नई दिल्ली : बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में चीन के साथ श्रीलंका के संबंध खराब हो रहे हैं. विशेष रूप से दोनों देशों के बीच हाल ही में जैविक उर्वरक की दूषित खेप को लेकर जो स्थिति बनी उससे तो यही जाहिर होता है.
दरअसल समस्या तब पैदा हुई जब क़िंगदाओ सीविन बायोटेक कंपनी लिमिटेड (Qingdao Seawin Biotech Co Ltd ) नाम की एक चीनी कंपनी ने लंका के किसानों को दूषित जैविक खाद की आपूर्ति की. सूत्रों के अनुसार जब कोलंबो ने खराब उर्वरकों का आयात करने से इनकार कर दिया तो चीन ने श्रीलंका के सरकारी पीपुल्स बैंक को क्रेडिट भुगतान के पत्र पर 'द्वेषपूर्ण' डिफ़ॉल्ट का आरोप लगाते हुए ब्लैकलिस्ट कर दिया. पूरे मामले पर चीन का जो रुख रहा उससे उसकी पड़ोसियों को कर्ज, संसाधन देकर दबाने की मंशा सबके सामने आ गई.
चीनी विदेश मंत्री जाएंगे श्रीलंका
इस सबके बीच दोनों देशों के संबंध सुधरने की उम्मीद है. चीन के विदेश मंत्री वांग यी अगले महीने की शुरुआत में मालदीव और श्रीलंका का दौरा करेंगे. हिंद महासागर में रणनीतिक महत्व वाले दोनों दक्षिण एशियाई देशों में अपने प्रभाव का विस्तार करने के बीजिंग के प्रयासों के तहत यह दौरा अहम माना रहा है.
स्थानीय भावनाओं के साथ बदलता है चीन : पंत
इस मुद्दे पर 'ईटीवी भारत' से बात करते हुए, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) में अनुसंधान निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत (Professor Harsh V Pant) ने कहा, 'चीनी विदेश मंत्री की श्रीलंका यात्रा ये इशारा करती है कि दोनों देशों को बीच जो घटनाक्रम हुआ है उससे चीन चिंतित है. वह रिश्तों को वापस पटरी पर लाना चाहता है. हालांकि भारत-लंका की बात की जाए तो भारत के लिए यह केवल एक ऐसा संबंध नहीं है जो अर्थशास्त्र और व्यापार या रक्षा सौदों के बारे में है, यह लोगों से लोगों के बीच संबंधों के बारे में भी है और मुझे नहीं लगता कि चीन ऐसा कुछ अनुकरण कर सकता है.'
प्रोफेसर पंत ने कहा लेकिन चीन के पास पैसे की ताकत है. बहुत सारे संसाधन हैं जो वह इस बातचीत के दौरान सामने लाएगा और कोई भी देश चीन को दरकिनार नहीं करना चाहेगा. हालांकि दोनों देशों के बीच अधिकांश हालिया घटनाक्रम भारत के लिए फायदेमंद है. भारत को इस पर नजर रखनी चाहिए और लंबा खेल खेलने के लिए तैयार रहना चाहिए.
प्रोफेसर पंत ने कहा, 'जब भी कोलंबो को लगेगा कि एक देश या दूसरे देश को संभालना बहुत मुश्किल हो रहा है तो उसका झुकाव दूसरी तरफ हो जाएगा. उदाहरण के लिए चीन द्वारा श्रीलंका को दूषित उर्वरक भेजने के मामले में भारत, श्रीलंका के समर्थन में तत्पर था. इससे इस क्षेत्र में भारत की परोपकारिता के बारे में बहुत सारी धारणा को बदलने में मदद मिली है. साथ ही ये भी साफ हो गया है कि चीन अक्सर स्थानीय भावनाओं के साथ बदलता रहता है.'
गंभीर आर्थिक संकट में श्रीलंका
इस बीच जैसा कि श्रीलंका एक गंभीर आर्थिक संकट से ग्रस्त है. हवा का रुख बदल चुका है, भारत के प्रति श्रीलंका की विदेश नीति में परिवर्तन देखा जा रहा है. अब मदद के लिए उसका झुकाव नई दिल्ली की ओर हो रहा है. लंबे समय से भारत-श्रीलंका की जो त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म विकास योजना लंबित थी वह उसे तेज कर रहा है.
विश्लेषक ने ईटीवी भारत को बताया कि भारत और श्रीलंका के संबंध इस तरह से विकसित होते रहेंगे क्योंकि स्पष्ट रूप से श्रीलंका भारत और चीन दोनों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहेगा. जैसे-जैसे दक्षिण एशिया में चीन का दबदबा बढ़ता जाएगा, भारत-चीन एक-दूसरे से दूर होते जाएंगे और इस क्षेत्र के छोटे-छोटे देशों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे. चीन की असलियत भी सामने आ रही है कि वह बिना किसी फायदे के पैसा और संसाधन नहीं देता है.
भारत ने दिया था भरोसा
श्रीलंका इस समय काफी कर्ज में है. रिपोर्ट्स के मुताबिक नवंबर के अंत में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 1.6 अरब डॉलर रह गया. कमी के कारण खाद्य आयात में गिरावट आई है, जिससे देश में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई हैं, कोलंबो ने भारत से मदद का अनुरोध किया है. गौरतलब है कि इस साल नवंबर में श्रीलंका के वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे ने दिल्ली का दौरा किया था. उन्होंने श्रीलंका में आर्थिक स्थिति और कोविड के बाद की चुनौतियों से निपटने के लिए उनकी सरकार के दृष्टिकोण के बारे में भारतीय पक्ष को जानकारी दी.
भारतीय मंत्रियों ने श्रीलंका के साथ भारत की एकजुटता व्यक्त की. उन्होंने दोहराया कि भारत हमेशा श्रीलंका के साथ खड़ा रहा है और वर्तमान स्थिति में उसकी नेबरहुड फर्स्ट नीति द्वारा निर्देशित किया जाएगा. श्रीलंका ने भी घोषणा की है कि एक महीने में कोलंबो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्मों को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए भारत के साथ लंबे समय तक चलने वाले समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि भारत-श्रीलंका इस पर 16 महीने से बातचीत कर रहे हैं और देश भारत के साथ ट्राईको ऑयल फार्म परियोजना की शर्तों को अंतिम रूप देने के बहुत करीब है.
ट्राईको ऑयल फार्म परियोजना में भारत की दिलचस्पी
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने ट्रिंकोमाली ऑयल टैंक फार्म का निर्माण ईंधन भरने वाले स्टेशन के रूप में किया था. यह त्रिंकोमाली बंदरगाह के निकट बनाया गया था. त्रिंकोमाली हार्बर दुनिया के सबसे गहरे प्राकृतिक बंदरगाहों में से एक है. हालांकि, लाखों डॉलर की लागत से सदियों पुराने तेल टैंकों को फिर से उपयोग के लिए फिर से तैयार करने की आवश्यकता है. 35 साल पहले 1987 के भारत-लंका समझौते में तेल फार्म के नवीनीकरण के प्रस्ताव की परिकल्पना की गई थी. इस समझौते में कहा गया है कि 'ट्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म को बहाल करने और संचालन का काम भारत और श्रीलंका द्वारा एक संयुक्त उद्यम के रूप में किया जाएगा.
पढ़ें- श्रीलंका भारत को पट्टे पर दिए गए तेल टैंकों को वापस लेने की बातचीत को अंतिम रूप दे रहा : मंत्री