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Mulayam Singh Yadav : पद व कद का भेदभाव खत्म करके मिलने वाला इकलौता राजनेता, यही खासियत बना लेती थी मुरीद

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Published : Oct 10, 2022, 3:17 PM IST

Mulayam Singh Yadav का सूचना तंत्र कभी एसी कमरों में बैठने वाले अफसर नहीं बने. इसीलिए वह अंतिम समय तक ऐसे नेता माने जाते रहे, कि जहां वह चले जाएं वहां हजारों की भीड़ अपने आप एकत्रित हो जाय.

Ex CM Mulayam Singh Yadav
मुलायम सिंह यादव

नई दिल्ली : सपा के संस्थापक व समाजवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले नेताओं में अग्रणी मुलायम सिंह यादव 1967 से लेकर 1996 तक 8 बार उत्तर प्रदेश में विधानसभा के लिए चुने गए. एक बार 1982 से 87 तक विधान परिषद के सदस्य रहे. 1996 में ही उन्होंने लोकसभा का पहला चुनाव लड़ा और चुने गए. इसके बाद से अब तक 7 बार लोकसभा में पहुंचे, निधन के वक्त भी लोकसभा सदस्य थे. 1977 में वह पहली बार यूपी में मंत्री बने. तब उन्हें को-ऑपरेटिव और पशुपालन विभाग दिया गया. 1980 में लोकदल का अध्यक्ष पद संभाला. 1985-87 में उत्तर प्रदेश में जनता दल के अध्यक्ष रहे और फिर चुनाव होते ही 1989 में पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने. 1993-95 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तभी उनके संपर्क में आए सूचना विभाग के पूर्व अधिकारी दिनेश गर्ग ने मुलायम सिंह को करीब देखने व जानने के बाद अपने अनुभव ईटीवी भारत के साथ शेयर किया. मुलायम सिंह यादव के व्यवहार और कार्यशैली को याद करते हुए उत्तर प्रदेश सूचना विभाग के पूर्व सूचना अधिकारी और अमृत विचार अखबार के स्थानीय संपादक दिनेश गर्ग का कहना है कि वह मुलायम सिंह यादव हमेशा फीडबैक जमीन से जुड़े और अपने साथ काम करने वाले लोगों से लिया करते थे. उनका सूचना तंत्र कभी एसी कमरों में बैठने वाले अफसर नहीं बने. इसीलिए वह अंतिम समय तक ऐसे नेता माने जाते रहे, कि जहां वह चले जाएं वहां हजारों की भीड़ अपने आप एकत्रित हो जाय.

दिनेश गर्ग ने बताया कि वैसे तो मुलायम सिंह यादव ने राजनीति के दांवपेंच उन्होंने 60 के दशक में राममनोहर लोहिया और चरण सिंह जैसे दिग्गज नेताओं से सीथा. राम मनोहर लोहिया ही उन्हें राजनीति में लेकर आए. लोहिया की ही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें 1967 में टिकट दिया और वह पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंच गए थे. उसके बाद वह लगातार प्रदेश के चुनावों में जीतते रहे. विधानसभा तो कभी विधानपरिषद के सदस्य बनते रहे. उनकी पहली पार्टी अगर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी थी तो दूसरी पार्टी बनी चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल, जिसमें वह 1968 में शामिल हुए. चरण सिंह की पार्टी के साथ जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ तो भारतीय लोकदल बन गया. ये मुलायम के सियासी पारी की तीसरी पार्टी बनी. फिर चौथी पार्टी के रूप में वह जनता दल और पांचवीं पार्टी के रुप में सजपा में शामिल हुए और छठवीं पार्टी के रुप में समाजवादी पार्टी का गठन किया.

Ex CM Mulayam Singh Yadav Shivpal Singh Yadav
मुलायम सिंह यादव के साथ भाई शिवपाल सिंह यादव (फाइल फोटो)

दिनेश गर्ग का कहना है कि शुरूआती दिनों में पहलवानी का शौक रखने वाले मुलायम सिंह ने 55 साल तक राजनीति की. मुलायम सिंह 1967 में 28 साल की उम्र में बिना किसी राजनीतिक बैकग्राउंड के जसवंतनगर से पहली बार विधायक बने, तब से लेकर अंतिम समय तक वह राजनीति में एक्टिव रहे और एक सांसद के रुप में आखिरी सांस ली.

