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बड़ा सवाल: अनिल खाची से किसको था बैर, जयराम सरकार ने समय से पहले क्यों हटाए मुख्य सचिव

जयराम सरकार ने 1986 बैच के आईएएस अधिकारी अनिल खाची को राज्य चुनाव आयुक्त (State Election Commissioner Appointed) नियुक्त किया है. वे पहली जनवरी 2020 को हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव बने थे. डेढ़ साल से ज्यादा अनिल खाची मुख्य सचिव पद पर रहे. अनिल खाची को बदलने का मुद्दा विधानसभा में भी गरमाया है. विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे लेकर सदन में हंगामा और वॉकआउट भी किया.

अनिल खाची
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Published : Aug 7, 2021, 5:40 PM IST

शिमला : वर्ष 2020 का पहला महीना और पहली तारीख...देश के टॉप ब्यूरोक्रेट्स में शुमार अनिल खाची ( Anil Khachi) हिमाचल सरकार के नए मुख्य सचिव बने. सीनियोरिटी को ध्यान में रखते हुए जयराम सरकार (Jairam Government) ने अनिल खाची को अफसरशाही की हॉट सीट की जिम्मेदारी दी. अनिल खाची ने केंद्र में आधार नामांकन प्रणाली के डिजाइन और उसे लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे लंबे समय तक यूआईडीएआई के डिप्टी डॉयरेक्टर जनरल रहे. फिर केंद्र में ही वे श्रम व रोजगार मंत्रालय (Ministry Of Labor And Employment) में संयुक्त सचिव रहे.

ईपीएफ (EPF) संशोधन पर भी उनका सराहनीय कार्य रहा. भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) के चीफ विजिलेंस ऑफिसर (Chief Vigilance Officer) से लेकर अन्य कई अहम पदों पर काम किया है. वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति (Central Deputation) से वापिस आए थे और हिमाचल के सीएस बने थे. केंद्र सरकार (Central Government) में कई अहम पदों पर काम कर चुके अनिल खाची की प्रशासनिक क्षमता का पीएमओ (Pmo) भी कायल रहा है. मूल रूप से शिमला जिला के रहने वाले अनिल खाची जब राज्य सरकार के मुख्य सचिव (Chief Secretary) बने तो इस फैसले के लिए सभी ने जयराम सरकार की तारीफ की. वो इसलिए कि हिमाचल से ही संबंध रखने वाले काबिल अफसर को सीनियोरिटी का ध्यान रखते हुए मुख्य सचिव बनाया गया था, लेकिन डेढ़ साल से कुछ अधिक समय में ही अनिल खाची को इस पद से हटा दिया गया.

आखिर ऐसा क्या हुआ कि ईमानदार और कार्यकुशल ब्यूरोक्रेट को मुख्य सचिव (Chief Secretary) बनाकर सबकी वाहवाही लूटने वाले जयराम सरकार ने इतनी जल्दी उन्हें विदा कर दिया. सत्ता और नौकरशाही के गलियारों में ये सवाल गूंज रहा है कि क्या कुछ मंत्रियों और विधायकों की नाराजगी अनिल खाची पर भारी पड़ी? क्या अनिल खाची (Anil Khachi) सरकार के कुछ ऐसे कामों के बीच रोड़ा बनकर खड़े थे, जिन्हें आगे बढ़ाने में उनकी अंतरात्मा राजी नहीं थी? विधानसभा के मानसून सत्र (Monsoon Session of Himachal Assembly) के दौरान हुए इस अप्रत्याशित घटनाक्रम को लेकर विपक्ष ने सदन में हंगामा किया.

नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री (Leader of Opposition Mukesh Agnihotri) ने सवाल उठाया कि हिमाचल के अफसर को इस पद से क्यों हटाया? यहां तक कि विपक्ष ने मुख्य सचिव को हटाने के विरोध में सदन से वॉकआउट कर दिया. तेजतर्रार माकपा नेता और विधायक राकेश सिंघा (MLA Rakesh Singha) ने भी सरकार के इस कदम का विरोध किया कि एक अफसर को अपना कार्यकाल पूरा करने का मौका मिलना चाहिए. ये ठीक है कि अनिल खाची को हटाए जाने से बवाल हुआ, परंतु ये भी सत्य है कि सरकार ने उनको स्टेट इलेक्शन कमिश्नर (State Election Commissioner) का पद सौंपकर डैमेज कंट्रोल कर लिया.

