हैदराबाद: गोवा में नाबालिग लड़िकयों से गैंगरेप के मामले के बाद एक बार फिर महिला सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं. वैसे देश में ऐसे पहले भी कई बार हुआ है जब बेटियों के साथ ऐसी दरिंदगी हुई कि इंसानियत हिल गई. ऐसे कई मामले हैं जहां बेटियों के साथ ऐसी हैवानियत की सारी हदें पार हो गईं और फिर पूरा देश दहल उठा. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब बेटियों को इंसाफ और दरिंदों को सजा दिलाने के लिए लोग सड़कों पर उतर आए.
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दिल्ली का निर्भया केस
16 दिसम्बर, 2012 को दिल्ली में पैरा मेडिकल की छात्रा के साथ चलती बस में गैंगरेप की दरिंदगी ने पूरे देश को दहला दिया. 6 लोगों ने पहले पीड़िता के दोस्त से मारपीट की और फिर छात्रा के साथ दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी. इसके बाद युवती और उसके दोस्त को चलती बस से बाहर फेंक दिया गया. पीड़िता को गंभीर हालत में दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भर्ती करवाया गया लेकिन हालत में सुधार नहीं होने पर उसे सिंगापुर रेफर किया जहां वो जिंदगी की जंग हार गई.
निर्भया से हुई दरिंदगी की इंतहा के बाद पूरे देशभर में प्रदर्शन हुए, सड़क से संसद तक मामला गूंजा और पुलिस ने 5 दिन बाद एक नाबालिग समेत सभी 6 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली. बचे हुए 4 बालिग दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई जबकि नाबालिग अपराधी को बाल सुधार गृह में भेजा गया. इसके बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी सजा बरकरार रखी. 20 मार्च 2020 को पवन, अक्षय, विनय और मुकेश को फांसी पर लटका दिया गया.
हैदराबाद गैंगरेप केस
नवंबर 2019 में हैदराबाद के पास एक 26 साल की वेटरनरी डॉक्टर दिशा की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई. 28 नवंबर को पीड़िता का जला हुआ शव बेंगलुरू-हैदराबाद नेशनल हाइवे पर अंडरपास के पास मिला था. जिसके बाद पूरे देश में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा, लोग सड़कों पर उतर आए और पीड़िता को न्याय दिलाने की मांग उठने लगी.
जांच शुरू हुई तो कई सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए. पता चला कि पीड़िता तोंडुपल्ली के पास अपनी स्कूटी पार्क की थी. जिसके बाद आरोपियों ने स्कूटी का टायर पंचर कर दिया, दिशा जब लौटी तो उसने स्कूटर पंक्चर पाया और अपनी बहन को फोन किया. जिसके बाद आरोपियों ने दिशा को मदद की पेशकश की और फिर उसे टोल प्लाजा के पास झाड़ियों में धकेलकर फोन स्विच ऑफ कर दिया. पुलिस के मुताबिक चार लोगों ने दिशा के साथ गैंगरेप किया और फिर उसके शव को 27 किलोमीटर दूर ले जाकर डीजल या पेट्रोल से जला दिया.
29 नवंबर को पुलिस ने चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया, जिनकी उम्र 20 से 24 साल के बीच थी. कोर्ट ने चारों आरोपियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. इस बीच पुलिस चारों आरोपियों को घटनास्थल का मुआयना करने पहुंची, जहां से चारों आरोपियों ने भागने की कोशिश की और पुलिस ने चारों को एनकाउंटर में मार गिराया. इस एनकाउंटर के बाद हैदराबाद पुलिस की तारीफ होने लगी थी, एनकाउंटर की खबर मिलते ही लोग पुलिसवालों के स्वागत के लिए एनकाउंटर वाली जगह पहुंच गए थे.
उन्नाव रेप केस
साल 2017 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव की एक नाबालिग लड़की से बलात्कार का मामला सामने आया. नौकरी दिलाने में मदद के नाम पर बलात्कार का आरोप 15 साल से उन्नाव के विधायक कुलदीप सेंगर पर लगा. जो बसपा से लेकर समाजवादी पार्टी और फिर बीजेपी की टिकट पर विधायक बना था. एक हफ्ते बाद पीड़िता गायब हो गई, करीब दस दिन बाद औरैया में मिली. पीड़िता ने पुलिस में शिकायत करने की कोशिश की लेकिन महीनो तक एफआईआर ही दर्ज नहीं हुई. जिसके बाद पीड़िता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और फिर अदालत के आदेश पर पुलिस को भी मामला दर्ज करना पड़ा.
