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शिमला में आज भी मौजूद है भारतीय संविधान की पहली प्रति, देखें एक्सक्लूसिव तस्वीरें

पूरा भारत आज 73वें गणतंत्र दिवस का जश्न मना रहा है. देश के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में भी गणतंत्र दिवस (REPUBLIC DAY 2022) मनाया जा रहा है. लेकिन आपको यह शायद ही मालूम होगा कि देश के संविधान की पहली मुद्रित प्रति (First Printed copy of constitution) आज भी शिमला में मौजूद है. आजादी के बाद वर्ष 1949 में संविधान के मुद्रण का कार्य शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस (Government of India Press) में पूरा हुआ था. गणतंत्र दिवस के मौके (73TH REPUBLIC DAY CELEBRATION) पर शिमला के इस गौरव कि देखें कुछ एक्सक्लूसिव तस्वीरें.

Government of India Press in shimla
भारतीय संविधान की पहली कॉपी
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Published : Jan 26, 2022, 2:20 PM IST

Updated : Jan 26, 2022, 2:43 PM IST

शिमला: किसी भी लोकतांत्रिक देश का संविधान उसकी आत्मा होती है. और जब बात दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की हो तब संविधान की पवित्रता से जुड़ी छोटी से छोटी बात भी बड़े महत्व की हो जाती है. लेकिन आपको यह शायद ही यह पता होगा कि ब्रिटिश काल में भारत की समर कैपिटल शिमला (Summer Capital Shimla) में भारतीय संविधान से जुड़ा एक अनमोल खजाना आज भी शिमला में मौजूद है. यहां के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस में संविधान की पहली मुद्रित प्रति(First Printed copy of constitution) आज भी सहेज कर रखी हुई है. भले ही यह प्रेस समय की मार झेल रहा हो, लेकिन संविधान की पहली मुद्रित प्रति आज भी यहां पूरी शान के साथ यहां मौजूद है.

आजादी के बाद शिमला में वर्ष 1949 में संविधान के मुद्रण का कार्य पूरा हुआ. मुद्रित होने के बाद संविधान की पहली प्रति इस प्रेस में रखी गई और तब से लेकर आज तक यह प्रति शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस में पूरे हिफाजत के साथ सहेज कर रखी गई है. ऐतिहासिक महत्व वाले इस प्रेस कि स्थापना सन् 1872 में शिमला में टूटीकंडी में की गई थी. उस समय शिमला ब्रिटिश हुकूमत कि ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी. भारत की आजादी के बाद संविधान सभा का गठन किया गया. संविधान लेखन का कार्य पूरा होने के बाद इसे मुद्रित करना भी महत्वपूर्ण काम था. तब सभी ने इसके मुद्रण के लिए शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस को उपयुक्त पाया क्योंकि उस समय के अनुसार इस प्रेस में सबसे आधुनिक प्रिंटिंग मशीनें मौजूद थीं.

First Printed copy of constitution
शिमला में संविधान की कॉपी

मुद्रण के बाद संविधान की पहली प्रति रखने के लिए एक एंटीक शोकेस तैयार किया गया जिसमें संविधान की पहली प्रिंटेड कॉपी रखी गई. पहली मुद्रित प्रति काले रंग के बेहद मजबूत व शानदार आवरण वाली है. अंग्रेजी में मुद्रित इस प्रति में कुल 289 पृष्ठ हैं. चार किलो से अधिक वजनी इस प्रति के मोटे और चमकदार कागज के पन्नों पर अंग्रेजी में छपे शब्द इतने साल बीत जाने के बाद भी नए जैसे लगते हैं. इसके कवर पेज पर दि कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया लिखा है. वहीं अंतिम पन्ने पर 'प्रिंटेड इन इंडिया बाई दि मैनेजर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस न्यू देल्ही लिखा है. तब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस के मैनेजर दिल्ली में बैठकर काम करते थे.

First Printed copy of constitution
भारतीय संविधान की पहली कॉपी

इस प्रेस में वर्ष 2014 के दौरान डिप्टी मैनेजर के तौर पर सेवाएं दे चुके अनुपम सक्सेना कहते थे कि यह केवल एक किताब नहीं है, बल्कि भारतीय जनमानस की सामूहिक चेतना का प्रतिबिंब है जिसकी पहली प्रति को सहेजे रखने का गौरव शिमला को हासिल है. बता दें कि सन् 1872 में इस प्रेस की स्थापना के समय विदेशों से यहां बड़ी और भारी मशीनों को मंगवाया गया था. देश में स्थापित प्रिंटिंग प्रेस में यह सबसे पुरानी है. इसी कड़ी की एक प्रेस दिल्ली के मिंटो रोड पर भी मौजूद है. संविधान की इस प्रति का पहली प्रिंटेड कॉपी होने के कारण ऐतिहासिक महत्व है और प्रेस में इसे बड़े जतन से रखा गया है.