यदि अनिल खाची अड़ जाते तो सरकार को उन्हें कोई पद देना पड़ता और वे साइड लाइन होकर बाकी का सेवाकाल काटते, जैसे पूर्व सीएस वीसी फारका (Former CS VC Farka) ने काटा. हालांकि अनिल खाची ने स्टेट इलेक्शन कमिश्नर (State Election Commissioner) का पद स्वीकार कर जयराम सरकार को थोड़ी राहत भी दी. यदि वे सरकार की हनक की बलि चढ़ जाते तो विपक्ष और जनता जयराम सरकार (Jairam Government) को चैन न लेने देती, परंतु उन्होंने राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद स्वीकार कर लिया. यहां हम अनिल खाची के मुख्य सचिव बनने और इस पद से हटने के कारणों की पड़ताल करेंगे.

जनवरी 2020 में मुख्य सचिव बनाए गए

अनिल खाची पहली जनवरी 2020 को मुख्य सचिव बनाए गए. वे टू दि पॉइंट काम करने में भरोसा रखते हैं. जयराम सरकार का ब्यूरोक्रेसी के इस टॉप नौकरशाह से हनीमून पीरियड अच्छा बीता. बाद में कैबिनेट की बैठकों में मंत्रियों का मुख्य सचिव से टकराव होने लगा. यहां तक कि एक बैठक में तो मुख्य सचिव और सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर (Minister Mahendra Singh Thakur) के बीच तीखा विवाद हो गया. वो विवाद कैबिनेट मीटिंग (Cabinet Meeting) से छनकर बाहर भी आ गया और मीडिया की सुर्खियां बन गया. फिर विधायक प्राथमिकता बैठकों में कम से कम आठ एमएलए ऐसे थे, जिन्हें मुख्य सचिव से बहुत नाराजगी थी.

ये नाराजगी विधायक प्राथमिकता विकास कार्यों और विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से जुड़े निर्माण कार्यों को लेकर थी. विधायकों की शिकायत थी कि मुख्य सचिव उनकी बात नहीं सुनते. यहां तक कि विकास कार्यों को लेकर फॉलोअप भी नहीं करते. विधायकों का कहना था कि सीएस अड़ियल भी हैं और उनकी बात इगनोर भी करते हैं. इसी बीच, कई बार ऐसा हुआ कि सरकार ने अफसरों के तबादले किए, लेकिन कुछ अफसर इस कदर नाराज होने लगे कि वे कार्यभार संभालने में आनाकानी करने लगे. आईएएस ओंकार शर्मा (IAS Omkar Sharma) का मामला इसका उदाहरण है.

उधर, हिमाचल में लंबे समय से मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner) का पद खाली था. सीएस के खिलाफ विधायकों व मंत्रियों की बढ़ती नाराजगी देखते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Cm Jairam Thakur) व उनके करीबी सलाहकारों को एक रास्ता सूझा. जयराम सरकार (Cm Jairam Thakur) ने अनिल खाची को मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पदभार सौंपने का फैसला लिया. इससे सरकार को दो लाभ हुए. अनिल खाची सीएस के पद से हट गए और वे सरकार का हिस्सा भी नहीं रहे, क्योंकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त संवैधानिक पद (Constitutional Post) है.

यदि अनिल खाची अड़ जाते और रिजाइन नहीं करते तो जयराम सरकार को उन्हें एडजस्ट करना पड़ता. उनके बराबर की पोस्ट रखनी पड़ती, जैसे पूर्व मुख्य सचिव वीसी फारका के लिए किया गया था. फारका को दिसंबर 2017 में जयराम सरकार ने सत्ता में आने के बाद सीएस की पोस्ट से हटाकर राज्य सरकार का प्रिंसिपल एडवाइजर (रिड्रेसल ऑफ पब्लिक ग्रिविएंसिज) लगाया गया था. यदि खाची रिजाइन नहीं करते तो उन्हें बाकी का कार्यकाल साइड लाइन होकर ऐसे ही किसी पद पर काटना पड़ता.