पुलिस ने मामला दर्ज करने की रस्म तो निभा दी लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई, उल्टे पीड़िता के परिजनों को धमकियां मिलने लगी और सेंगर इस पूरे मामले को उनके खिलाफ सियासी षडयंत्र बताते रहे. अप्रैल 2018 में विधायक कुलदीप सेंगर के भाई ने पीड़िता के पिता की बेरहमी से पिटाई कर दी और पुलिस ने पीड़िता के पिता को ही आर्म्स एक्ट के तहत हिरासत में ले लिया. थाने में भी पिता की पिटाई हुई और फिर अधमरी हालत में अस्पताल में भर्ती करवा गया. इस सबसे तंग आकर न्याय की गुहार लगा रही पीड़िता ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के पास आत्मदाह की कोशिश की.
पीड़िता तो बच गई लेकिन पिता ने अस्पताल में दम तोड़ दिया था. लापरवाही के आरोप में पुलिसवाले सस्पेंड हुए और अतुल सेंगर को पीड़िता के पिता की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. जिसके बाद यूपी सरकार ने मामला सीबीआई को सौंप दिया. परिवार को फिर भी धमकियां मिलती रहीं, हाईकोर्ट के दखल के बाद कुलदीप सेंगर की गिरफ्तारी हुई. इस बीच जुलाई 2019 में एक ट्रक ने उस कार को टक्कर मार दी जिसमें पीड़िता के चाची, बहन और वकील मौजूद थे. चाची और बहन की मौत हो गई जबकि वकील गंभीर रूप से घायल हो गया. लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद 16 दिसंबर 2019 को कोर्ट ने कुलदीप सेंगर को अपहरण और बलात्कार का दोषी ठहराते हुए 10 साल की सजा सुनाई.
कठुआ गैंगरेप
जनवरी 2018 को जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले के रसाना गांव में बकरवाल जनजाति की एक 8 साल की बच्ची का अपहरण हुआ था. बच्ची की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद शव क्षत विक्षत हालत में मिला था. मासूम को नशीली दवा खिलाने के साथ पूजा स्थल के भीतर भी दरिंदगी की बात भी सामने आई. मासूम के साथ हैवानियत की इंतहा देखकर देश गुस्से में उबल गया था. बच्ची के पिता की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया और पोस्टमार्टम में गैंगरेप के बाद मर्डर की पुष्टि हुई. मामले में मंदिर के प्रभारी के भतीजे की गिरफ्तारी से मामले को धार्मिक रंग भी दिया गया. हिंदू एकता मंच ने आरोपी के समर्थन में प्रदर्शन किया और बीजेपी के विधायक भी समर्थन में आ गए.
पुलिस ने 8 में से 7 बालिग आरोपियों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर की. खुद को नाबालिग कह रहे आठवें आरोपी के खिलाफ भी चार्जशीट दायर की गई. पुलिस के मुताबिक गांव से बकरवाल समुदाय को बाहर करने की साजिश में इस हैवानियत को अंजाम दिया गया था. पुलिस की मानें तो कुल 8 आरोपियों में से इसमें एक पूर्व राजस्व अधिकारी से लेकर चार पुलिसवाले और एक नाबालिग शामिल था. इनमें दो पुलिसवालों पर सबूत नष्ट करने का आरोप लगा. 10 जून 2019 को कोर्ट ने सांजीराम, प्रवेश कुमार उर्फ मन्नू और दीपक खजुरिया नाम के 3 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई, जबकि तिलक राज, आनंद दत्त और सुरिंदर कुमार को 5-5 साल की सजा दी गई है. विशाल नाम के एक आरोपी को बरी कर दिया गया.
हिमाचल की गुड़िया से दरिंदगी
4 जुलाई 2017 को शिमला जिले के कोटखाई की एक छात्रा स्कूल से लौटते वक्त लापता हो गई. 2 दिन बाद जंगल में छात्रा का शव संदिग्ध हालात में मिला. जांच में दुष्कर्म के बाद हत्या की पुष्टि हुई और मामले पर एसआईटी बना दी गई. एसआईटी ने 6 स्थानीय लोगों को गिरफ्तार किया तो लोगों ने पुलिस पर असली गुनहगारों को बचाने का आरोप लगा दिया. गिरफ्तार 6 आरोपियों में से नेपाली मूल के सूरज की पुलिस हिरासत में मौत हो गई और फिर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. लोग गुड़िया के लिए न्याय की गुहार लेकर सड़कों पर उतर आए. जिसके बाद सरकार ने मामला सीबीआई को सौंपा गया.