शिमला को सपनों का शहर पुकारने वाले कवि-लेखक कुलराजीव पंत (Poet writer kulrajiv pant) का कहना है कि बेशक यह समय संचार क्रांति का है और सारी दुनिया एक छोटे से मोबाइल में कैद हो गई है, लेकिन मुद्रित शब्द का अपना ही महत्व है. डॉ. पंत का कहते हैं कि जब-जब मुद्रित शब्द की बात आएगी, इस प्रिंटिंग प्रेस का जिक्र होगा ही होगा. शिमला में स्थित इस प्रेस में कई दुर्लभ किस्म की पुरानी प्रिंटिंग मशीनें हैं. इसके विशाल परिसर में घूमते हुए पुराने समय की भव्यता के दर्शन हो जाते हैं. हिमाचल प्रदेश के लेखन संसार के अनमोल रत्न कहे जाने वाले लेखक-संपादक स्वर्गीय मधुकर भारती कहा करते थे कि संविधान की पहली मुद्रित प्रति शिमला में मौजूद है, यह इस ऐतिहासिक शहर के लिए गौरव की बात है. उनके अनुसार यह संविधान भारतीय लोकतंत्र की पवित्र पुस्तक है एवं इसमें दर्ज सभी शब्द अर्थवान और प्राणवान हैं.

constitution copy in Shimla Museum
संविधान की पहली कॉपी

वहीं, संविधान को लेकर एक बात और भी रोचक है. शिमला स्थित राज्य संग्रहालय (constitution copy in Shimla Museum) में लोगों की संविधान को लेकर जिज्ञासा शांत करने के लिए संविधान की एक हस्तलिखित प्रति भी रखी गई है. हिंदी में लिखी गई यह प्रति संविधान की मूल प्रति का सुलेख है. इसे नासिक के वसंत कृष्ण वैद्य ने हाथ से लिखा है. मिलबोर्न लोन कागज पर 500 पन्नों में यह वर्ष 1954 में पूरी हुई थी. शांति निकेतन से जुड़े मशहूर चित्रकार नंदलाल बोस ने इसे चार साल का समय लगाकर सजाया. इसमें संविधान सभा के सदस्यों के हस्ताक्षर भी हैं. सन् 1999 में लोकसभा सचिवालय ने मूल प्रति की 1200 ऑफसेट प्रतियां छपवाई थीं. ऐसी ही एक प्रति सैलानियों व आम जनता की जिज्ञासा के लिए शिमला के राज्य संग्रहालय में रखी गई हैं.

दिल्ली के निवासी प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने इसे इटैलिक स्टाइल में बेहद खूबसूरती से लिखा था, जबकि शांति निकेतन के कलाकारों ने इस दस्तावेज के प्रत्येक पृष्ठ को बहुत ही दक्षता से सजाया-संवारा था. नंदलाल रायजादा ने इसके विभिन्न पृष्ठों पर भारतीय उपहाद्वीप प्रागैतिहासिक मोहनजोदड़ो से लेकर सिन्धु घाटी की सभ्यताओं एवं संस्कृतियों का चित्रण किया है. रायजादा ने सुलेख के लिए अपने होल्डर और 303 नंबर की निब का प्रयोग किया है. सुलेख में गोल्डी लीफ और स्टोन कलर का प्रयोग किया गया है. पांडुलिपि को एक हजार साल की मियाद वाले सूक्ष्मीजीवी रोधक 45.7 सेमी × 58.4 सेमी आकार के चर्मपत्र शीट पर लिखा गया था. तैयार पांडुलिपि में 234 पृष्ठ शामिल थे, जिनका वजन 13 किलो था.

