हैदराबाद : हर साल 9 अगस्त को विश्व की स्वदेशी जनसंख्या का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. इसे अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी के रूप में भी जाना जाता है. दुनिया के मूल निवासियों के बारे में जागरूकता पैदा करने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए यह दिन (International Day of Worlds Indigenous People 2023) मनाया जाता है. विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2023 का थीम : ''स्वदेशी युवा आत्मनिर्णय के लिए परिवर्तन के एजेंट के रूप में'' (Indigenous Youth As Agents of Change for Self-Determination) रखा गया है.
हर साल इस दिवस पर स्वदेशी युवा व इनके विकास में लगे सराकारी-गैर सरकारी संस्थाएं अपने लोगों के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हैं. स्वदेशी युवा अक्सर सामाजिक परिवर्तन के आंदोलनों में सबसे आगे होते हैं. वे जागरूकता बढ़ाने के लिए अपनी आवाज को बुलंद करते हैं. उनके समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियां से निपटने के लिए अपने कौशल और प्रतिभा का उपयोग अपने समाज के लोगों के लिए बेहतरी के लिए करते हैं.
इतिहास
21वीं सदी की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र संघ ने पाया कि दुनिया भर के आदिवासी समूह कई परेशानियों के शिकार हैं. इनमें बेरोजगारी, बाल श्रम और कई अन्य समस्याएं। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र को इसके लिए एक संगठन बनाने की आवश्यकता महसूस हुई. इसके बाद UNWGIP (स्वदेशी जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह) का गठन हुआ. सबसे पहले अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया. इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 1994 में निर्णय लिया कि हर साल 9 अगस्त को यह दिवस के रूप में मनाया जाएगा. यह तारीख 1982 में संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक के दिन को चिह्नित किया गया था. स्वदेशी आबादी के मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के लिए उप-आयोग बनाने का निर्णय लिया गया.
मूलनिवासी कौन हैं
मूलनिवासी किसी स्थान विशेष पर रहने वाले मूल निवासी हैं अर्थात आदिवासी लोग हैं, जो उस क्षेत्र के सबसे पहले ज्ञात निवासी हैं. वे इस क्षेत्र से जुड़ी परंपराओं और अन्य सांस्कृतिक पहलुओं को बनाए रखते हैं.
हर 2 सप्ताह में एक देशी भाषा हो जाती है गायब
दुनिया के हर महाद्वीप में स्वदेशी लोग रहते हैं. मूल निवासियों को अक्सर परेशान किया जाता है और उल्लंघन के कारण, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने उनके अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए कुछ उपाय किए हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर 2 सप्ताह में एक देशी भाषा गायब हो जाती है. इससे पता चलता है कि आदिवासी लोगों को कितने जोखिम का सामना करना पड़ता है. अत: अंतर्राष्ट्रीय जनजातीय दिवस उनके महत्व और पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण में उनके योगदान को पहचानने के लिए मनाया जाता है.
संविधान की 'अनुसूची 5' में हैं 'अनुसूचित जनजाति'
भारत में जनजातियां - भारत के संविधान ने संविधान की 'अनुसूची 5' के तहत भारत में आदिवासी समुदायों को मान्यता दी है. इसलिए संविधान की ओर से मान्यता प्राप्त जनजातियों को 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में जाना जाता है. भारत में लगभग 645 विशिष्ट जनजातियां हैं.
भारत में आबादी
भारत के विभिन्न राज्यों में जनजातीय जनसंख्या- झारखंड- 26.2%, पश्चिम बंगाल- 5.49%, बिहार- 0.99%, सिक्किम- 33.08%, मेघालय-86.0%, त्रिपुरा- 31.08%, मिजोरम- 94.04%, मणिपुर- 35.01%, नागालैंड- 86.05%, असम- 12.04%, अरुणाचल प्रदेश- 68.08% और उत्तर प्रदेश- 0.07%.
विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2023: मुख्य तथ्य
- दुनिया में 476 मिलियन से अधिक स्वदेशी लोग हैं, जो वैश्विक आबादी का 5% प्रतिनिधित्व करते हैं.
- स्वदेशी लोग दुनिया के हर क्षेत्र में रहते हैं, लेकिन वे अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में केंद्रित हैं.
- स्वदेशी लोगों को अक्सर हाशिए पर रखा जाता है और उनके साथ भेदभाव किया जाता है. उन्हें गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी सहित कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है
- स्वदेशी लोगों के पास एक समृद्ध और विविध संस्कृति है, जिसे अक्सर वैश्वीकरण और विकास से खतरा होता है.
- विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है.
- स्वदेशी लोगों और उनकी संस्कृतियों और अधिकारों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना.
अवकाश की मांग
आदिवासी समुदाय के लोगों और उनका समर्थन करने वाले लोगों ने राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की लगातार मांग कर रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस राष्ट्रीय अवकाश के रूप में हो. आदिवासियों के महत्व और महत्ता को देखते हुए कई आदिवासी नेता इस संबंध में लगातार मांग कर रहे हैं.
जनजातीय लोगों के जीवन पर बाहरी लोगों का प्रभाव
जनजातीय तौर-तरीकों को अपनाने में अनिच्छुक नए लोगों की आमद ने जनजातीय लोगों के जीवन पर व्यापक प्रभाव डाला है. उनके पारंपरिक रोजगार, आवास, जल-जंगल-जमीन से उन्हों किसी न किसी क कारण से बेदखल होना पड़ता है. कई जगहों पर उन्हें सामूहिक विस्थापन का दर्द झेलना पड़ता है.