पूर्व सूचना अधिकारी और अमृत विचार अखबार के स्थानीय संपादक दिनेश गर्ग का कहना है कि उन्होंने बचपन व शिक्षा के दौर में मुलायम सिंह यादव के बारे में जितना सुना था, तब से उनके मन में उनके प्रति एक अलग छवि थी. लेकिन 1986 में अमृत प्रभात अखबार में पत्रकार के रूप में काम शुरू करने और 1984 में सूचना अधिकारी के रूप में उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में अपनी सेवा शुरू करने के बाद उनका विचार पूरी तरह से मुलायम सिंह के प्रति बदल गया. 1993 में जब मुलायम सिंह यादव दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उन्हें सितंबर 1994 में सूचना अधिकारी के रूप में उनके साथ काम करने का अवसर मिला. इस दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि एक मुख्यमंत्री किस तरह से बड़ी सादगी के साथ अपने पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं, विधायकों और छोटे अधिकारियों के साथ भी उसी लहजे में बात करते थे, जैसा वह बड़े स्तर के राजनेताओं और अधिकारियों के साथ किया करते थे. उनका आचरण और व्यवहार छोटा बड़ा ओहदा नहीं देखा करता था. वह एक छोटे सूचना अधिकारी के रुप में उनसे न जाने कितनी बार मिले और हर बार उन्होंने उतने ही सम्मान व शालीनता के साथ बात सुनी और अपने सुझाव दिए. छोटे अधिकारी व कर्मचारी की बात सुनने व समझने की कोशिश करने वाला कोई और राजनेता नहीं दिखा.

Ex CM Mulayam Singh Yadav
मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो)

इसे भी पढ़ें : इस बात से दुखी थे मुलायम, बनारस की जेल में पड़ी थी समाजवादी पार्टी की नींव

पिछड़े वर्ग के उभरते नेताओं के लिए रोल मॉडल
मुलायम सिंह यादव पिछड़े वर्ग के उभरते नेताओं के लिए रोल मॉडल बन कर उभर रहे थे. एक जमाने में डकैतों के विरुद्ध अभियान के नाम पर किए जा रहे उत्पीड़न को मुद्दा बनाकर उन्होंने जिस तरह से अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया और पिछड़े वर्ग के लोगों को जोड़ा, वह काबिले तारीफ माना जाता है. अगर उन्होंने अपनी जान हथेली पर रखकर वह दिलेरी न दिखायी होती तो आज देश व प्रदेशों में राजनीति में पिछड़ों व खास तौर से यादव को वह तवज्जो न मिलती, जितनी की अपने दम पर उन्होंने दिलवाने की आजीवन कोशिश की. आज कई राज्यों के राजनेता पिछड़े वर्ग के वोटों पर अपनी राजनीति चमका रहे हैं.

लोगों को जोड़ने में माहिर
मुलायम सिंह यादव के बारे में उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यादव लोगों को जोड़ने में माहिर थे. वह इस बात का महत्व समझते थे कि अगर उनके साथ समाज की विभिन्न सामाजिक शक्तियां जुड़कर रहेंगी, तो वह अपनी राजनीतिक विरासत को काफी ऊंचे स्तर तक ले जा सकते हैं. इसीलिए उन्होंने समाज में बुद्धिजीवियों, व्यापारियों, किसानों, अधिवक्ताओं, उद्योगपतियों, शिक्षकों, कलाकारों के साथ-साथ गरीब और आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले लोगों को भी अपने साथ जोड़े रखा. इतना ही नहीं उन्होंने माफियाओं की प्रवृति के लोगों को भी राजनीति में अपने साथ रखने की कोशिश की, क्योंकि यह उस समय की राजनीति को प्रभावित करने बड़ा तत्व माने जाते थे.

इसे भी पढ़ें : पत्रकारों की नजर में ऐसे थे मुलायम सिंह यादव, पढ़िए 'धरतीपुत्र' की कहानी..पत्रकारों की जुबानी

जीवन में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट
दिनेश गर्ग का कहना है कि मुलायम सिंह यादव के जीवन में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने का मामला साबित हुआ. इसके बाद वह सेकुलरिज्म के नाम पर एक चेहरा बनकर उभरे. इस घटना के बाद से वह धर्मनिरपेक्ष नेताओं में गिने जाने लगे और इसका उनको बड़ा राजनीतिक लाभ हुआ है. तमाम तरह के चंदे और फंडिंग से उनको प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मिलने लगे, जिसका इस्तेमाल उन्होंने अपनी राजनीतिक पहचान को बढ़ाने और पार्टी को मजबूत करने के लिए भी किया.