सर्वे ऑफ इंडिया ने 70 सालों तक उन प्रिंटिंग मशीनों को संभालकर रखा, जिन्होंने संविधान के अनमोल अक्षरों को पन्नों पर उतारा था. लेकिन समय के साथ संविधान की कॉपी प्रिंट करने वाली यह मशीनें बूढ़ी हो चुकी गईं जिसके कारण सर्वे ऑफ इंडिया को यह मशीनें यहां से हटानी पड़ीं. अब इन मशीनों की जगह हाईटेक नई तकनीक वाली मशीनों ने ले ली है.

यह भी पढ़ें-Republic Day 2022: इस वजह से मनाया जाता है गणतंत्र दिवस, जानिए क्या है इतिहास और महत्व

शिमला: किसी भी लोकतांत्रिक देश का संविधान उसकी आत्मा होती है. और जब बात दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की हो तब संविधान की पवित्रता से जुड़ी छोटी से छोटी बात भी बड़े महत्व की हो जाती है. लेकिन आपको यह शायद ही यह पता होगा कि ब्रिटिश काल में भारत की समर कैपिटल शिमला (Summer Capital Shimla) में भारतीय संविधान से जुड़ा एक अनमोल खजाना आज भी शिमला में मौजूद है. यहां के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस में संविधान की पहली मुद्रित प्रति(First Printed copy of constitution) आज भी सहेज कर रखी हुई है. भले ही यह प्रेस समय की मार झेल रहा हो, लेकिन संविधान की पहली मुद्रित प्रति आज भी यहां पूरी शान के साथ यहां मौजूद है.

आजादी के बाद शिमला में वर्ष 1949 में संविधान के मुद्रण का कार्य पूरा हुआ. मुद्रित होने के बाद संविधान की पहली प्रति इस प्रेस में रखी गई और तब से लेकर आज तक यह प्रति शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस में पूरे हिफाजत के साथ सहेज कर रखी गई है. ऐतिहासिक महत्व वाले इस प्रेस कि स्थापना सन् 1872 में शिमला में टूटीकंडी में की गई थी. उस समय शिमला ब्रिटिश हुकूमत कि ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी. भारत की आजादी के बाद संविधान सभा का गठन किया गया. संविधान लेखन का कार्य पूरा होने के बाद इसे मुद्रित करना भी महत्वपूर्ण काम था. तब सभी ने इसके मुद्रण के लिए शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस को उपयुक्त पाया क्योंकि उस समय के अनुसार इस प्रेस में सबसे आधुनिक प्रिंटिंग मशीनें मौजूद थीं.

First Printed copy of constitution
शिमला में संविधान की कॉपी

मुद्रण के बाद संविधान की पहली प्रति रखने के लिए एक एंटीक शोकेस तैयार किया गया जिसमें संविधान की पहली प्रिंटेड कॉपी रखी गई. पहली मुद्रित प्रति काले रंग के बेहद मजबूत व शानदार आवरण वाली है. अंग्रेजी में मुद्रित इस प्रति में कुल 289 पृष्ठ हैं. चार किलो से अधिक वजनी इस प्रति के मोटे और चमकदार कागज के पन्नों पर अंग्रेजी में छपे शब्द इतने साल बीत जाने के बाद भी नए जैसे लगते हैं. इसके कवर पेज पर दि कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया लिखा है. वहीं अंतिम पन्ने पर 'प्रिंटेड इन इंडिया बाई दि मैनेजर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस न्यू देल्ही लिखा है. तब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस के मैनेजर दिल्ली में बैठकर काम करते थे.

First Printed copy of constitution
भारतीय संविधान की पहली कॉपी

इस प्रेस में वर्ष 2014 के दौरान डिप्टी मैनेजर के तौर पर सेवाएं दे चुके अनुपम सक्सेना कहते थे कि यह केवल एक किताब नहीं है, बल्कि भारतीय जनमानस की सामूहिक चेतना का प्रतिबिंब है जिसकी पहली प्रति को सहेजे रखने का गौरव शिमला को हासिल है. बता दें कि सन् 1872 में इस प्रेस की स्थापना के समय विदेशों से यहां बड़ी और भारी मशीनों को मंगवाया गया था. देश में स्थापित प्रिंटिंग प्रेस में यह सबसे पुरानी है. इसी कड़ी की एक प्रेस दिल्ली के मिंटो रोड पर भी मौजूद है. संविधान की इस प्रति का पहली प्रिंटेड कॉपी होने के कारण ऐतिहासिक महत्व है और प्रेस में इसे बड़े जतन से रखा गया है.