अब अनिल खाची मुख्य निर्वाचन आयुक्त हो गए हैं. वे इस पद पर पांच साल रहेंगे. इस संवैधानिक पद पर एक न्यायाधीश जैसी सुविधाएं हैं. यहां अनिल खाची का पक्ष थोड़ा कमजोर पड़ जाता है. यदि खाची नए पद को स्वीकार न करते तो जरूर उनका कद और ऊंचा हो जाता.

अनिल खाची को हटाए जाने की टाइमलाइन

विधानसभा के मानसून सत्र से पहले विधायक दल की बैठक हुई. इसमें विधायकों ने सीएस अनिल खाची के अड़ियल व्यवहार को लेकर अपना रोष व्यक्त किया. दो अगस्त को सत्र की शुरुआत हुई. पटकथा लिखी जा चुकी थी और पांच अगस्त को सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी. उससे पहले चार अगस्त देर शाम हलचल मचना शुरू हो गई थी. तय हो गया था कि अनिल खाची को हटाकर रामसुभग सिंह नए सीएस(Ramsubhag Singh New Cs) बनाए जाएंगे. खाची को इलेक्शन कमिश्नर बनाया जाएगा. पांच अगस्त को अप्रत्याशित तौर पर ये फैसला हो गया.

विपक्ष ने सदन में हंगामा किया तो सीएम जयराम ठाकुर ने उल्टा कांग्रेस पर हमला किया. सीएम जयराम ने कहा कि कांग्रेस ऐसे उपदेश देती अच्छी नहीं लगती. कांग्रेस के समय में बैच में जूनियर अफसर को सीएस बनाया गया था. सीएम ने कहा कि किस अफसर को मुख्य सचिव बनाना है अथवा कौन सा जिम्मा सौंपना है, ये सरकार का विशेषाधिकार है. भाजपा सरकार (BJP government) ने सीनियोरिटी से कोई छेड़छाड़ नहीं की है. अनिल खाची को सम्मानजनक तरीके से नई जिम्मेदारी दी गई है, जिसे उन्होंने स्वीकार किया है.

हिमाचल की राजनीति और सत्ता के कामकाज को गहराई से परखने वाले वरिष्ठ मीडियाकर्मी धनंजय शर्मा के अनुसार मुख्य सचिव और एक कैबिनेट मंत्री के बीच तीखे विवाद और विधायकों की शिकायतों के बाद मुख्य सचिव को चतुराई से साइड लाइन किया गया है. हालांकि अनिल खाची के मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पदभार संभालने के लिए राजी होने के बाद विपक्ष के पास विरोध का खास कारण नहीं बचा है. अलबत्ता ये जरूर है कि अनिल खाची काम करने के अपने ही तरीके के कारण कैबिनेट के कुछ मंत्रियों और विधायकों की आंख की किरकिरी बने हुए थे.

बेशक इस विवाद पर कांग्रेस ने सरकार पर हमलावर होने की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस को ये भी याद है कि पिछली सरकार के समय सीनियोरिटी को सुपरसीड कर वीरभद्र सिंह सरकार (Virbhadra Singh Government) ने वीसी फारका को मुख्य सचिव बनाया था. तब वीरभद्र सिंह सरकार के फैसले से नाराज वीसी फारका से सीनियर आईएएस अफसर दीपक सानन, विनीत चौधरी और उपमा चौधरी अवकाश पर चले गए थे.

वीसी फारका पूरे पांच साल सीएस रहे और फिर जयराम सरकार के सत्ता में आने के बाद उन्हें हटाकर विनीत चौधरी को मुख्य सचिव बनाया गया. यहां गौरतलब है कि जयराम सरकार के अब तक के कार्यकाल में विनीत चौधरी, श्रीकांत बाल्दी, बीके अग्रवाल, अनिल खाची और अब रामसुभग सिंह मुख्य सचिव बने हैं. इससे पहले जयराम सरकार के सत्ता संभालने के समय वीसी फारका सीएस थे, जिन्हें बाद में भाजपा सरकार ने हटा दिया था.