Ex CM Mulayam Singh Yadav
मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो)

दूसरे दल के नेताओं की इज्जत
मुलायम सिंह यादव अपने पार्टी के नेताओं के साथ साथ दूसरे दल के नेताओं की भी काफी इज्जत किया करते थे. वह हमेशा अटल, आडवाणी, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह ही नहीं बल्कि कांशीराम और मायावती जैसे राजनेताओं के बारे में भी कभी भी किसी प्रकार की अनुचित टिप्पणी नहीं की. वह राजनीतिक मर्यादा को लगने से बचते थे. स्टेट गेस्ट हाउस कांड को और उनके कुछ विवादास्पद बयानों को छोड़ दिया जाए तो उन्हें एक ऐसे राजनेता के रूप में याद किया जाएगा, जो मुख्यमंत्री और देश के रक्षामंत्री के रूप में पिछड़े वर्ग के लोगों के भाग्य विधाता बनकर आगे आए और उनको देश में के विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ाने के लिए जी तोड़ मेहनत और कोशिश की.

इसे भी पढ़ें : मुलायम के गठबंधन वाले रास्ते पर चलकर भी फेल हो गए थे अखिलेश, आखिर क्यों..?

फीडबैक लेने का अलग अंदाज
मुलायम सिंह यादव की खास बात यह भी थी कि वह हमेशा फीडबैक जमीन से जुड़े और अपने साथ काम करने वाले लोगों से लिया करते थे. उनका सूचना तंत्र कभी अफसर नहीं बने. वह आईएएस लॉबी के चक्कर में कभी नहीं फंसे और न ही केवल उनके मंत्र को सही मानकर काम किया. इसीलिए वह आज भी ऐसे नेता माने जाते हैं कि जहां वह चले जाएं वहां लाखों हजारों की भीड़ एकत्रित हो जाती है. मुलायम सिंह यादव जिस तरह से पार्टी के छोटे से छोटे कार्यकर्ता और राजनेता के घर जाकर उनसे मुलाकात करते थे वह भी उनकी सादगी और लगाव का प्रतीक है और उसी के दम पर समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश की एक बड़ी राजनीतिक ताकत बन पाई. वह अपने घर व कार्यालय के एक एक कर्मचारी के साथ साथ पार्टी कार्यालय के एक एक वर्कर का खास ध्यान रखते थे और मौका मिलते ही उनसे बात करते थे. उनका फीडबैक व बात को बहुत ध्यान से सुनते थे. यह खासियत किसी और नेता में नहीं दिखायी दी.

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नई दिल्ली : सपा के संस्थापक व समाजवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले नेताओं में अग्रणी मुलायम सिंह यादव 1967 से लेकर 1996 तक 8 बार उत्तर प्रदेश में विधानसभा के लिए चुने गए. एक बार 1982 से 87 तक विधान परिषद के सदस्य रहे. 1996 में ही उन्होंने लोकसभा का पहला चुनाव लड़ा और चुने गए. इसके बाद से अब तक 7 बार लोकसभा में पहुंचे, निधन के वक्त भी लोकसभा सदस्य थे. 1977 में वह पहली बार यूपी में मंत्री बने. तब उन्हें को-ऑपरेटिव और पशुपालन विभाग दिया गया. 1980 में लोकदल का अध्यक्ष पद संभाला. 1985-87 में उत्तर प्रदेश में जनता दल के अध्यक्ष रहे और फिर चुनाव होते ही 1989 में पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने. 1993-95 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तभी उनके संपर्क में आए सूचना विभाग के पूर्व अधिकारी दिनेश गर्ग ने मुलायम सिंह को करीब देखने व जानने के बाद अपने अनुभव ईटीवी भारत के साथ शेयर किया. मुलायम सिंह यादव के व्यवहार और कार्यशैली को याद करते हुए उत्तर प्रदेश सूचना विभाग के पूर्व सूचना अधिकारी और अमृत विचार अखबार के स्थानीय संपादक दिनेश गर्ग का कहना है कि वह मुलायम सिंह यादव हमेशा फीडबैक जमीन से जुड़े और अपने साथ काम करने वाले लोगों से लिया करते थे. उनका सूचना तंत्र कभी एसी कमरों में बैठने वाले अफसर नहीं बने. इसीलिए वह अंतिम समय तक ऐसे नेता माने जाते रहे, कि जहां वह चले जाएं वहां हजारों की भीड़ अपने आप एकत्रित हो जाय.

