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नेपाल में सियासी संकट, भारत के लिए क्या हैं इसके मायने

नेपाल फिर से राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है. सत्ताधारी वाम दल दो धड़ों में बंट चुका है. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति ने माधव कुमार को अपना अध्यक्ष चुना है. विशेषज्ञ का मानना है कि यदि माधव के नेतृत्व में नेपाल में सरकार बनती है तो भारत और नेपाल के बीच के संबंधों में सुधार हो सकता है.

Former Ambassador Jitendra Kumar Tripathi
Nepal Communist Party
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Published : Dec 23, 2020, 7:39 PM IST

नई दिल्ली : नेपाल इस समय संवैधानिक संकट से जुझ रहा है. मंगलवार को सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के दल ने माधव कुमार नेपाल को अपना अध्यक्ष चुना और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को केंद्रीय समिति की बैठक के बाद पार्टी से निकाल दिया.

315 केंद्रीय समिति के सदस्यों ने माधव कुमार नेपाल के पक्ष में मतदान किया. मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर की पीठ बुधवार से संसद को भंग करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई शुरू करने वाली है. पीएम ओली द्वारा संसद भंग करने की सिफारिश किए जाने के कुछ ही दिन बाद यह बात सामने आई है.

पूर्व राजदूत जितेंद्र कुमार त्रिपाठी से ईटीवी भारत की खास बातचीत

नेपाल की राष्ट्रपति बिध्या देवी भंडारी ने संसद भंग करने के लिए पीएम ओली के प्रस्ताव को मंजूरी देकर चुनाव की तारीखों की घोषणा की. विशेषज्ञों का मानना है कि सत्तारूढ़ एनसीपी में विभाजन हो सकता है. माधव नेपाल की नियुक्ति निश्चित रूप से भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंध के लिए सकारात्मक हो सकती है.

ईटीवी भारत के साथ बातचीत में पूर्व राजदूत जितेंद्र कुमार त्रिपाठी ने कहा कि नेपाल राजनीतिक अशांति के दौर से गुजर रहा है. पार्टी के भीतर केपी शर्मा ओली का बहुत ही जबरदस्त विरोध हुआ था. इसी की वजह से पार्टी के अगले अध्यक्ष माधव कुमार नेपाल बने. इसी बीच पोलित ब्यूरो के 135 सदस्यों ने केपी शर्मा ओली के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश भी की थी.

पिछले चुनाव में जब एनसीपी को जीत मिली थी. उस समय कम्युनिस्ट धड़ों को सरकार बनाने के लिए एकजुट करते समय यह तय किया गया था कि दो सह-अध्यक्ष और दो सह-प्रधानमंत्री होंगे. ओली द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद पार्टी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. इसी के बाद से पार्टी में खींचतान शुरू हो गई. पार्टी के लोगों में ओली के भारत के लिए दिए गए बयानों को लेकर आक्रोश था. पार्टी के सदस्य ओली की चीन के साथ नजदीकी और कालापानी में भारत के साथ शुरू हुए विवाद से भी नाराज थे.

राजदूत त्रिपाठी ने कहा कि ओली के व्यवहार से नेपाल के आम नागरिक भी खफा थे. हर कोई कह रहा था कि ओली ने अपनी सीमाएं पार कर दी हैं. भारत के लिए इसका क्या मतलब होगा? भारत को नाराज करने का ओली का कदम न तो कूटनीतिक और न ही राजनीतिक रूप से उचित कदम था, लेकिन अब जब माधव नेपाल आ गए हैं, तो बदलाव की उम्मीद है.

त्रिपाठी ने कहा कि ओली या प्रचंड की तुलना में वह एक मृदुभाषी नेता हैं. माधव का भारत के प्रति नरम रुख है और अब जब संसद भंग हो गई है, तो चुनाव के बाद नए समीकरण बन सकते हैं. हाल के असंतोष या बड़े पैमाने पर जनता के विरोध को देखते हुए संभावना नहीं है कि एनसीपी के सत्ता में वापस आने पर भी ओली वापस आएंगे.

त्रिपाठी ने बताया कि सबसे पहले, हमें यह देखना होगा कि कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आती है या नहीं. दूसरा, भले ही एनसीपी सत्ता में आती है, लेकिन केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं. एनसीपी के सत्ता में आने पर माधव कुमार नेपाल पार्टी की पसंद हो सकते हैं.

उन्होंने कहा, निश्चित रूप से एक बार माधव नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए, भारत और नेपाल के बीच मतभेद कम हो सकते हैं. इन्हीं मतभेदों को कम करने के लिए भारत के कई शीर्ष अधिकारियों ने नेपाल की यात्रा की थी. उम्मीद है कि नई सरकार को दोनों देशों के बीच के संबंधों की बेहतर समझ होगी.

नेपाल ने भारत के कुछ हिस्सों को दिखाने वाला एक नक्शा जारी किया था, जिसको लेकर दोनों देशों के बीच राजनीतिक खींचातानी शुरू हो गई थी.

पढ़ें-नेपाल पर कसता चीन का 'शिकंजा', कब तक चुप रहेगा भारत ?