ये भी पढ़ें: हिमाचल के 42वें मुख्य सचिव बने राम सुभाग सिंह, अनिल खाची को बनाया गया राज्य चुनाव आयुक्त

शिमला : वर्ष 2020 का पहला महीना और पहली तारीख...देश के टॉप ब्यूरोक्रेट्स में शुमार अनिल खाची ( Anil Khachi) हिमाचल सरकार के नए मुख्य सचिव बने. सीनियोरिटी को ध्यान में रखते हुए जयराम सरकार (Jairam Government) ने अनिल खाची को अफसरशाही की हॉट सीट की जिम्मेदारी दी. अनिल खाची ने केंद्र में आधार नामांकन प्रणाली के डिजाइन और उसे लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे लंबे समय तक यूआईडीएआई के डिप्टी डॉयरेक्टर जनरल रहे. फिर केंद्र में ही वे श्रम व रोजगार मंत्रालय (Ministry Of Labor And Employment) में संयुक्त सचिव रहे.

ईपीएफ (EPF) संशोधन पर भी उनका सराहनीय कार्य रहा. भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) के चीफ विजिलेंस ऑफिसर (Chief Vigilance Officer) से लेकर अन्य कई अहम पदों पर काम किया है. वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति (Central Deputation) से वापिस आए थे और हिमाचल के सीएस बने थे. केंद्र सरकार (Central Government) में कई अहम पदों पर काम कर चुके अनिल खाची की प्रशासनिक क्षमता का पीएमओ (Pmo) भी कायल रहा है. मूल रूप से शिमला जिला के रहने वाले अनिल खाची जब राज्य सरकार के मुख्य सचिव (Chief Secretary) बने तो इस फैसले के लिए सभी ने जयराम सरकार की तारीफ की. वो इसलिए कि हिमाचल से ही संबंध रखने वाले काबिल अफसर को सीनियोरिटी का ध्यान रखते हुए मुख्य सचिव बनाया गया था, लेकिन डेढ़ साल से कुछ अधिक समय में ही अनिल खाची को इस पद से हटा दिया गया.

आखिर ऐसा क्या हुआ कि ईमानदार और कार्यकुशल ब्यूरोक्रेट को मुख्य सचिव (Chief Secretary) बनाकर सबकी वाहवाही लूटने वाले जयराम सरकार ने इतनी जल्दी उन्हें विदा कर दिया. सत्ता और नौकरशाही के गलियारों में ये सवाल गूंज रहा है कि क्या कुछ मंत्रियों और विधायकों की नाराजगी अनिल खाची पर भारी पड़ी? क्या अनिल खाची (Anil Khachi) सरकार के कुछ ऐसे कामों के बीच रोड़ा बनकर खड़े थे, जिन्हें आगे बढ़ाने में उनकी अंतरात्मा राजी नहीं थी? विधानसभा के मानसून सत्र (Monsoon Session of Himachal Assembly) के दौरान हुए इस अप्रत्याशित घटनाक्रम को लेकर विपक्ष ने सदन में हंगामा किया.

नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री (Leader of Opposition Mukesh Agnihotri) ने सवाल उठाया कि हिमाचल के अफसर को इस पद से क्यों हटाया? यहां तक कि विपक्ष ने मुख्य सचिव को हटाने के विरोध में सदन से वॉकआउट कर दिया. तेजतर्रार माकपा नेता और विधायक राकेश सिंघा (MLA Rakesh Singha) ने भी सरकार के इस कदम का विरोध किया कि एक अफसर को अपना कार्यकाल पूरा करने का मौका मिलना चाहिए. ये ठीक है कि अनिल खाची को हटाए जाने से बवाल हुआ, परंतु ये भी सत्य है कि सरकार ने उनको स्टेट इलेक्शन कमिश्नर (State Election Commissioner) का पद सौंपकर डैमेज कंट्रोल कर लिया.

