझौते के बाद देश के गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा था कि यह असम के लिए सुनहरा दिन है. केंद्रीय गृह मंत्री और असम के सीएम डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद कहा कि यह शांति संधि शांति का संदेश लाएगी और यह राज्य के तेजी से विकास का अग्रदूत बनेगी. पीएम मोदी भी शांति समझौते की तारीफ करते हैं.

असम में कई लोग शांति समझौते को लेकर आशान्वित हैं और उनका मानना ​​है कि इससे असम के लोगों का सपना पूरा होगा. लेकिन साथ ही कुछ लोग उल्फा के तत्कालीन सी इन सी और अब उल्फा (आई) के प्रमुख परेश बरुआ को भी याद कर रहे हैं. क्या बातचीत की मेज पर आएंगे परेश बरुआ? वह शांति संधि पर हस्ताक्षर करेंगे? ऐसे कई सवाल हैं जो लोगों के मन में उठते रहे हैं.

असम के सीएम, कई शिक्षाविद्, बुद्धिजीवी, पूर्व उल्फा नेता और राजनेता परेश बरुआ का नाम लेते रहे हैं. क्योंकि वह अभी भी हथियारों के साथ सक्रिय हैं और संप्रभु असम की अपनी मांग पर कायम हैं. उल्लेखनीय है कि कई युवा यहां तक कि पत्रकार और इंजीनियर भी उल्फा (आई) में शामिल हुए हैं. 66 साल के परेश बरुआ अपनी प्रमुख मांग के बिना बातचीत की मेज पर बैठने को राजी नहीं हैं, ये तो सब जानते हैं.

उल्फा के महासचिव और उल्फा भारत सरकार शांति समझौते के अभिन्न अंग अनूप चेतिया ने मीडिया से कहा, 'जो कुछ हम दिल्ली से हासिल नहीं कर सके, उसे परेश बरुआ और उनकी टीम को हासिल करने दीजिए.'

शांति समझौते के बाद सीएम हिमंत ने कहा कि इस शांति संधि ने परेश बरुआ के लिए शांति वार्ता का रास्ता खोल दिया है. दो दिन पहले उन्होंने मीडिया के सामने कहा था कि, शांति समझौते को लेकर उनकी परेश बरुआ से कई बार बात हुई है.

असम के जाने-माने शिक्षाविद् डॉ. नागेन सैकिया ने शांति संधि को लेकर मीडिया के सामने अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि 'जहां केंद्र और राज्य सरकार ने उल्फा के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, वहीं हथियारों से लैस एक गुट शांति प्रक्रिया से दूर है. यह चिंता की बात है.' डॉ. सैकिया ने सरकार से शांति वार्ता के लिए परेश बरुआ का स्वागत करने का आग्रह किया.

परेश बरुआ के बड़े भाई बिमल बरुआ ने शुक्रवार को मीडिया के सामने कहा कि 'शांति संधि तब पूर्ण होगी, जब परेश बरुआ की आवाज सरकार सुनेगी. उनका दिल पत्थर का नहीं बना है, अगर सरकार प्रयास करे तो वह शांति वार्ता के लिए सहमत हो सकते हैं.'

पीसीजी के सदस्य हिरण्य सैकिया ने अपने बयान पर कहा कि, 'परेश बरुआ की अनुपस्थिति में इस संधि को पूर्ण नहीं कहा जा सकता. अगर परेश बरुआ शांति वार्ता के लिए आते हैं, तभी शांति प्रक्रिया को सही रास्ता मिलेगा.'

बता दें कि, परेश बरुआ को शांति वार्ता के लिए राजी करने के लिए 2011 में पीसीजी का गठन किया गया था. लेकिन उस वक्त कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि परेश बरुआ के बिना शांति प्रक्रिया संभव है. बाद में शांति प्रक्रिया एक अनिश्चित बिंदु पर रुक गई.

अब शांति संधि के बाद फिर वही सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या परेश बरुआ के बिना शांति प्रक्रिया पूरी हो गई है? क्या शांति वार्ता के लिए आएंगे परेश बरुआ, क्या संप्रभु असम की मांग को टालेंगे? या वह अपनी प्रमुख मांग के साथ आखिरी सांस तक लड़ेंगे?

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गुवाहाटी: यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम ने 29 दिसंबर को नई दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक में केंद्र और असम सरकार के साथ शांति समझौता किया. शांति समझौते के बाद एक नाम चर्चा में है और वह है उल्फा (स्वतंत्र) के प्रमुख परेश बरुआ का, जो आज भी संप्रभु असम की अपनी मांग पर कायम हैं. उल्फा (आई) यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम का एक अलग गुट है, जिसका गठन 2012 में हुआ था, जब मुख्य संगठन के कई वरिष्ठ नेताओं ने आत्मसमर्पण किया और प्राथमिक मांग के बिना शांति वार्ता के लिए सहमति व्यक्त की.