शिमला को सपनों का शहर पुकारने वाले कवि-लेखक कुलराजीव पंत (Poet writer kulrajiv pant) का कहना है कि बेशक यह समय संचार क्रांति का है और सारी दुनिया एक छोटे से मोबाइल में कैद हो गई है, लेकिन मुद्रित शब्द का अपना ही महत्व है. डॉ. पंत का कहते हैं कि जब-जब मुद्रित शब्द की बात आएगी, इस प्रिंटिंग प्रेस का जिक्र होगा ही होगा. शिमला में स्थित इस प्रेस में कई दुर्लभ किस्म की पुरानी प्रिंटिंग मशीनें हैं. इसके विशाल परिसर में घूमते हुए पुराने समय की भव्यता के दर्शन हो जाते हैं. हिमाचल प्रदेश के लेखन संसार के अनमोल रत्न कहे जाने वाले लेखक-संपादक स्वर्गीय मधुकर भारती कहा करते थे कि संविधान की पहली मुद्रित प्रति शिमला में मौजूद है, यह इस ऐतिहासिक शहर के लिए गौरव की बात है. उनके अनुसार यह संविधान भारतीय लोकतंत्र की पवित्र पुस्तक है एवं इसमें दर्ज सभी शब्द अर्थवान और प्राणवान हैं.

constitution copy in Shimla Museum
संविधान की पहली कॉपी

वहीं, संविधान को लेकर एक बात और भी रोचक है. शिमला स्थित राज्य संग्रहालय (constitution copy in Shimla Museum) में लोगों की संविधान को लेकर जिज्ञासा शांत करने के लिए संविधान की एक हस्तलिखित प्रति भी रखी गई है. हिंदी में लिखी गई यह प्रति संविधान की मूल प्रति का सुलेख है. इसे नासिक के वसंत कृष्ण वैद्य ने हाथ से लिखा है. मिलबोर्न लोन कागज पर 500 पन्नों में यह वर्ष 1954 में पूरी हुई थी. शांति निकेतन से जुड़े मशहूर चित्रकार नंदलाल बोस ने इसे चार साल का समय लगाकर सजाया. इसमें संविधान सभा के सदस्यों के हस्ताक्षर भी हैं. सन् 1999 में लोकसभा सचिवालय ने मूल प्रति की 1200 ऑफसेट प्रतियां छपवाई थीं. ऐसी ही एक प्रति सैलानियों व आम जनता की जिज्ञासा के लिए शिमला के राज्य संग्रहालय में रखी गई हैं.

दिल्ली के निवासी प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने इसे इटैलिक स्टाइल में बेहद खूबसूरती से लिखा था, जबकि शांति निकेतन के कलाकारों ने इस दस्तावेज के प्रत्येक पृष्ठ को बहुत ही दक्षता से सजाया-संवारा था. नंदलाल रायजादा ने इसके विभिन्न पृष्ठों पर भारतीय उपहाद्वीप प्रागैतिहासिक मोहनजोदड़ो से लेकर सिन्धु घाटी की सभ्यताओं एवं संस्कृतियों का चित्रण किया है. रायजादा ने सुलेख के लिए अपने होल्डर और 303 नंबर की निब का प्रयोग किया है. सुलेख में गोल्डी लीफ और स्टोन कलर का प्रयोग किया गया है. पांडुलिपि को एक हजार साल की मियाद वाले सूक्ष्मीजीवी रोधक 45.7 सेमी × 58.4 सेमी आकार के चर्मपत्र शीट पर लिखा गया था. तैयार पांडुलिपि में 234 पृष्ठ शामिल थे, जिनका वजन 13 किलो था.

सर्वे ऑफ इंडिया ने 70 सालों तक उन प्रिंटिंग मशीनों को संभालकर रखा, जिन्होंने संविधान के अनमोल अक्षरों को पन्नों पर उतारा था. लेकिन समय के साथ संविधान की कॉपी प्रिंट करने वाली यह मशीनें बूढ़ी हो चुकी गईं जिसके कारण सर्वे ऑफ इंडिया को यह मशीनें यहां से हटानी पड़ीं. अब इन मशीनों की जगह हाईटेक नई तकनीक वाली मशीनों ने ले ली है.

यह भी पढ़ें-Republic Day 2022: इस वजह से मनाया जाता है गणतंत्र दिवस, जानिए क्या है इतिहास और महत्व

Last Updated : Jan 26, 2022, 2:43 PM IST
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