दिनेश गर्ग ने बताया कि वैसे तो मुलायम सिंह यादव ने राजनीति के दांवपेंच उन्होंने 60 के दशक में राममनोहर लोहिया और चरण सिंह जैसे दिग्गज नेताओं से सीथा. राम मनोहर लोहिया ही उन्हें राजनीति में लेकर आए. लोहिया की ही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें 1967 में टिकट दिया और वह पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंच गए थे. उसके बाद वह लगातार प्रदेश के चुनावों में जीतते रहे. विधानसभा तो कभी विधानपरिषद के सदस्य बनते रहे. उनकी पहली पार्टी अगर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी थी तो दूसरी पार्टी बनी चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल, जिसमें वह 1968 में शामिल हुए. चरण सिंह की पार्टी के साथ जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ तो भारतीय लोकदल बन गया. ये मुलायम के सियासी पारी की तीसरी पार्टी बनी. फिर चौथी पार्टी के रूप में वह जनता दल और पांचवीं पार्टी के रुप में सजपा में शामिल हुए और छठवीं पार्टी के रुप में समाजवादी पार्टी का गठन किया.

Ex CM Mulayam Singh Yadav Shivpal Singh Yadav
मुलायम सिंह यादव के साथ भाई शिवपाल सिंह यादव (फाइल फोटो)

दिनेश गर्ग का कहना है कि शुरूआती दिनों में पहलवानी का शौक रखने वाले मुलायम सिंह ने 55 साल तक राजनीति की. मुलायम सिंह 1967 में 28 साल की उम्र में बिना किसी राजनीतिक बैकग्राउंड के जसवंतनगर से पहली बार विधायक बने, तब से लेकर अंतिम समय तक वह राजनीति में एक्टिव रहे और एक सांसद के रुप में आखिरी सांस ली.

पूर्व सूचना अधिकारी और अमृत विचार अखबार के स्थानीय संपादक दिनेश गर्ग का कहना है कि उन्होंने बचपन व शिक्षा के दौर में मुलायम सिंह यादव के बारे में जितना सुना था, तब से उनके मन में उनके प्रति एक अलग छवि थी. लेकिन 1986 में अमृत प्रभात अखबार में पत्रकार के रूप में काम शुरू करने और 1984 में सूचना अधिकारी के रूप में उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में अपनी सेवा शुरू करने के बाद उनका विचार पूरी तरह से मुलायम सिंह के प्रति बदल गया. 1993 में जब मुलायम सिंह यादव दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उन्हें सितंबर 1994 में सूचना अधिकारी के रूप में उनके साथ काम करने का अवसर मिला. इस दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि एक मुख्यमंत्री किस तरह से बड़ी सादगी के साथ अपने पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं, विधायकों और छोटे अधिकारियों के साथ भी उसी लहजे में बात करते थे, जैसा वह बड़े स्तर के राजनेताओं और अधिकारियों के साथ किया करते थे. उनका आचरण और व्यवहार छोटा बड़ा ओहदा नहीं देखा करता था. वह एक छोटे सूचना अधिकारी के रुप में उनसे न जाने कितनी बार मिले और हर बार उन्होंने उतने ही सम्मान व शालीनता के साथ बात सुनी और अपने सुझाव दिए. छोटे अधिकारी व कर्मचारी की बात सुनने व समझने की कोशिश करने वाला कोई और राजनेता नहीं दिखा.

Ex CM Mulayam Singh Yadav
मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो)

इसे भी पढ़ें : इस बात से दुखी थे मुलायम, बनारस की जेल में पड़ी थी समाजवादी पार्टी की नींव

पिछड़े वर्ग के उभरते नेताओं के लिए रोल मॉडल
मुलायम सिंह यादव पिछड़े वर्ग के उभरते नेताओं के लिए रोल मॉडल बन कर उभर रहे थे. एक जमाने में डकैतों के विरुद्ध अभियान के नाम पर किए जा रहे उत्पीड़न को मुद्दा बनाकर उन्होंने जिस तरह से अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया और पिछड़े वर्ग के लोगों को जोड़ा, वह काबिले तारीफ माना जाता है. अगर उन्होंने अपनी जान हथेली पर रखकर वह दिलेरी न दिखायी होती तो आज देश व प्रदेशों में राजनीति में पिछड़ों व खास तौर से यादव को वह तवज्जो न मिलती, जितनी की अपने दम पर उन्होंने दिलवाने की आजीवन कोशिश की. आज कई राज्यों के राजनेता पिछड़े वर्ग के वोटों पर अपनी राजनीति चमका रहे हैं.