सीबीआई ने सूरज हत्याकांड में सबसे पहले एसआईटी की अगुवाई कर रहे आईजी जहूर जैदी समेत 9 पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया. सीबीआई की जांच भी खिंचती रही लेकिन ठोस कुछ निकलता नहीं दिखा. जिसके बाद सीबीआई ने अनिल कुमार उर्फ नीलू चरानी को गिरफ्तार कर लिया. सीबीआई ने सबूत जुटाए, जिसके बाद 18 जून 2021 को कोर्ट ने दोषी नीलू चरानी को उम्रकैद की सजा सुनाई.
प्रियदर्शिनी मट्टू
दिल्ली यूनिवर्सिटी की लॉ स्टूडेंट रही प्रियदर्शिनी मट्टू का शव 23 जनवरी, 1996 को दिल्ली में उनके चाचा के घर पर मिला था. जांच में पता चला कि 25 साल की प्रियदर्शिनी की बलात्कार के बाद हत्या हुई और आरोप दिल्ली विश्वविद्यालय के ही एक छात्र संतोष सिंह पर लगा. जो एक आईपीएस अधिकारी का बेटा था. जांच में पता चला कि संतोष प्रियदर्शिनी को प्यार करता था लेकिन प्रियदर्शिनी ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया था.
इसके बाद भी संतोष उसका पीछा करता रहा, जिस पर प्रियदर्शिनी ने उसके खिलाफ एक केस भी दर्ज करवाया था पर दिल्ली पुलिस में संतोष के पिता के रसूख के सामने पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया. जिसके बाद संतोष की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि वो 23 जनवरी 1996 को प्रियदर्शिनी के घर पहुंचा, चाचा के घर में प्रियदर्शिनी अकेली थी. संतोष ने फिर से उसके सामने अपना प्रेम प्रस्ताव रखा जिसे उसने ठुकरा दिया और जिसके बाद संतोष ने प्रियदर्शिनी के साथ पहले बलात्कार किया और फिर हेलमेट से 19 वार करने के बाद गला घोंटकर हत्या कर दी.
साल 1999 में निचली अदालत ने प्रियदर्शिनी के कातिल संतोष सिंह को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. प्रिय दर्शिनी मट्टू रेप और मर्डर केस के बाद भी लोग सड़क पर उतरे और बढ़ते महिला अपराधों के खिलाफ आवाज उठाई. मामला हाईकोर्ट पहुंचा और 2006 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने संतोष कुमार सिंह को मौत की सजा सुनाई थी जिसे चार साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था.
अरुणा शानबाग
27 नवंबर 1973 को मुंबई के केईएम अस्पताल की एक नर्स अरुणा शानबाग के साथ अस्पताल के वार्ड बॉय सोहनलाल ने दुष्कर्म किया और फिर कुत्ते की चेन से गला घोंटकर मारने की कोशिश की. जिसके बाद अरुणा कोमा में चली गई. एक दिन बाद आरोपी सोहनलाल को गिरफ्तार कर लिया गया, बलात्कार का आरोप तो साबित नहीं हुआ लेकिन हत्या के प्रयास के लिए उसे सात साल की सजा हुई.
इस दौरान अस्पताल के बैड पर बेजान पड़ी अरुणा की आंखों की रोशनी से लेकर सुनने की शक्ति भी चली गई और वो लकवाग्रस्त हो गई. अरुणा 4 दशक से ज्यादा वक्त तक कोमा में रही और बिस्तर पर बेजान पड़ी रही. अरुणा की कहानी तब और सुर्खियों में आई जब उसकी कहानी लिखने वाली लेखिका पिंकी विरानी ने अरुणा के लिए इच्छा मृत्यु की मांग की. लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत ने इच्छामृत्यु का आदेश देने से इनकार कर दिया.
उस दौरान इच्छा मृत्यु को लेकर खूब चर्चा और बहस हुई, ये मुद्दा अखबार और टीवी चैनलों की सुर्खियां भी बना. तब जाकर लोगों को अरुणा शानबाग के बारे में पता चला. 18 मई 2015 को अरुणा शानबाग ने दम तोड़ दिया और 42 सालों से कोमा में रहकर जिंदगी और मौत के बीच झूलती अरुणा शानबाग की कहानी खत्म हो गई.