हैदराबाद: दक्षिण भारत के कई राज्यों में पुरुषों का पारंपरिक पोशाक धोती-शर्ट और गमछा है. यहां गरीब हो या अमीर सभी इस पोशाक को गर्व के साथ पहनते हैं. यही नहीं यहां के ज्यादातर लोग धार्मिक-पारिवारिक आयोजनों में भी इसी पोशाक को पहनते हैं. केरल, तमिलनाडु सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्री व कई दक्षिण भारतीय फिल्मी स्टार्स को पारंपरिक पोशाक धोती पहने आसानी से जाना जाता है.
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6 जनवरी को हर साल अंतरराष्ट्रीय धोती दिवस मनाया जाता है. धोती के प्रचलन को जिंदा रखने और इस सेक्टर में पारंपरिक रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए हर साल अंतरराष्ट्रीय धोती दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर दक्षिण भारत के कई शहरों के स्कूल-कॉलेज, सरकारी-गैर सरकारी कार्यालयों में ज्यादातर पुरुष धोती पहन कर अंतरराष्ट्रीय धोती दिवस मनाते हैं. धोती पहनने के लिए इस अवसर पर सरकारी स्तर पर, कई धोती उत्पादक व कारोबारी संगठन के अलावा कई संगठनों की ओर से लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है. बता दें कि बिहार-उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में जिस प्रकार आम पुरुष लुंगी पहनते हैं, उसी स्टाइल में दक्षिण भारत में पुरुष धोती पहनते हैं.
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क्या है धोती
धोती, दक्षिणी एशिया में पुरुषों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला बिना सिले कपड़े का एक लंबा टुकड़ा है. धोती बैगी, घुटने तक की लंबाई वाली पतलून की तरह दिखती है जब इसे कूल्हों और जांघों के चारों ओर लपेटा जाता है और एक छोर को पैरों के बीच रखा जाता है और कमरबंद में बांधा जाता है. दक्षिणी भारत में घोती को पांच बार तक लपेटा जाता है. इसे बांधने के लिए कमर में पांच गांठ लगाने की परंपरा है.
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धोती का इतिहास
धोती शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द 'धौता' (Sanskrit Word Dhauta) से हुई थी. भारत के अलग-अलग हिस्सों में क्षेत्रीय नामों से जाना जाता है, जिनमें केरल में मुंडू, महाराष्ट्र में धोतर आदि कहा जाता है. दक्षिण भारत में कई जगहों पर धोती को वेष्टि कहा जाता है. बता दें कि यह भारत में पुरुषों की ओर से पहना जाने वाला एक पारंपरिक परिधान है. इसकी उत्पत्ति प्राचीन भारत में देखी जा सकती है, जहां कुलीन और उच्च वर्ग इसे पहनते थे. धोती मुख्य रूप से खादी, रेशम और सूती कपड़े से बनी होती है.
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धोती समय के साथ सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के प्रतीक के रूप में विकसित हुई. यह धार्मिक अनुष्ठानों, विवाहों और अन्य औपचारिक अवसरों के लिए पारंपरिक पोशाक का एक आवश्यक टुकड़ा है. इसे भारत के कई हिस्सों में रोजमर्रा की पोशाक के रूप में भी पहना जाता था और अब यह आम जीवन का हिस्सा बन चुका है. भारत ही नहीं श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव सहित विभिन्न देशों की पारंपरिक पोशाक बन चुका है. आम पुरुष धोती-कुर्ता, धोती-शर्ट पहनते हैं. इसके अलावा कई जगहों पर कुर्ता-पैजामा पहने का प्रचलन है.
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कई देशों में है धोती का प्रचलन
भारत ही नहीं, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में धोती को औपचारिक पोशाक माना जाता है. यह परिधान मुख्य रूप से ऑफ व्हाइट या क्रीम रंग में उपलब्ध है. यह कपड़ा सूती या रेशम दोनों से बना हो सकता है. यह आम तौर पर अधिकांश दक्षिणी भारत में पार या बार्डर साथ बनाया जाता है. यह इसे अधिक भव्य और परिष्कृत स्वरूप प्रदान करता है. आमतौर पर तौर पर घोती 5.60 मीटर लंबा होता है. धोती ब्रांड, क्वालिटी, कलर और साइज के कारण कई कीमतों में उपलब्ध है. 300 रुपये से 10 हजार प्लस के रेंज में धोती उपलब्ध है. सूती व खादी धोती अपनी मुलायम बनावट के कारण गर्मियों की आदर्श पोशाक है. कई जगह धोती पर पहने के लिए कपड़े का बेल्ट पहनने का प्रचलन है.
धोती का उपयोग
- धोती लगभग सभी मौसमों के लिए उपयुक्त हैं.
- सामान्य दिनों में सूती और खादी धोती पहने का प्रचलन है.
- इन दिनें धोती एक फैशनेबल डिजाइनर धोती का प्रचलन बढ़ गया है.
- धोती व्यावसायिक बैठकों और सम्मेलनों जैसे औपचारिक अवसरों पर भी पहनी जाती है
- धोती भारत के विभिन्न हिस्सों में, विशेषकर वृद्ध पुरुषों की ओर से रोजमर्रा के परिधान के रूप में पहनी जाती है.
- रेशमी धोती का उपयोग मुख्य रूप से पारंपरिक संस्कारों जैसे तिलक, विवाह, मुंडन, पूजा-पाठ अन्य विशेष अवसरों पर किया जाता है.
विरासत और परंपरा का प्रतीक
धोती सिर्फ कपड़े का एक टुकड़ा नहीं है. यह हमारी विरासत और परंपरा का प्रतीक है. इसका एक लंबा इतिहास और सांस्कृतिक महत्व भी है. हाल के कुछ वर्षों में धोती में कई बदलाव आए हैं. धोती एक आरामदायक और स्टाइलिश परिधान है. धार्मिक समारोहों के लिए या रोजमर्रा के पहनने के लिए पहना जाता है.
अमूमन कई राज्यों में लुंगी व धोती पहन कर काम करने में लोग अपने आप को असहज मानते हैं. लेकिन दक्षिण भारत घूमने व दक्षिण भारतीय फिल्मों को देखने के बाद ये धारणा बदल जाती है. साउथ की कई फिल्मों में स्टार्स ने धोती पहन कर कंफर्ट के साथ अभिनय को अंजाम दिया है.