यदि अनिल खाची अड़ जाते तो सरकार को उन्हें कोई पद देना पड़ता और वे साइड लाइन होकर बाकी का सेवाकाल काटते, जैसे पूर्व सीएस वीसी फारका (Former CS VC Farka) ने काटा. हालांकि अनिल खाची ने स्टेट इलेक्शन कमिश्नर (State Election Commissioner) का पद स्वीकार कर जयराम सरकार को थोड़ी राहत भी दी. यदि वे सरकार की हनक की बलि चढ़ जाते तो विपक्ष और जनता जयराम सरकार (Jairam Government) को चैन न लेने देती, परंतु उन्होंने राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद स्वीकार कर लिया. यहां हम अनिल खाची के मुख्य सचिव बनने और इस पद से हटने के कारणों की पड़ताल करेंगे.

जनवरी 2020 में मुख्य सचिव बनाए गए

अनिल खाची पहली जनवरी 2020 को मुख्य सचिव बनाए गए. वे टू दि पॉइंट काम करने में भरोसा रखते हैं. जयराम सरकार का ब्यूरोक्रेसी के इस टॉप नौकरशाह से हनीमून पीरियड अच्छा बीता. बाद में कैबिनेट की बैठकों में मंत्रियों का मुख्य सचिव से टकराव होने लगा. यहां तक कि एक बैठक में तो मुख्य सचिव और सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर (Minister Mahendra Singh Thakur) के बीच तीखा विवाद हो गया. वो विवाद कैबिनेट मीटिंग (Cabinet Meeting) से छनकर बाहर भी आ गया और मीडिया की सुर्खियां बन गया. फिर विधायक प्राथमिकता बैठकों में कम से कम आठ एमएलए ऐसे थे, जिन्हें मुख्य सचिव से बहुत नाराजगी थी.

ये नाराजगी विधायक प्राथमिकता विकास कार्यों और विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से जुड़े निर्माण कार्यों को लेकर थी. विधायकों की शिकायत थी कि मुख्य सचिव उनकी बात नहीं सुनते. यहां तक कि विकास कार्यों को लेकर फॉलोअप भी नहीं करते. विधायकों का कहना था कि सीएस अड़ियल भी हैं और उनकी बात इगनोर भी करते हैं. इसी बीच, कई बार ऐसा हुआ कि सरकार ने अफसरों के तबादले किए, लेकिन कुछ अफसर इस कदर नाराज होने लगे कि वे कार्यभार संभालने में आनाकानी करने लगे. आईएएस ओंकार शर्मा (IAS Omkar Sharma) का मामला इसका उदाहरण है.

उधर, हिमाचल में लंबे समय से मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner) का पद खाली था. सीएस के खिलाफ विधायकों व मंत्रियों की बढ़ती नाराजगी देखते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Cm Jairam Thakur) व उनके करीबी सलाहकारों को एक रास्ता सूझा. जयराम सरकार (Cm Jairam Thakur) ने अनिल खाची को मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पदभार सौंपने का फैसला लिया. इससे सरकार को दो लाभ हुए. अनिल खाची सीएस के पद से हट गए और वे सरकार का हिस्सा भी नहीं रहे, क्योंकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त संवैधानिक पद (Constitutional Post) है.

यदि अनिल खाची अड़ जाते और रिजाइन नहीं करते तो जयराम सरकार को उन्हें एडजस्ट करना पड़ता. उनके बराबर की पोस्ट रखनी पड़ती, जैसे पूर्व मुख्य सचिव वीसी फारका के लिए किया गया था. फारका को दिसंबर 2017 में जयराम सरकार ने सत्ता में आने के बाद सीएस की पोस्ट से हटाकर राज्य सरकार का प्रिंसिपल एडवाइजर (रिड्रेसल ऑफ पब्लिक ग्रिविएंसिज) लगाया गया था. यदि खाची रिजाइन नहीं करते तो उन्हें बाकी का कार्यकाल साइड लाइन होकर ऐसे ही किसी पद पर काटना पड़ता.