लोगों को जोड़ने में माहिर
मुलायम सिंह यादव के बारे में उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यादव लोगों को जोड़ने में माहिर थे. वह इस बात का महत्व समझते थे कि अगर उनके साथ समाज की विभिन्न सामाजिक शक्तियां जुड़कर रहेंगी, तो वह अपनी राजनीतिक विरासत को काफी ऊंचे स्तर तक ले जा सकते हैं. इसीलिए उन्होंने समाज में बुद्धिजीवियों, व्यापारियों, किसानों, अधिवक्ताओं, उद्योगपतियों, शिक्षकों, कलाकारों के साथ-साथ गरीब और आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले लोगों को भी अपने साथ जोड़े रखा. इतना ही नहीं उन्होंने माफियाओं की प्रवृति के लोगों को भी राजनीति में अपने साथ रखने की कोशिश की, क्योंकि यह उस समय की राजनीति को प्रभावित करने बड़ा तत्व माने जाते थे.

इसे भी पढ़ें : पत्रकारों की नजर में ऐसे थे मुलायम सिंह यादव, पढ़िए 'धरतीपुत्र' की कहानी..पत्रकारों की जुबानी

जीवन में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट
दिनेश गर्ग का कहना है कि मुलायम सिंह यादव के जीवन में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने का मामला साबित हुआ. इसके बाद वह सेकुलरिज्म के नाम पर एक चेहरा बनकर उभरे. इस घटना के बाद से वह धर्मनिरपेक्ष नेताओं में गिने जाने लगे और इसका उनको बड़ा राजनीतिक लाभ हुआ है. तमाम तरह के चंदे और फंडिंग से उनको प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मिलने लगे, जिसका इस्तेमाल उन्होंने अपनी राजनीतिक पहचान को बढ़ाने और पार्टी को मजबूत करने के लिए भी किया.

Ex CM Mulayam Singh Yadav
मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो)

दूसरे दल के नेताओं की इज्जत
मुलायम सिंह यादव अपने पार्टी के नेताओं के साथ साथ दूसरे दल के नेताओं की भी काफी इज्जत किया करते थे. वह हमेशा अटल, आडवाणी, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह ही नहीं बल्कि कांशीराम और मायावती जैसे राजनेताओं के बारे में भी कभी भी किसी प्रकार की अनुचित टिप्पणी नहीं की. वह राजनीतिक मर्यादा को लगने से बचते थे. स्टेट गेस्ट हाउस कांड को और उनके कुछ विवादास्पद बयानों को छोड़ दिया जाए तो उन्हें एक ऐसे राजनेता के रूप में याद किया जाएगा, जो मुख्यमंत्री और देश के रक्षामंत्री के रूप में पिछड़े वर्ग के लोगों के भाग्य विधाता बनकर आगे आए और उनको देश में के विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ाने के लिए जी तोड़ मेहनत और कोशिश की.

इसे भी पढ़ें : मुलायम के गठबंधन वाले रास्ते पर चलकर भी फेल हो गए थे अखिलेश, आखिर क्यों..?

फीडबैक लेने का अलग अंदाज
मुलायम सिंह यादव की खास बात यह भी थी कि वह हमेशा फीडबैक जमीन से जुड़े और अपने साथ काम करने वाले लोगों से लिया करते थे. उनका सूचना तंत्र कभी अफसर नहीं बने. वह आईएएस लॉबी के चक्कर में कभी नहीं फंसे और न ही केवल उनके मंत्र को सही मानकर काम किया. इसीलिए वह आज भी ऐसे नेता माने जाते हैं कि जहां वह चले जाएं वहां लाखों हजारों की भीड़ एकत्रित हो जाती है. मुलायम सिंह यादव जिस तरह से पार्टी के छोटे से छोटे कार्यकर्ता और राजनेता के घर जाकर उनसे मुलाकात करते थे वह भी उनकी सादगी और लगाव का प्रतीक है और उसी के दम पर समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश की एक बड़ी राजनीतिक ताकत बन पाई. वह अपने घर व कार्यालय के एक एक कर्मचारी के साथ साथ पार्टी कार्यालय के एक एक वर्कर का खास ध्यान रखते थे और मौका मिलते ही उनसे बात करते थे. उनका फीडबैक व बात को बहुत ध्यान से सुनते थे. यह खासियत किसी और नेता में नहीं दिखायी दी.

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