शांति समझौते के बाद देश के गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा था कि यह असम के लिए सुनहरा दिन है. केंद्रीय गृह मंत्री और असम के सीएम डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद कहा कि यह शांति संधि शांति का संदेश लाएगी और यह राज्य के तेजी से विकास का अग्रदूत बनेगी. पीएम मोदी भी शांति समझौते की तारीफ करते हैं.

असम में कई लोग शांति समझौते को लेकर आशान्वित हैं और उनका मानना ​​है कि इससे असम के लोगों का सपना पूरा होगा. लेकिन साथ ही कुछ लोग उल्फा के तत्कालीन सी इन सी और अब उल्फा (आई) के प्रमुख परेश बरुआ को भी याद कर रहे हैं. क्या बातचीत की मेज पर आएंगे परेश बरुआ? वह शांति संधि पर हस्ताक्षर करेंगे? ऐसे कई सवाल हैं जो लोगों के मन में उठते रहे हैं.

असम के सीएम, कई शिक्षाविद्, बुद्धिजीवी, पूर्व उल्फा नेता और राजनेता परेश बरुआ का नाम लेते रहे हैं. क्योंकि वह अभी भी हथियारों के साथ सक्रिय हैं और संप्रभु असम की अपनी मांग पर कायम हैं. उल्लेखनीय है कि कई युवा यहां तक कि पत्रकार और इंजीनियर भी उल्फा (आई) में शामिल हुए हैं. 66 साल के परेश बरुआ अपनी प्रमुख मांग के बिना बातचीत की मेज पर बैठने को राजी नहीं हैं, ये तो सब जानते हैं.

उल्फा के महासचिव और उल्फा भारत सरकार शांति समझौते के अभिन्न अंग अनूप चेतिया ने मीडिया से कहा, 'जो कुछ हम दिल्ली से हासिल नहीं कर सके, उसे परेश बरुआ और उनकी टीम को हासिल करने दीजिए.'

शांति समझौते के बाद सीएम हिमंत ने कहा कि इस शांति संधि ने परेश बरुआ के लिए शांति वार्ता का रास्ता खोल दिया है. दो दिन पहले उन्होंने मीडिया के सामने कहा था कि, शांति समझौते को लेकर उनकी परेश बरुआ से कई बार बात हुई है.

असम के जाने-माने शिक्षाविद् डॉ. नागेन सैकिया ने शांति संधि को लेकर मीडिया के सामने अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि 'जहां केंद्र और राज्य सरकार ने उल्फा के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, वहीं हथियारों से लैस एक गुट शांति प्रक्रिया से दूर है. यह चिंता की बात है.' डॉ. सैकिया ने सरकार से शांति वार्ता के लिए परेश बरुआ का स्वागत करने का आग्रह किया.

परेश बरुआ के बड़े भाई बिमल बरुआ ने शुक्रवार को मीडिया के सामने कहा कि 'शांति संधि तब पूर्ण होगी, जब परेश बरुआ की आवाज सरकार सुनेगी. उनका दिल पत्थर का नहीं बना है, अगर सरकार प्रयास करे तो वह शांति वार्ता के लिए सहमत हो सकते हैं.'

पीसीजी के सदस्य हिरण्य सैकिया ने अपने बयान पर कहा कि, 'परेश बरुआ की अनुपस्थिति में इस संधि को पूर्ण नहीं कहा जा सकता. अगर परेश बरुआ शांति वार्ता के लिए आते हैं, तभी शांति प्रक्रिया को सही रास्ता मिलेगा.'

बता दें कि, परेश बरुआ को शांति वार्ता के लिए राजी करने के लिए 2011 में पीसीजी का गठन किया गया था. लेकिन उस वक्त कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि परेश बरुआ के बिना शांति प्रक्रिया संभव है. बाद में शांति प्रक्रिया एक अनिश्चित बिंदु पर रुक गई.

अब शांति संधि के बाद फिर वही सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या परेश बरुआ के बिना शांति प्रक्रिया पूरी हो गई है? क्या शांति वार्ता के लिए आएंगे परेश बरुआ, क्या संप्रभु असम की मांग को टालेंगे? या वह अपनी प्रमुख मांग के साथ आखिरी सांस तक लड़ेंगे?

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