अब अनिल खाची मुख्य निर्वाचन आयुक्त हो गए हैं. वे इस पद पर पांच साल रहेंगे. इस संवैधानिक पद पर एक न्यायाधीश जैसी सुविधाएं हैं. यहां अनिल खाची का पक्ष थोड़ा कमजोर पड़ जाता है. यदि खाची नए पद को स्वीकार न करते तो जरूर उनका कद और ऊंचा हो जाता.

अनिल खाची को हटाए जाने की टाइमलाइन

विधानसभा के मानसून सत्र से पहले विधायक दल की बैठक हुई. इसमें विधायकों ने सीएस अनिल खाची के अड़ियल व्यवहार को लेकर अपना रोष व्यक्त किया. दो अगस्त को सत्र की शुरुआत हुई. पटकथा लिखी जा चुकी थी और पांच अगस्त को सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी. उससे पहले चार अगस्त देर शाम हलचल मचना शुरू हो गई थी. तय हो गया था कि अनिल खाची को हटाकर रामसुभग सिंह नए सीएस(Ramsubhag Singh New Cs) बनाए जाएंगे. खाची को इलेक्शन कमिश्नर बनाया जाएगा. पांच अगस्त को अप्रत्याशित तौर पर ये फैसला हो गया.

विपक्ष ने सदन में हंगामा किया तो सीएम जयराम ठाकुर ने उल्टा कांग्रेस पर हमला किया. सीएम जयराम ने कहा कि कांग्रेस ऐसे उपदेश देती अच्छी नहीं लगती. कांग्रेस के समय में बैच में जूनियर अफसर को सीएस बनाया गया था. सीएम ने कहा कि किस अफसर को मुख्य सचिव बनाना है अथवा कौन सा जिम्मा सौंपना है, ये सरकार का विशेषाधिकार है. भाजपा सरकार (BJP government) ने सीनियोरिटी से कोई छेड़छाड़ नहीं की है. अनिल खाची को सम्मानजनक तरीके से नई जिम्मेदारी दी गई है, जिसे उन्होंने स्वीकार किया है.

हिमाचल की राजनीति और सत्ता के कामकाज को गहराई से परखने वाले वरिष्ठ मीडियाकर्मी धनंजय शर्मा के अनुसार मुख्य सचिव और एक कैबिनेट मंत्री के बीच तीखे विवाद और विधायकों की शिकायतों के बाद मुख्य सचिव को चतुराई से साइड लाइन किया गया है. हालांकि अनिल खाची के मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पदभार संभालने के लिए राजी होने के बाद विपक्ष के पास विरोध का खास कारण नहीं बचा है. अलबत्ता ये जरूर है कि अनिल खाची काम करने के अपने ही तरीके के कारण कैबिनेट के कुछ मंत्रियों और विधायकों की आंख की किरकिरी बने हुए थे.

बेशक इस विवाद पर कांग्रेस ने सरकार पर हमलावर होने की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस को ये भी याद है कि पिछली सरकार के समय सीनियोरिटी को सुपरसीड कर वीरभद्र सिंह सरकार (Virbhadra Singh Government) ने वीसी फारका को मुख्य सचिव बनाया था. तब वीरभद्र सिंह सरकार के फैसले से नाराज वीसी फारका से सीनियर आईएएस अफसर दीपक सानन, विनीत चौधरी और उपमा चौधरी अवकाश पर चले गए थे.

वीसी फारका पूरे पांच साल सीएस रहे और फिर जयराम सरकार के सत्ता में आने के बाद उन्हें हटाकर विनीत चौधरी को मुख्य सचिव बनाया गया. यहां गौरतलब है कि जयराम सरकार के अब तक के कार्यकाल में विनीत चौधरी, श्रीकांत बाल्दी, बीके अग्रवाल, अनिल खाची और अब रामसुभग सिंह मुख्य सचिव बने हैं. इससे पहले जयराम सरकार के सत्ता संभालने के समय वीसी फारका सीएस थे, जिन्हें बाद में भाजपा सरकार ने हटा दिया था.

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