निचले सदन को भंग करने के निर्णय अभूतपूर्व कदम था. इसका जनता के साथ-साथ ओली की पार्टी के लोगों ने भी विरोध किया था. अब सभी की निगाहें नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर टिकी हैं. शीर्ष अदालत में कुल 12 रिट याचिकाएं दायर की गई हैं.

नई दिल्ली : नेपाल इस समय संवैधानिक संकट से जुझ रहा है. मंगलवार को सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के दल ने माधव कुमार नेपाल को अपना अध्यक्ष चुना और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को केंद्रीय समिति की बैठक के बाद पार्टी से निकाल दिया.

315 केंद्रीय समिति के सदस्यों ने माधव कुमार नेपाल के पक्ष में मतदान किया. मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर की पीठ बुधवार से संसद को भंग करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई शुरू करने वाली है. पीएम ओली द्वारा संसद भंग करने की सिफारिश किए जाने के कुछ ही दिन बाद यह बात सामने आई है.

पूर्व राजदूत जितेंद्र कुमार त्रिपाठी से ईटीवी भारत की खास बातचीत

नेपाल की राष्ट्रपति बिध्या देवी भंडारी ने संसद भंग करने के लिए पीएम ओली के प्रस्ताव को मंजूरी देकर चुनाव की तारीखों की घोषणा की. विशेषज्ञों का मानना है कि सत्तारूढ़ एनसीपी में विभाजन हो सकता है. माधव नेपाल की नियुक्ति निश्चित रूप से भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंध के लिए सकारात्मक हो सकती है.

ईटीवी भारत के साथ बातचीत में पूर्व राजदूत जितेंद्र कुमार त्रिपाठी ने कहा कि नेपाल राजनीतिक अशांति के दौर से गुजर रहा है. पार्टी के भीतर केपी शर्मा ओली का बहुत ही जबरदस्त विरोध हुआ था. इसी की वजह से पार्टी के अगले अध्यक्ष माधव कुमार नेपाल बने. इसी बीच पोलित ब्यूरो के 135 सदस्यों ने केपी शर्मा ओली के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश भी की थी.

पिछले चुनाव में जब एनसीपी को जीत मिली थी. उस समय कम्युनिस्ट धड़ों को सरकार बनाने के लिए एकजुट करते समय यह तय किया गया था कि दो सह-अध्यक्ष और दो सह-प्रधानमंत्री होंगे. ओली द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद पार्टी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. इसी के बाद से पार्टी में खींचतान शुरू हो गई. पार्टी के लोगों में ओली के भारत के लिए दिए गए बयानों को लेकर आक्रोश था. पार्टी के सदस्य ओली की चीन के साथ नजदीकी और कालापानी में भारत के साथ शुरू हुए विवाद से भी नाराज थे.

राजदूत त्रिपाठी ने कहा कि ओली के व्यवहार से नेपाल के आम नागरिक भी खफा थे. हर कोई कह रहा था कि ओली ने अपनी सीमाएं पार कर दी हैं. भारत के लिए इसका क्या मतलब होगा? भारत को नाराज करने का ओली का कदम न तो कूटनीतिक और न ही राजनीतिक रूप से उचित कदम था, लेकिन अब जब माधव नेपाल आ गए हैं, तो बदलाव की उम्मीद है.

त्रिपाठी ने कहा कि ओली या प्रचंड की तुलना में वह एक मृदुभाषी नेता हैं. माधव का भारत के प्रति नरम रुख है और अब जब संसद भंग हो गई है, तो चुनाव के बाद नए समीकरण बन सकते हैं. हाल के असंतोष या बड़े पैमाने पर जनता के विरोध को देखते हुए संभावना नहीं है कि एनसीपी के सत्ता में वापस आने पर भी ओली वापस आएंगे.

त्रिपाठी ने बताया कि सबसे पहले, हमें यह देखना होगा कि कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आती है या नहीं. दूसरा, भले ही एनसीपी सत्ता में आती है, लेकिन केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं. एनसीपी के सत्ता में आने पर माधव कुमार नेपाल पार्टी की पसंद हो सकते हैं.

उन्होंने कहा, निश्चित रूप से एक बार माधव नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए, भारत और नेपाल के बीच मतभेद कम हो सकते हैं. इन्हीं मतभेदों को कम करने के लिए भारत के कई शीर्ष अधिकारियों ने नेपाल की यात्रा की थी. उम्मीद है कि नई सरकार को दोनों देशों के बीच के संबंधों की बेहतर समझ होगी.

नेपाल ने भारत के कुछ हिस्सों को दिखाने वाला एक नक्शा जारी किया था, जिसको लेकर दोनों देशों के बीच राजनीतिक खींचातानी शुरू हो गई थी.

पढ़ें-नेपाल पर कसता चीन का 'शिकंजा', कब तक चुप रहेगा भारत ?

निचले सदन को भंग करने के निर्णय अभूतपूर्व कदम था. इसका जनता के साथ-साथ ओली की पार्टी के लोगों ने भी विरोध किया था. अब सभी की निगाहें नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर टिकी हैं. शीर्ष अदालत में कुल 12 रिट याचिकाएं दायर की गई हैं.

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