नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज आईएनएस विराट के विध्वंस पर रोक लगाने की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक निजी पार्टी ने इसे पूरी प्रक्रिया के साथ खरीदा है और इसका 40 फीसदी हिस्सा पहले ही नष्ट हो गया है.
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की अगुवाई वाली पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें याचिकाकर्ता ने आईएनएस विराट के विध्वंस पर रोक लगाने और इसे एक युद्धपोत संग्रहालय में बदलने के लिए कहा था.
वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने आज अदालत को सूचित किया कि याचिकाकर्ता इसे पार्क में परिवर्तित करना चाहता है. उनका कहना है कि सरकार को लागत का 40-60% भुगतान करना होगा और रक्षा मंत्रालय, गोवा के मंत्री, गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आदि ने इसके लिए मना कर दिया. उन्होंने कहा कि विध्वंस पर अदालत के स्टे के कारण, इसके रखरखाव पर प्रति दिन 5 लाख और प्रति माह 1.6 करोड़ खर्च हो रहे हैं. धवन ने एक रिपोर्ट पढ़ी जिसमें दावा किया गया था कि आईएनएस विराट अब एक 'मृत संरचना' है.
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यह बताया जाने पर कि इसका 40 फीसदी नष्ट हो चुका है, याचिकाकर्ता ने कहा कि विशेषज्ञों को विदेशों से बुलाया जा सकता है और इसकी मरम्मत की जा सकती है. मुख्य न्यायाधीश इससे भी आश्वस्त नहीं रहे और कहा कि हालांकि अदालत को याचिकाकर्ता की युद्धपोत को लेकर भावना का सम्मान है, लेकिन युद्धपोत के मरम्मत का अब कोई उपयोग नहीं है. इसका 40 फीसदी नष्ट हो चुका है, यह निजी संपत्ति है, यह अब युद्धपोत नहीं है. सीजेआई ने याचिकाकर्ता को कहा आप बहुत देर से आए हैं.
अदालत ने याचिकाकर्ता को आईएनएस विराट पर एक रिपोर्ट को पढ़ने को कहा और मामले को 2 सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.